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25 जून 1975 का वो काला दिन, याद कर सिहर उठते हैं लोकतंत्र सेनानी

लोकतंत्र सेनानियों द्वारा ली जा रही सरकारी पेंशन को लोकतंत्र सेनानी पंडित राजनाथ शर्मा ने सही नहीं बताया. उनका कहना है कि नैतिक रूप से उन्हें पेंशन नहीं लेनी चाहिए. आज ही के दिन देश में साल 1975 में आपातकाल की घोषणा हुई थी.

लोकतंत्र सेनानी
लोकतंत्र सेनानी

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Published : Jun 25, 2021, 7:34 AM IST

बाराबंकी :उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के लोकतंत्र सेनानी (democracy fighter) और सोशलिस्ट नेता (Socialist Leader) पंडित राजनाथ शर्मा (Democracy Fighter Pandit Rajnath Sharma) आपातकाल (emergency) में जेल गए लोकतंत्र सेनानियों द्वारा ली जा रही सरकारी पेंशन के पक्ष में नहीं हैं. इनका कहना है कि नैतिक रूप से इन्हें पेंशन नही लेनी चाहिए. उन्होंने कहा, राजनीति कोई पेशा नहीं है, ये तो कर्तव्यों का निर्वाह है. जब कोई नागरिक कर्तव्यों का निर्वाह करता है तो वो किसी मानदेय की इच्छा नहीं रखता. इन सभी मुद्दों को लेकर पंडित राजनाथ शर्मा ने आपातकाल की यादों को ईटीवी भारत से साझा की.

कब लगा था आपात काल
25 जून की तारीख देश के इतिहास के पन्नों में एक काले अध्याय की तरह है. आज ही के दिन देश में साल 1975 में आपातकाल की घोषणा हुई थी, जो 21 मार्च 1977 तक कुल 21 महीने की अवधि तक चली. देश के लोग आपातकाल की तारीख 25 जून कभी नहीं भूल सकते. आज भी इस तारीख को याद करके लोग सिहर उठते हैं. तत्कालीन राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा- 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा की थी. स्वतंत्र भारत के इतिहास में ये सबसे विवादित और अलोकतांत्रिक काल था. इस समय सारे चुनाव स्थगित हो गए और नागरिकों के अधिकारों को खत्म कर दिया गया. इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया. देश के चौथे स्तंभ प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया. जय प्रकाश नारायण ने इस अवधि को भारतीय इतिहास का सर्वाधिक काला समय बताया है.

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कौन होते हैं लोकतंत्र सेनानी
इंदिरा गांधी ने जब इमरजेंसी लगाया था तो उनके खिलाफ लोगों ने सत्याग्रह किया था. ये लोग 21 मार्च 1977 तक यानि 21 महीने तक जेल में रहे. उनको लोकतंत्र सेनानी कहा गया. इन लोगों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नीतियों का विरोध किया था, जिसकी वजह से इन्हें जेल में कैद कर दिया गया था.

मीसा (MISA- maintenance of internal security act) कानून और DIR (defence of india act) के तहत लोकनायक जय प्रकाश नारायण के सहयोगियों, उनके समर्थकों और समाजवादी विचारधारा मानने वालों को जेल भेजा गया था. आरएसएस, विद्यार्थी परिषद और कम्युनिस्टों को भी जेल भेजा गया. इन्हीं में शामिल थे राजनाथ शर्मा, जो लोकनायक के कट्टर समर्थक थे.

इमरजेंसी याद कर सिहर उठते हैं राजनाथ शर्मा
इमरजेंसी को याद करके राजनाथ शर्मा सिहर उठते हैं. उस वक्त उनकी उम्र तकरीबन 30 वर्ष थी. उन्होंने बताया कि 25 जून को वे किसी काम से देवां गए थे और शाम को वहां से लौटे तो पता चला कि इमरजेंसी लग गई है. उन्हें यकीन हो गया कि देर सवेर उनकी गिरफ्तारी हो जाएगी. हालांकि, जेपी की सम्पूर्ण क्रांति के जिले के अगुवा रहे राजनाथ शर्मा कुछ दिनों पूर्व ही नैनी जेल से छूटकर आये थे. गिरफ्तारी से बचने के लिए वे 26 जून को अपने गांव नसीपुर चले गए. वहां जब पुलिस की छापेमारी हुई तो बचते हुए हैदरगढ़ और फिर लखनऊ चले गए. इस बीच जिले के कई लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, लेकिन पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाई.

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15 जुलाई को देनी थी गिरफ्तारी, 14 को ही पकड़ा गए
लखनऊ में महमूदाबाद हाउस में रुककर 12 जुलाई को राजनाथ शर्मा ने योजना बनाई कि 15 जुलाई को वे अपने कुछ साथियों के साथ धनोखर चौराहे पर गिरफ्तारी देंगे. लिहाजा लखनऊ से बाराबंकी लौट आये. राजनाथ शर्मा 14 जुलाई को अधिवक्ता सरदार बेन्त सिंह के भाई अधिवक्ता अवतार सिंह के साथ उनकी स्कूटर पर बैठकर सफेदाबाद के समीप स्थित भुहेरा पार्क जा रहे थे. वे डीएम बंगले के पास पहुंचे ही थे कि उनकी स्कूटर को नगर कोतवाल अक्षयबर मिश्रा की गाड़ी ने ओवरटेक किया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद उन्हें कोतवाली ले जाया गया. जबकि अवतार सिंह को जाने दिया गया. उसी रात उन्हें जेल भेज दिया गया.

पत्नी की बीमारी के चलते कई बार मिली पैरोल
जेल में उनके दोस्त किताबें और पोस्टकार्ड रहे. किताबें पढ़कर वो अपना समय व्यतीत करते रहे. इस दौरान उनकी पत्नी की तबीयत खराब हुई तो उन्हें चिंता होने लगी. आखिरकार चार महीने बाद उन्हें 15 दिन की पैरोल मिल गई. पैरोल खत्म होने के बाद वे फिर जेल गए और फिर चार महीने बाद मार्च महीने में उन्हें फिर पैरोल मिल गई. इस तरह उनका मुकदमा चलता रहा और इमरजेंसी खत्म हो गई.

लोकतंत्र सेनानियों को मिल रही पेंशन
वर्ष 2005 में मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार में लोकतंत्र सेनानियों को बतौर पेंशन 500 रुपये प्रतिमाह देना शुरू किया था. साल भर बाद इसे एक हजार रुपये कर दिया गया. वर्ष 2007 में मायावती सरकार में पेंशन रोक दी गई. साल 2012 में बनी अखिलेश सरकार ने इसे फिर से शुरू कर दिया और पेंशन की रकम बढ़ाकर तीन हजार रुपये कर दी. एक साल बाद इसे 10 हजार और फिर 15 हजार रुपये कर दी गई. योगी सरकार में इसे बढ़ाकर 20 हजार रुपये कर दिया गया. वर्तमान में लोकतंत्र सेनानियों को 20 हजार रुपये पेंशन दी जा रही है. कई लोकतंत्र सेनानी हैं, जो पेंशन नहीं लेते हैं.

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