नई दिल्ली। स्वतंत्रता सेनानी और भारत के पूर्व उपप्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjivan Ram) की 6 जुलाई यानी आज 35वीं पुण्य तिथि मनाई जा रही है. 1986 में आज के ही दिन उनका दिल्ली में एक अस्पताल में निधन हुआ था. बिहार के एक दलित परिवार में जन्म लेने वाले जगजीवन को 'बाबूजी' के नाम से जाना जाता था, वह एक राष्ट्रीय नेता होने के साथ एक सामाजिक न्याय के योद्धा और दलितों के विकास के लिए आवाज उठाने वाले व्यक्ति थे.
- 40 वर्ष तक सासंद रहने का विश्व रिकॉर्ड जगजीवन राम के नाम
जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल को बिहार के एक सामान्य परिवार में हुआ था. वह कुल 6 भाई-बहन थे. उन्होंने आरा के एक स्कूल से पढ़ाई की. अपनी स्कूली पढ़ाई के दौरान 'बाबूजी' ने दलितों के साथ होने वाले भेदभाव की पीढ़ा देखी. जिसके बाद उन्होंने इन सामाजिक भेदभाव को लांगा ही नहीं बल्कि इसका पुरजोर तरीके से विरोध भी किया और अपनी बात मनवाई. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जगजीवन 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए. वह 1936 से 1986 कर लगातार 40 वर्षों तक संसद के सदस्य रहे, जो एक विश्व रिकॉर्ड है.
- 'Pre-independence & Post- Independence' देश के लिए जगजीवन का योगदान
जगजीवन राम (बाबूजी) का देश के लिए स्वतंत्रता से पहले और बाद बड़ा योगदान रहा. उनका संसदीय जीवन का इतिहास 50 वर्षों का रहा. वे आजादी से पहले बनी सरकारों में भी शामिल थे. वह 1946 में जवाहर लाल नेहरु की प्रोविजिनल कैबिनेट में सबसे युवा मंत्री के तौर पर शामिल हुए थे. उन्होंने 1934-35 में दलितों के अधिकारों के लिए बने संगठन ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेस लीग (All India Depressed Classes League) में अपना विशेष योगदान दिया. वह दलितों के लिए सामाजिक समानता और समान अधिकारों के हिमायती थे. उन्होंने 1935 में हिंदू महासभा के एक सत्र में प्रस्ताव पारित किया, जिसमें दलितों को पीने के पानी के लिए कुएं में जाने की इजाजत और मंदिर में उनके प्रवेश के अधिकार शामिल थे.
- 'बाबूजी' ने उठाई दलितों को मतदान का अधिकार दिलाने की मांग
1935 में पहली बार जगजीवन राम ने रांची में हैमंड कमीशन (Hammond Commission) के सामने दलितों के मतदान के अधिकार की मांग की थी. उन्हें 1940 के दौर में ब्रिटिश शासन के खिलाफ 'भारत छोड़ो आंदोलन' से जुड़ी राजनीतिक गतिविधियों के मद्देनजर दो बार जेल भेजा गया.
- आजादी के बाद संभाले ये मंत्रालय