रांची: झारखंड के इन चार मंदिरों में 9 अक्टूबर को जिउतिया (जीवित्पुत्रिका व्रत) नामक पर्व के अगले दिन यानी आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी को कलश स्थापना के साथ नवरात्रि के अनुष्ठान प्रारंभ हो गये थे. जिन देवी पीठों में 16 दिनों का नवरात्रि अनुष्ठान होता है, उनमें लातेहार जिले के चंदवा स्थित उग्रतारा मंदिर, बोकारो जिले के कोलबेंदी मंदिर, चाईबासा स्थित केरा मंदिर और सरायकेला-खरसावां में राजागढ़ स्थित मां पाउड़ी मंदिर शामिल हैं.
16 दिनों की नवरात्रि आराधना के पीछे की मान्यता के बारे में आचार्य संतोष पांडेय बताते हैं कि भगवान राम ने लंका विजय के लिए बोधन कलश स्थापना कर 16 दिनों तक मां दुर्गा की आराधना की थी. झारखंड के कई राजघरानों ने इस परंपरा को चार-पांच सौ वर्षों से जारी रखा है. संभवतः पूरे भारतवर्ष में और किसी स्थान पर 16 दिनों के नवरात्रि अनुष्ठान की परंपरा नहीं है.
इन चार मंदिरों में से लातेहार के चंदवा स्थित मां उग्रतारा नगर मंदिर की मान्यता सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में है. यह मंदिर हजारों साल पुराना बताया जाता है. शारदीय नवरात्रि में सामान्य तौर पर 16 दिनों का नवरात्रि अनुष्ठान तो यहां होता ही है, जिस वर्ष नवरात्रि वाले महीने के साथ मलमास जुड़ा हो, उस वर्ष 45 दिनों का नवरात्रि अनुष्ठान होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर तीन वर्ष पर एक वर्ष ऐसा होता है, जिसमें 12 के बदले 13 यानी एक अतिरिक्त मास होता है. इसे ही मलमास कहा जाता है.
खास बात यह है कि इस मंदिर में पूजा-आराधना लगभग 500 साल पहले हस्तलिखित पुस्तक के अनुसार होती है. इस पुस्तक के पन्ने अभी भी पूरी तरह सुरक्षित हैं और अक्षर चमकदार हैं. पुस्तक को सुरक्षित रखने के लिए इसकी प्रतिलिपि बनाने की विधि भी उसी में दर्ज है. स्याही किस तरह तैयार की जाएगी, कैसे लिखी जायेगी, ये सभी विवरण इसी पुस्तक में हैं.
इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए झारखंड के विभिन्न हिस्सों के साथ ही पड़ोसी राज्य बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ़ समेत कई अन्य राज्यों से श्रद्धालु यहां आते रहते है. मंदिर के पुजारी पंडित अखिलानंद मिश्र व पंडित विनय मिश्र बताते हैं कि 16 दिन पूजा के बाद विजयादशमी के दिन मां भगवती को पान चढ़ाया जाता है. आसन से पान गिरने पर माना जाता है कि भगवती ने विसर्जन की अनुमति दे दी. इस दौरान हर दो-दो मिनट पर आरती की जाती है. कभी-कभी तो पूरी रात पान नहीं गिरता और आरती का दौर निरंतर जारी रहता है. पान गिरने के बाद विसर्जन की पूजा होती है.