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'अभी तक बनी है मात्र 2 वंदे भारत, फिर अगले तीन सालों में कैसे दौड़ेगी 400 नई ट्रेनें'

केंद्रीय बजट 2022-23 (Union Budget for 2022-23) पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) ने घोषणा की कि तीन साल में 400 नई ऊर्जा कुशल वंदे भारत ट्रेनें शुरू की जाएंगी. भारतीय रेलवे (Indian Railway) से जुड़े सूत्रों का मानना है कि यह वास्तव में एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है. 400 वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों (Vande Bharat Express trains) को चलाने से लगभग 40,000 करोड़ रुपये का निवेश होगा. और 5,000 नौकरियां तो मिलेंगी ही. लेकिन क्या यह लक्ष्य यथार्थवादी है? वंदे भारत एक्सप्रेस के निर्माता आईसीएफ के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक सुधांशु मणि ने कहा कि मुझे लगता है कि तीन साल में 100-150 ट्रेनों का लक्ष्य अधिक यथार्थवादी होता.

Vande Bharat Express trains
Vande Bharat Express trains

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Published : Feb 3, 2022, 4:20 PM IST

चेन्नई: भारतीय रेलवे (Indian Railway) के वर्तमान और अतीत के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि 400 वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों (Vande Bharat Express trains) को चलाने से लगभग 40,000 करोड़ रुपये का निवेश होगा. इससे नौकरी और अन्य लाभ मिलेंगे. हालांकि नाम ना देने की शर्त पर भारतीय रेलवे के अधिकारियों ने बताया कि एक बड़ा सवाल उपलब्धता का है. अधिकारियों ने कहा कि जब तक सरकार स्पष्ट रोडमैप नहीं देती, विक्रेता अपनी उत्पादन क्षमता नहीं बढ़ा सकते. आपूर्ति श्रृंखला को तैयार होने में समय लगेगा. उन्होंने कहा कि 400 ट्रेनों में से, पहले वर्ष के दौरान केवल 20 ट्रेनों को ही चलाया जा सकता है और शेष दो वर्षों में 380 ट्रेनें संभव नहीं हैं.

2022-23 के लिए केंद्रीय बजट (Union Budget for 2022-23) पेश करते हुए, भारतीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की कि तीन साल में 400 नई ऊर्जा कुशल वंदे भारत ट्रेनें शुरू की जाएंगी. वंदे भारत एक्सप्रेस 100 करोड़ रुपये के मितव्ययी परिव्यय पर इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (Integral Coach Factory) (ICF) द्वारा डिजाइन, विकसित और निर्मित एक सेमी-हाई स्पीड ट्रेन है.

भारतीय रेलवे के अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर एजेंसी को बताया कि यह लगभग 40,000 करोड़ रुपये के निवेश का अवसर है. जिससे करीब 15,000 नौकरियां तो मिलेंगी ही. कई और लाभ भी मिलेंगे. वर्तमान में केवल दो वंदे भारत ट्रेनें चल रही हैं - दिल्ली से वाराणसी और दिल्ली से कटरा. आईसीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बिना जोड़ी वाली ट्रेनें आज तक बिना ब्रेकडाउन के सप्ताह में छह दिन चल रही हैं. उन्हें कुछ साल पहले सेवा में लगाया गया था. शायद वंदे भारत एक्सप्रेस पहली ट्रेन है जो बिना जोड़ी के चलती है. यह 'मेक इन इंडिया' (Make in India) का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.

विदेशी कंपनियों द्वारा चलाई जाने वाली ऐसी ट्रेनों की तुलना में यह बहुत सस्ती है. अधिकारियों ने बताया कि ट्रेन में केवल 15 प्रतिशत आयातीत सामग्री है. यह उत्पादन की मात्रा बढ़ने पर और कम हो जाएगी. आईसीएफ के एक अधिकारी ने कहा कि कोविड -19 महामारी के कारण उत्पादन बाधाओं और लॉजिस्टिक चुनौतियों के कारण तीसरे प्रोटोटाइप में देरी हो रही है. हालांकि, सरकार अगले तीन वर्षों में 400 वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों के अपने लक्ष्य को कैसे हासिल करने जा रही है, यह भी बड़ा सवाल है.

तीन साल में 100-150 ट्रेनों का लक्ष्य अधिक यथार्थवादी होता

अधिकारियों ने कहा कि हालांकि यह वास्तव में एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य (Ambitious Target) है. लेकिन इसे प्राप्त करने के लिए योजनाओं पर बेहतर स्पष्टता की जरूरत होगी. भारतीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव (Indian Railway Minister Ashwini Vaishnaw) ने कहा कि उन्नत वंदे भारत ट्रेन की अप्रैल में परीक्षण के लिए तैयार होने की उम्मीद है. वंदे भारत एक्सप्रेस के निर्माता आईसीएफ के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक सुधांशु मणि ने कहा कि मुझे लगता है कि तीन साल में 100-150 ट्रेनों का लक्ष्य अधिक यथार्थवादी होता. इस लक्ष्य के लिए रेलवे के अधिकारियों द्वारा विशेष रूप से आईसीएफ में बहुत ही ठोस और प्रतिबद्ध कार्रवाई की आवश्यकता होगी.

पढ़ें: union budget railway : 400 नई वंदे भारत ट्रेन, 'एक स्टेशन-एक उत्पाद' योजना की शुरुआत

उन्होंने कहा, उन्नत ट्रेन का वाणिज्यिक उत्पादन और आवश्यक परीक्षण केवल सितंबर 2022 में शुरू होने की उम्मीद है. इसलिए लक्ष्य यथार्थवादी होना चाहिए. मणि ने कहा कि ट्रेनों को बड़ी संख्या में रोल आउट करना कोई मुद्दा नहीं हो सकता है. लेकिन उन्हें कहां तैनात किया जा रहा है? उनके मार्ग क्या होंगे? इसपर विचार जरूरी है.

मणि ने कहा कि आईसीएफ को वंदे भारत ट्रेनसेट पर काम करना शुरू करना चाहिए. जिसमें स्लीपर संस्करण (कोड नाम ट्रेन 19) और 300 यूनिट एल्यूमीनियम बॉडी ट्रेनसेट (कोड नाम ट्रेन 20) शामिल है. उन्होंने कहा कि भारत एल्यूमीनियम बॉडी वाली ट्रेनों को चलाने के लिए एक विदेशी भागीदार हो सकता है. 5/6 साल के समय में 400 ट्रेनें हो सकती हैं.

आईसीएफ ही अकेली संस्था, नहीं ली जा सकती अन्य कोच निर्माण कारखानों की मदद

यह पूछे जाने पर कि देश में अन्य कोच निर्माण कारखानों की भी मदद ली जा सकती है? मणि ने कहा कि शुरुआत में केवल आईसीएफ को ही यह करना चाहिए क्योंकि वे तकनीक और अन्य पहलुओं को समझते हैं. उत्पादन से अन्य इकाइयों को जोड़ने पर गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है. सुधांशु मणि के साथ सहमति जताते हुए एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि केवल आईसीएफ को ही इसे बनाना चाहिए. इसके लिए विशेष कौशल की जरूरत है और अन्य इकाइयों में प्रशिक्षित लोग उपलब्ध नहीं हैं.

अधिकारियों ने यह भी कहा कि अन्य कोच निर्माण कारखानों को इससे जोड़ने से न केवल गुणवत्ता प्रभावित होगी. बल्कि इसके बुनियादी स्वरूप को खोने का खतरा भी रहेगा. दूसरा सवाल विक्रेताओं की उपलब्धता का है. अधिकारियों ने कहा कि जब तक सरकार स्पष्ट रोडमैप नहीं देती, विक्रेता अपनी उत्पादन क्षमता नहीं बढ़ा सकते.

आपूर्ति श्रृंखला को तैयार होने में समय लगेगा. वे केवल स्थिर दर पर आपूर्ति कर सकते हैं. 400 ट्रेनों में से, पहले वर्ष के दौरान केवल 20 ट्रेनों को ही चलाया जा सकता है और शेष दो वर्षों में 380 ट्रेनें संभव नहीं हैं अधिकारी ने जोड़ा.

इसके अलावा विक्रेता और आईसीएफ अधिकारी सतर्कता जांच के रूप में वंदे भारत ट्रेन परियोजना को छूने के लिए अनिच्छुक हैं, जो हाल ही में बिना किसी विसंगति के आयोजित और समाप्त हुई थी. अधिकारियों के मुताबिक, लंबी अवधि के अनुबंधों की जरूरत है - जैसे अगले 10 वर्षों के लिए 60 ट्रेनें - तभी विक्रेता उत्पादन सुविधाएं स्थापित कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि निविदाएं और खरीद प्रक्रिया इस तरह से की जानी चाहिए कि विक्रेता बिना किसी चिंता के भाग ले सकें.

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