हैदराबाद :26 नवंबर से 29 नवंबर के बीच के 66 घंटों को भारत के सबसे खराब आतंकी हमलों में से एक (One of the worst terror attacks) के रूप में देखा गया. जब कम से कम 10 आतंकवादी मुंबई के लैंडमार्क जगहों जैसे ओबेरॉय ट्राइडेंट, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, लेपर्ड कैफे, कामा हॉस्पिटल और ताज महल होटल में तबाही मचाने घुस गए थे.
इस दिन हुए नरसंहार में कम से कम 166 निर्दोष नागरिकों की मौत (166 innocent civilians killed) हो गई और 300 लोग घायल हो गए थे. जिस तरह 9/11 का आतंकी हमला संयुक्त राज्य के लिए एक सबसे बुरे सपने की तरह है और फिर उसके नतीजे में आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक तौर पर आक्रमण (Global Attack Against Terrorism) किया गया. भारत के लिए भी 26/11 उससे कम नहीं है.
भारत ने इस नरसंहार में मदद करने वाले आतंकवादी प्रतिबंधित संगठन लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) के सूत्रधारों की तत्काल गिरफ्तारी और सजा की मांग की थी, जिन्हें पाकिस्तान से भर्ती किया गया, प्रशिक्षित किया गया और फिर भारत भेजा गया था.
इस दहला देने वाली घटना को एक दशक से ज्यादा का समय हो चुका है लेकिन अभी भी नई दिल्ली का कहना है कि पाकिस्तान ने इस मामले में वो कदम नहीं उठाए जो जरूरी थे. जबकि भारत ने इस घटना में जमात-उद-दावा (Jamaat-ud-Dawa) और लकर-ए-तैयबा के शामिल होने के दर्जनों सबूतों सबूत दिए.
हर साल 26/11 की वर्षगांठ उन लोगों के लिए डर, आघात, दुख की एक लहर लेकर आती है, जिन्होंने इस आतंकवादी हमले में अपनों को खोया या वे इस नरसंहार के गवाह बने थे. तब से ही भारत ने इस मामले में किसी भी तरह की रियायत देने से इनकार करते हुए पाकिस्तान से लश्कर और जेयूडी के गुर्गों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने की लगातार मांग करता है.
नई दिल्ली ने साफ तौर पर कहा है कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच भविष्य में कोई सकरात्मक बातचीत होती है तो उससे पहले इस्लामाबाद को दोषियों को सजा देनी होगी, जिसमें 26/11 के आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड (Mastermind of terrorist attacks) लश्कर और जेयूडी के प्रमुख हाफिज मुहम्मद सईद (JuD chief Hafiz Muhammad Saeed) और अन्य लोग शामिल हैं.
यही वजह है कि जब इस्लामाबाद द्वारा बातचीत की पेशकश की गई थी तो भारत की पूर्व विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराज (Former Foreign Minister Mr. Sushma Swaraj) ने साफ कह दिया था कि शांति वार्ता के प्रस्ताव आतंक के तेज शोर में नहीं सुने जा सकते हैं. पाकिस्तान में भी लोगों ने 26/11 के आतंकवादी हमलों की बड़े पैमाने पर निंदा की और दोषियों को सजा देने की बात कही थी. इस तबाही को पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारत का 9/11 बताया था.
26/11 का जिंदा बचा एकमात्र हमलावर अजमल कसाब (Attacker Ajmal Kasab), जिसे भारत की अदालत द्वारा मौत की सजा दिए जाने के बाद लश्कर ने उसे अपना हीरो बताते हुए कहा था कि यह कई हमलों की प्रेरणा देगा. अपने बयान में लश्कर ने कहा था कि अजमल कसाब को एक हीरो के रूप में याद किया जाएगा. वह और अधिक हमलों के लिए प्रेरणा देगा.
इतना ही नहीं कसाब की फांसी के बाद पाकिस्तानी मूल के एक अन्य खूंखार आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (Tehreek-e-Taliban Pakistan) ने भारतीयों को निशाना बनाकर कसाब की फांसी का बदला (Kasab's execution revenge) लेने की कसम खाई थी.
हालांकि तत्कालीन पाकिस्तानी सरकार ने भारत को आश्वासन दिया था कि वह अपनी जमीन पर इस घटना में शामिल लोगों की जांच करेगा लेकिन उसने भारत के एक दावे को साफ तौर पर अनसुना कर दिया कि जिसमें उसकी शक्तिशाली खुफिया एजेंसियों और सेना के आतंकी समूहों के साथ संबंध की बात कही गई थी.
भारत ने दावा किया था कि पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (Inter-Services Intelligence) ने लश्कर के आतंकवादियों को समुद्री मार्ग तक पहुंचाने, फंड देने, प्रशिक्षित करने का काम किया था. इस्लामाबाद ने इससे इनकार कर दिया और उलटे भारत पर ही आरोप लगाया कि वह उसके संस्थानों पर आतंकी हमले करने के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल होने दे रहा है.
विश्लेषकों का कहना है कि मुंबई आतंकी हमलों का मामला पाकिस्तानी अदालतों में चल रहा है लेकिन यह भी सुनिश्चित किया गया है कि डोजियर के रूप में नई दिल्ली द्वारा उपलब्ध कराए गए सबूत, अभियुक्तों को सजा देने के लिए पर्याप्त साबित न हों.
वरिष्ठ रणनीतिक विश्लेषक जावेद सिद्दीकी (Senior Strategic Analyst Javed Siddiqui) कहते हैं कि यदि केवल मुंबई हमलों को लेकर कथित दोषियों की जांच और सजा देने का काम होता तो पाकिस्तान तो अब तक ऐसा कर चुका होता. लेकिन भारत ने उसके रक्षा प्रतिष्ठानों पर आतंकी समूहों और लोगों को शरण देने के सीधे आरोप लगाए हैं. इसके बाद अब ऐसा कोई रास्ता नहीं जिससे पाकिस्तान कभी भी सहमत होगा. कोई भी देश ऐसा नहीं करेगा.