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एकता के संदेश के साथ आंदोलन खत्म करना चाहते हैं किसान संगठन, मगर अड़े हैं राकेश टिकैत - राकेश टिकैत

तीन कृषि कानून के निरस्त होने के बाद 32 किसान संगठन आंदोलन (Farmers Protest) खत्म करने की तैयारी कर रहे हैं. अगर बड़ा बवाल नहीं हुआ तो 4 दिसंबर को आंदोलन खत्म हो सकता है. हालांकि, राकेश टिकैत और चढूनी की राजनीतिक मंशा तय करेगा कि आंदोलन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों तक चलेगा या नहीं.

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Published : Dec 1, 2021, 4:15 PM IST

हैदराबाद :तीन कृषि कानून को निरस्त करने वाले विधेयक को संसद से मंजूरी के बाद पिछले एक साल से चल रहे किसान आंदोलन (Farmers Protest ) अब खत्म होने की कगार पर है. पंजाब से आंदोलन में शामिल होने वाले 32 जत्थे (32 Farmer organizations) घरवापसी के लिए तैयार हैं, मगर वह अपने फैसले पर संयुक्त किसान मोर्च की मंजूरी चाहते हैं ताकि किसान एकता का संदेश बरकरार रहे. मगर इस आंदोलन के अविवादित अंत को कई राजनीतिक कारणों से धक्का लग सकता है.

बताया जा रहा है कि किसान आंदोलन के जरिये सक्रिय राजनीति में अपना हिस्सा तलाश रहा गुट चाहता है कि कम से कम 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव तक इस आंदोलन को जिंदा रखा जाए. इस रस्साकशी में किसान संगठनों के मतभेद भी सामने आ रहे हैं. फिलहाल संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) की 4 दिसंबर को होने वाली बैठक में आंदोलन चलता रहेगा या खत्म होगा, यह फैसला हो सकता है.

अभी क्या है किसान नेताओं का मूड : किसान आंदोलन (Farmers Protest ) के चार बड़े चेहरे हैं, जिनमें दर्शनपाल सिंह, सतनाम सिंह, गुरनाम सिंह चढ़ूनी और राकेश टिकैत शामिल हैं. संसद में कृषि बिल निरस्त करने के प्रस्ताव को मंजूर करने के बाद सतनाम सिंह ने कहा कि सरकार ने हमारी सभी मांगें मान ली हैं और 4 दिसंबर को आंदोलन खत्म करने का फैसला लिया जा सकता है. हरियाणा की खट्टर सरकार ने केस वापस लिए तो आंदोलन वापसी पर विचार किया जाएगा. गौरतलब है कि पराली जलाने के मामले में सबसे अधिक केस हरियाणा में ही दर्ज किए गए. किसान नेता दर्शनपाल सिंह ने तेवर नरम करने के संकेत दिए हैं. उन्होंने भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत को जिम्मेदारी के साथ बयान देने की सलाह दी है.

चढूनी और टिकैत खींच सकते हैं आंदोलन :तीन कृषि कानून के विरोध आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले किसान संयुक्त मोर्चा के सदस्य गुरनाम सिंह चढ़ूनी कई बार सक्रिय राजनीति में उतरने का संकेत दे चुके हैं. गुरनाम सिंह हरियाणा के अलग-अलग हिस्सों में जाकर बैठक कर चुके हैं. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इसके अलावा राकेश टिकैत भी पश्चिम उत्तरप्रदेश की राजनीति में अपना भविष्य तलाश रहे हैं. इसके लिए जरूरी है कि आंदोलन चलता रहे.

क्या आंदोलन की मांगें पूरी हो गईं :कृषि बिल के विरोध में किसान आंदोलन 9 अगस्त 2020 से शुरू हुआ. सितंबर 2020 में बिल के संसद की स्वीकृति के बाद आंदोलन गरमाया. नवंबर में किसान दिल्ली के बॉर्डर पर जम गए. उस समय किसानों ने तीनों कृषि बिल को निरस्त करने, एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने, पराली जलाने पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने, बिजली अध्यादेश 2020 को निरस्त करने और किसान नेताओं पर से दर्ज मुकदमे वापस लेने की मांग की थी. सरकार ने एमएसपी को छोड़कर सभी मांगें मान ली हैं. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लेकर बातचीत के लिए कमेटी बनाने का वादा किया है. अब राकेश टिकैत एमएसपी को लेकर आंदोलन जारी रखने के पक्ष में हैं.

कैप्टन अमरिंदर ने हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर को किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने के लिए राजी किया.

देश के किसान क्या आंदोलन जारी रखेंगे :कृषि कानून 2020 संसद से निरस्त होने के बाद देश के अन्य राज्यों में किसान आंदोलन के मूड में नहीं हैं. खुद उत्तर प्रदेश में जब संयुक्त किसान मोर्चा ने लखनऊ में महापंचायत की तो उसमें उम्मीद से काफी कम लोग जुटे. महाराष्ट्र और दक्षिणी राज्यों में टिकैत की बैठकों का ठंडा रेस्पॉन्स मिला. दूसरे राज्यों में राकेश टिकैत लगातार बीजेपी को हराने का बीड़ा उठाते हुए बयान देते नजर आए. बताया जा रहा है कि राजनीतिक टीका-टिप्पणी बढ़ने के बाद जाटलैंड माने जाने वाले वेस्टर्न यूपी और हरियाणा में भी किसान आंदोलन को लेकर बंट चुके हैं. कई किसान नेताओं ने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि वह चाहते हैं कि आंदोलन किसान एकता के संदेश के साथ खत्म हो.

कैप्टन अमरिंदर सिंह कर रहे हैं मध्यस्थता :पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर किसान संगठनों के संपर्क में हैं. उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को भी किसानों के खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमे वापस लेने के लिए राजी कर लिया है. गौरतलब है कि आंदोलन में शामिल किसान नेता सरकार के मुख्य तौर पर कृषि बिल से नाराज थे. एमएसपी को कानून बनाने की मांग इस आंदोलन से पहले कभी नहीं की गई. अब राकेश टिकैत आंदोलन खत्म करने के लिए जिन मांगों पर जोर दे रहे हैं, उससे लोगों की सहानुभूति आंदोलन के प्रति खत्म कर रही है. कैप्टन अमरिंदर अगर समझाने में सफल हो गए तो 4 दिसंबर को किसान अपने घर लौट जाएंगे.

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