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2020 : सीएए, महामारी, बाढ़ और औद्योगिक हादसे से जूझता रहा असम - कोरोना वायरस

साल 2020 किसी के लिए आसान नहीं था. पूर्वोत्तर राज्य असम की बात करें, तो इस वर्ष राज्य को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. साल की शुरुआत सीएए-एनआरसी के विरोध प्रदर्शनों से हुई. इसके बाद कोरोना वायरस से फैली महामारी ने कहर बरपाया. वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया गया, जिससे लोगों की आजीविका प्रभावित हुई. पहले से परेशान लोगों के जीवन को बाढ़ ने तबाह कर दिया.

a year of struggle for assam
a year of struggle for assam

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Published : Dec 31, 2020, 7:19 PM IST

गुवाहाटी :असम में 2020 की शुरुआत संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के साथ हुई. फिर महामारी ने राज्य को अपनी गिरफ्त में लिया तथा लॉकडाउन लागू हो गया. इसके अलावा राज्य ने बड़ा पृथक-वास अभियान शुरू किया. वहीं आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए राज्य में नई राजनीतिक पार्टियां भी बनीं तथा राज्य को औद्योगिक तथा प्राकृतिक विभीषिकाओं का सामना भी करना पड़ा.

असम में कोरोना वायरस से संक्रमण का पहला मामला 31 मार्च को सामने आया था. बाहर से राज्य में पहुंचा एक व्यक्ति सिलचर में संक्रमित पाया गया और तब से अब तक इस खतरनाक वायरस ने राज्य में 1,040 लोगों की जान ली और 2,16,000 से ज्यादा संक्रमित हो चुके हैं. राज्य में महामारी की रोकथाम के लिए करीब 30 लाख लोगों को संस्थानिक और घर में पृथक-वास की अवधि से गुजरना पड़ा.

महामारी से निपटने के लिए राज्य में 550 समर्पित कोविड-19 अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र बनाए गए और देशव्यापी लॉकडाउन के बीच राज्य से बाहर फंसे लोगों को 2,000-2,000 रुपये की राशि दी गई.

मार्च से पहले राज्य में विरोध प्रदर्शन का दौर चल रहा था और यह प्रदर्शन देश के विवादित संशोधित नागरिका कानून को लेकर था, लेकिन मार्च में महामारी को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन ने इन प्रदर्शनों को रोक दिया. असम सरकार ने इन प्रदर्शनों पर सख्त रुख अपनाते हुए अखिल गोगोई जैसे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया.

इस कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए प्रताड़ित हिंदू, सिख, पारसी, बौद्ध और ईसाई लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है. इसको लेकर असम के मूल लोगों में इस बात की चिंता है कि इससे बांग्लादेश के अवैध मुस्लिम और हिंदू बंगाली प्रवासियों को नागरिकता मिल जाएगी और उनकी संस्कृति, भाषा और जमीन को खतरा पैदा होगा.

केंद्र और राज्य सरकार ने असम के लोगों की चिताओं को दूर करने के लिए उनसे वादा किया कि वे उनके राजनीतिक, भाषाई, सांस्कृतिक और जमीन संबंधी अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इस संबंध में असम समझौते की छठी धारा पर एक उच्च स्तरीय समिति से जल्द से जल्द रिपोर्ट जमा करने की अपील की.

इस 13 सदस्यों वाली समिति ने फरवरी में अपनी रिपोर्ट जमा की थी, लेकिन तब से यह मामला आगे नहीं बढ़ा है और इसको लेकर एक शब्द भी नहीं कहा गया. इसकी वजह से ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने 11 अगस्त को इस रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया. हालांकि, मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा है कि उनकी सरकार और केंद्र सरकार उस रिपोर्ट को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है.

वहीं अब तक राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) में भी कोई प्रगति नहीं हुई है. इस सूची में 19,06,657 लोग शामिल नहीं थे. कुल 3,30,27,661 आवेदकों में से 3,11,21,004 लोगों के नाम शामिल थे.

दिसंबर में एनआरसी राज्य समन्वयक हितेश देव सरमा ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय को बताया कि यह सिर्फ 'पूरक सूची' है और अंतिम सूची अभी बाकी है.

इस साल असम में दो नई पार्टियों का गठन भी हुआ, क्योंकि राज्य में 2021 में विधानसभा का चुनाव है. आसू और असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद (एजेवाईसीपी) ने असम जातीय परिषद (एजेपी) का गठन किया. वहीं कृषक मुक्ति संग्राम समिति ने राइजोर दल का गठन किया. दोनों ही पार्टी गठबंधन के लिए सहमत हुई हैं, लेकिन अभी तक इस संबंध में विस्तृत जानकारी नहीं मिल पाई है.

राज्य में विपक्षी पार्टी कांग्रेस और एआईयूडीएफ ने घोषणा की थी कि नए दल 'महागठबंधन' का हिस्सा होंगे, ताकि भाजपा और उसके सहयोगियों की सत्ता में वापसी को रोका जा सके और पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे, लेकिन गोगोई कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए और उनकी मौत 23 नवंबर को हो गई.

असम में महामारी के बीच भीषण औद्योगिक हादसा हुआ. बागजान में भारतीय तेल निगम लिमिटेड के कुएं में गैस का रिसाव होने लगा और यहां आग लगने की वजह से तीन लोगों की मौत हो गई. कुएं में लगी आग पर 173 दिन बाद काबू पाया जा सका, लेकिन इस आग ने 3,000 लोगों को इलाका छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया और इससे पड़ोसी मागुरी-मोटापुंग आर्द्रभूमि और डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान की जैव विविधता को बेहद क्षति पहुंची.

वहीं देहिंग-पटकाई वन्यजीव अभयारण्य के भीतर कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा कथित अवैध खनन का मुद्दा भी छाया रहा और राज्य सरकार ने इस संबंध में जांच के आदेश दिए हैं और गुवाहाटी उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई.

महामारी और औद्योगिक हादसे से पहुंची क्षति के बीच राज्य में बाढ़ की विभिषिका ने भी लोगों को खासा परेशान किया. बाढ़ की वजह से 29 जिलों में 60 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित रहे.

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वहीं यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (इंडिपेंडेंट) के उप प्रमुख कमांडर दृष्टि राजखोवा को सेना ने नवंबर में पकड़ा था और उसने 18 अन्य उल्फा उग्रवादियों के साथ दिसंबर में राज्य सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. इस घटना से अब तक बातचीत के लिए आगे न आने वाले इस संगठन को बड़ा झटका दिया है.

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