मेरठःप्रदेश के बहुचर्चित मलियाना कांड मामले में शनिवार को बड़ा फैसला आया. शनिवार को अपर जिला जज कोर्ट-6 लखविन्दर सूद ने 40 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी करने का आदेश दिया. 36 साल से कोर्ट में चल रहे इस मामले में अब तक 23 आरोपियों की मौत भी हो चुकी है. 1987 के इस मामले में 93 लोगों को नामजद आरोपी बनाया गया था. जबकि, अन्य 30 लोगों के खिलाफ कोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी.
एडीजीसी क्राइम सचिन मोहन ने बताया कि 23 मई 1987 को मलियाना कांड में वादी याकूब अली पुत्र नजीर निवासी मलियाना ने 93 लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज कराया था. इसमें 72 लोगों की मौत हो गई थी. वहीं, 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे. थाना टीपी नगर में दर्ज शिकायत में वादी पक्ष ने आरोप लगाया था कि समुदाय विशेष के लोगों को निशाना बनाकर हमला बोला गया था. इसमें आगजनी, मारपीट और खूब गोलियां भी चली थीं.
मामले में वादी सहित 10 ने कोर्ट में गवाही दी थी. लेकिन, अभियोजन आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य पेश करने में सफल नहीं हो पाए, जिसके चलते अदालत ने शनिवार को साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद 40 आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया. इनमें कैलाश भारती, कालीचरण, सुनील, प्रदीप, धर्मपाल, विक्रम, तिलकराम, ताराचंद, दयाचंद, प्रकाश, रामजी लाल, गरीबदास, भिकारी, संतराम, महेन्द्र, वीर सिंह, राकेश, जीते, कुन्नू, शशी, नरेन्द्र, कान्ति, त्रिलोक चंद, ओमप्रकाश, कन्हैया, अशोक, रूपचंद, ओमप्रकाश, पूरन, नरेश कुमार, राकेश, केन्द्र प्रकाश, सतीश, लख्मी और विजेन्द्र समेत अन्य 5 लोग शामिल हैं.
वहीं, इस मामले में वादी मो. याकूब, वकील अहमद, अली हसन, इस्लामुददीन पुत्र अब्दुल रसीद, रहीस अहमद, इस्लामुदीन पुत्र अल्ला राजी, मेहताब अली पुत्र अलताफ, मेहताब अली पुत्र अशरफ, मो. शाहिद हसन, फरीद अहमद, मो. जुल्फिकार, डा. वीके शर्मा, एसओ जगवीर सिंह और एसआई गुरूदीप ग्रेवाल ने गवाही दी.
ईटीवी भारत ने मलियाना कांड मामले में बचाव पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता छोटेलाल से खास बातचीत की. उन्होंने 40 आरोपियों के बरी होने और कोर्ट के निर्णय को एक दम सही ठहराते हुए तमाम बिंदुओं पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि बिना पुख्ता साक्ष्यों के यह मामला किसी भी अदालत में स्टैंड नहीं कर सकता.
सीनियर एडवोकेट छोटेलाल बंसल ने कहा कि यह अन्याय के ऊपर न्याय हुआ है. वह कहते हैं कि इस पूरे मामले में देखने में यह आया कि शासन प्रशासन ने पुलिस और पीएसी के दोषियों को बचाने के लिए निर्दोष लोगों को आरोपी बना दिया था. वह बताते हैं कि किस तरह से मलियाना में हुए इस पूरे घटनाक्रम से ठीक 1 दिन पहले हाशिमपुरा में उपद्रवियों ने पुलिस और पीएसी पर हमला बोला था. तब यह मामला काफी गंभीर हो गया था. इसके बाद अगले दिन वहां से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर शहर के दूसरी तरफ टीपी नगर थाना क्षेत्र के मलियाना में पीएसी ने नरसंहार किया था. उन्होंने कहा कि हालांकि वह मिश्रित आबादी बाहुल्य क्षेत्र है. लेकिन, एक धर्म विशेष के लोगों पर हमले हुए, जहां लोगों की जानें गईं. घरों में तोड़फोड़, आगजनी और लूट हुई.
इस मामले में वादी की तरफ से मुकदमा भी लिखवाया गया. लेकिन, मुकदमे में उस वक्त पुलिस और पीएसी को घटना का जिम्मेदार बताते हुए दोषी बताया गया था. जबकि, एफआईआर में उनका कहीं जिक्र तक नहीं किया गया. वह बताते हैं कि वोटर लिस्ट का सहारा लेकर 93 लोगों के खिलाफ मनगढ़ंत तरीके से एफआईआर दर्ज की गई थी. जबकि, यह सच नहीं था. उन्होंने बताया कि पैरवी के दौरान कई बार ऐसे तमाम साक्ष्य भी पेश किए थे, जिसमें देखा गया था कि गलत तरीके से वहां के तत्कालीन थाना प्रभारी की तरफ से जो 93 लोगों के खिलाफ मुकदमा लिखा गया था. उनमें से 10 से ज्यादा लोग तो ऐसे थे, जिनकी कई वर्षों पहले मौत हो चुकी थी. इससे लापरवाही साफ झलकती थी. वह कहते हैं कि यह भी पाया गया कि 1987 में मई में हुई इस घटना से सात से दस साल पहले भी लोगों की मौत हो चुकी थी.