देहरादून: नेहरू कॉलोनी पुलिस ने भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड (देहरादून) में नियुक्त कनिष्ठ सहायक, वैयक्तिक सहायक सहित कुल तीन कर्मचारियों को फर्जी डॉक्टर मामले में गिरफ्तार किया है.तीनों कर्मचारियों ने फर्जी डॉक्टर मामले में मुख्य आरोपी इमलाख के साथ मिलकर फर्जी डिग्रियां बांटी थी. साथ ही इन्होंने ही फर्जी रजिस्ट्रेशन किये थे. आरोपी फर्जी वेरिफिकेशन कराने के लिए 60 हजार से 1 लाख रुपये तक लेते थे. कई सालों से ये सभी इमलाख के संपर्क में थे.
एसआईटी ने फर्जी डॉक्टर मामले में चल रही जांच के दौरान भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड (देहरादून) में नियुक्त तीन कर्मचारियों विवेक रावत, अंकुर महेश्वरी और विमल प्रसाद को पूछताछ के लिए थाना नेहरू कॉलोनी देहरादून में बुलाया. इन तीनों ने अपने बयानों में बताया कि तीनों ने इमलाख के साथ मिलकर फर्जी डिग्रियां बांटी और फर्जी रजिस्ट्रेशन भी करवाएं हैं. इमलाख किसी को बीएएमएस की डिग्री देने के बाद चिकित्सा परिषद में रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करता था. संबंधित इंस्टीट्यूट के प्रमाण पत्र, लिफाफे आदि तीनों को सीधे उपलब्ध कराता था. जिस पर तीनों ही पत्राचार,पता इत्यादि का अंकन और पृष्ठांकन स्वयं ही करते थे. उसके बाद रजिस्ट्रेशन की प्रति तीनों कर्मचारी ही इमलाख को उपलब्ध कराते थे.
पढ़ें-Fake Doctor Arrest: दून में एक और फर्जी डॉक्टर गिरफ्तार, सरकारी नौकरियों में फर्जी डिग्रीधारकों की तलाश में SIT
भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखण्ड (देहरादून) में कनिष्ठ सहायक विमल बिजल्वाण, वैयक्तिक सहायक विवेक रावत और अंकुर महेश्वरी के माध्यम से सारे कागज जमा होते थे. तीनों लोग ही वेरिफिकेशन फाइल तैयार करते थे. उसके बाद जिस यूनिवर्सिटी की डिग्री होती थी, उस यूनिवर्सिटी के लिए और जिस राज्य की डिग्री होती थी, उस बोर्ड में भी वेरफिकेशन की फाइल डाक से भेजते थे.
फाइल में तीनों लोग कुछ न कुछ कमी रखते थे, जिससे यूनिवर्सिटी वाले फाइल को वापस नहीं करते थे. डाक से भेजने के कुछ दिन बाद इमलाख कर्नाटक, बिहार और राजस्थान आदि स्थानों पर जाता था. फिर इमलाख कूटरचित तरीके से फर्जी एनओसी तैयार करवाता था. जिसे वह उसी यूनिवर्सिटी के बाहर और उसी राज्य से वापस चिकित्सा परिषद के लिए डाक से पोस्ट करता था. जब यही फाइल चिकित्सा परिषद देहरादून में पहुंचती थी तो उस फर्जी एनओसी के आधार पर ही तीनों उनका रजिस्ट्रेशन चिकित्सा परिषद में करवा देते थे.
पढ़ें-Uttarakhand Fake Doctor Degree: झोलाछाप डॉक्टरों की जल्द होगी गिरफ्तारी, SSP ने बनाई टीम
तीनो लोगों को इस काम के प्रति वेरिफिकेश और एनओसी के हिसाब से 60,000 रुपए से एक लाख रुपए मिलते थे. इस काम में जो भी पैसे हमे मिलते थे, उसे तीनों लोग आपस में बांट लेते थे. जांच पड़ताल में इस बात की तस्दीक हुई है कि फर्जी BAMS डिग्री को भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड में जालसाजी तरीके से रजिस्ट्रेशन कराने का गोरखधंधा साल 2012 से चल रहा था. छानबीन में पता चला कि गिरफ्तार किए गए तीनों आरोपी कर्मचारी चिकित्सा परिषद में पहले 2005 से 10 साल से संविदा कर्मी के तौर पर तैनात थे. फिर उसके बाद 2015 से भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड के स्थाई कर्मचारी हो गए.
पढ़ें-10वीं पास देता था BAMS की फर्जी डिग्री, उत्तराखंड STF के हत्थे चढ़े तीन शातिर
एसएसपी दिलीप सिंह कुंवर ने बताया तीनों के कब्जे से चिकित्सा परिषद में फर्जी डिग्री, रजिस्ट्रेशन वाले संदिग्ध दस्तावेज और कई अलग-अलग राज्यों के मेडिकल कॉलेज लेटर पैड, लिफाफे एवं मोहरें बरामद की गई हैं. इस मामले में तक 6 फर्जी डॉक्टर सहित कुल 11 गिरफ्तारियां की जा चुकी हैं. अन्य संदिग्ध अभियुक्तों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई जा रही है. अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए विशेष टीम का गठन किया गया है.