कानपुरः सन् 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Former PM Indira Gandhi) की हत्या के बाद कानपुर में हुए दंगों को लेकर गठित एसआईटी (SIT) ने पुन: विवेचना वाले 11 मामलों में अब तक 67 आरोपित चिह्नित किए हैं. यह सूची शासन को दे दी गई है. आदेश मिलते ही गिरफ्तारी की जाएगी. 37 साल बाद दंगे के आरोपियों के नाम तय होने पर जब ईटीवी भारत की टीम ने दंगा पीड़ित से बात की तो उनका दर्द छलक कर सामने आ गया. उन्होंने कहा कि न्याय मिलना न मिलना बराबर है. उन्होंने कहा कि उस दंगे में पिता-भाई की हत्या करने के साथ दंगाइयों ने सबकुछ लूट लिया था.
दंगा पीड़ित गुरुविंदर सिंह भाटिया से जब उस दंगे के बारे में पूछा गया तो उनका दर्द छलक आया. वह बोले, आज भी याद है वह काली रात. मेरा मकान, मेरा सबकुछ चला गया. 37 साल बाद मिला न्याय किस काम का है.
पीड़ित ने बताई भयानक दास्तां. दंगे में गुरुद्वारे को लूट लिया गया. गुरुग्रंथ साहिब को लेकर पिता और भाई घर आ गए. यह नहीं मालूम था कि जान से मार दिए जाएंगे. वरना हम जीप से कहीं भाग जाते. मैं परिवार लेकर निकला तो बगल के स्कूल के एक चपरासी ने हमें शरण दे दी.
दंगाइयों ने मेरे घर पर धावा बोल दिया और घर में आग लगा दी. पिता सरदार हरबंस सिंह विश्व युद्द की दो लड़ाइयां लड़ चुके थे. दंगाइयों ने उन्हें जला दिया. छोटे भाई महेंद्र सिंह को भी जला दिया. बीमार मां को छोड़ दिया. इसके बाद मैं शरणार्थी कैंप चला गया. एसआईटी आई थी, उसे कुछ सबूत दिखाए थे. कुछ जगह जली हुई थी वह भी दिखाई है. हमें न्याय की उम्मीद नहीं थी और न हुआ. 37 वर्ष बाद क्या न्याय मिलेगा?
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार नुकसान की क्या भरपाई करेगी. कानपुर छोड़कर लुधियाना चला गया था. 1989 में फिर कानपुर लौटा और फिर से जिंदगी शुरू की. मेरी संपत्ति विवादित हो गई है. वह मिली ही नहीं है. मैंने अपना सबकुछ गंवा दिया उस दंगे में.
उन्होंने कहा कि पिता और भाई की याद आज भी आती है. आज भी वह दर्द सीने में है, जो उन्होंने अपनों को खोया है. उन्होंने कहा कि 37 साल बाद न्याय मिलना अन्याय ही है, क्योंकि इतनी देर से न्याय मिलना का कोई मतलब ही नहीं है.
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