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15 साल की वान्या दुनिया को दे रही पर्यावरण संरक्षण की सीख

दुनिया जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रही है. विकास की राह पर दौड़ते दुनियाभर के देश पर्यावरण के विनाश में भागीदार हैं. ऐसे में कर्नाटक की 15 साल की वान्या पर्यावरण बचाने की सीख दे रही हैं. वो बीते सालों में बारिश के मौसम में हुए बदलाव से लेकर जंगल काटकर लगातार हो रहे निर्माण कार्य पर चिंता जाहिर करती हैं. वान्या सईमने ने 'chirps of a forest bird' नाम से ब्लॉग शुरु किया. जिसके लिए उन्हें मिस्ट्री ब्लॉगर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया.

वान्या सइमने
वान्या सइमने

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Published : Apr 29, 2021, 12:09 PM IST

हैदराबाद: कर्नाटक के उत्तर कन्नड जिले की रहने वाली 15 साल की वान्या सइमने जलवायु संकट पर ब्लॉग लिखती हैं. वान्या का जन्म पश्चिमी घाट के घने जंगलों से घिरे उस इलाके में हुआ जहां पहाड़ों की एक श्रृंखला पश्चिमी घाट के साथ-साथ चलती है. पश्चिमी घाट यहां के लोगों को बाढ़ और दूसरी प्राकृतिक आपदाओं से बचाते हैं. लेकिन बीते कुछ सालों में वान्या ने बाढ़, सूखा, वनों की कटाई, बांधों के निर्माण और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के कारण हुए जलवायु परिवर्तन से अपने घर और हर उस चीज पर खतरा मंडराते देखा है जिसे वो प्यार करती हैं. भले ही पश्चिमी घाट यूनेस्को की विश्व धरोहर है, फिर भी वोस क्षेत्र में नए बांध और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण होते देख रही हैं. जिससे उनके जंगलों और नदियों पर खतरा मंडरा रहा है. वान्या ने स्थानीय युवाओं से मिलकर जलवायु परिवर्तन और इसकी वजह से उसके घर पर होने वाले असर के बारे में जाना. जिसके बाद उसने अपने लोगों के भविष्य के लिए लड़ने का दृढ़ निश्चय किया.

पश्चिमी घाट- यूनेस्को की विश्व धरोहर

इन पश्चिमी घाटों को अपनी जैविक विविधता के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है. एक पर्वत श्रृंखला भारत के पश्चिमी तट के साथ-साथ करीब 30 से 50 किलोमीटर तक चलती है. जो केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली है. इन पर्वत श्रृंखला को श्रीलंका के साथ-साथ दुनिया के 8 जैविक विविधता वाले स्थानों में मान्यता प्राप्त है. पश्चिमी घाट के जंगल दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गैर भूमध्यरेखीय उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों में शुमार है.

जलवायु परिवर्तन का असर

जलवायु परिवर्तन पश्चिमी घाटों में वन्यजीवों को प्रभावित कर सकते हैं. पश्चिमी घाट उष्णकटिबंधीय क्षेत्र की पहाड़ी वन श्रृंखला है जो भारत में मॉनसून की बारिश के वितरण में अहम भूमिका अदा करता है. एक अध्ययन के मुताबिक, पश्चिमी घाटों के तापमान में पिछले 100 सालों में 0.8 डिग्री की बढ़ोतरी हुई है. हाल में स्प्रिंगर नेचर में प्रकाशित एक पेपर में चेतावनी दी गई है कि अगले 5 दशक में जलवायु परिवर्तन का गंभीर असर देखने को मिलेगा. जैसे कि भारतीय भूरा मोंगूज़ (जीव) जैसे कई वन्य जीवों के रहने के स्थान कम हो जाएंगे. जिससे वन संपदा और वन्य जीवों की संख्या पर असर पड़ना लाजमी है.

जंगलों की कटाई

निजी कंपनियां, सरकारी इमारतें और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण हमारे वनों और नदियों को खतरे में डाल रहे हैं. जंगलों की कटाई के कारण यहां रहने वाली जनजातियों के आवासों पर भी खतरा पड़ता है. जंगल कटने से जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास भी खतरे में पड़ जाते हैं जिसके कारण वो खाने की तलाश में गांवों और इंसानी बस्तियों तक पहुंच जाते हैं.

वान्या सइमने (photo: global citizen)

पश्चिमी घाटों को बचाने की पहल

वान्या सईमने ने 'चर्प्स ऑफ ए फॉरेस्ट बर्ड' नाम से ब्लॉग शुरु किया. जिसके लिए उन्हें मिस्ट्री ब्लॉगर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया.

वान्या के मुताबिक "जब में 5 साल की थी तो बारिश जून के महीने में शुरू हो जाती थी, लेकिन जब में 10 साल की हुई तो बारिश देर से आने लगी. जिसकी वजह से पानी की किल्लत होने लगी. साल 2019 में हमने खूब बारिश और बाढ़ का सामना किया और अब जब में 15 साल की हूं तो बारिश बहुत जल्दी हो रही है. बारिश का अचानक से कम होना ना बहुत ज्यादा होना, ये सामान्य नहीं है. जलवायु परिवर्तन की बदौलत औसत तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है जिससे पानी की किल्लत, सूखे या बाड़ जैसे हालात पैदा हो रहे हैं. साल 2019 में मेरी दोस्त का गांव एक महीने तक बाढ़ में फंसा रहा. कईयों ने अपने घर खो दिए. पानी घुटनों के आस-पास था और सारी सड़कें बंद थी. मुझे याद है हमारे गांव में भी सड़कें पूरी तरह से पानी में डूब गई थी. उस दौरान ना बिजली थी ना फोन में सिग्नल, हम घर से बाहर आने में भी डरते थे. मेरे दादाजी के मुताबिक पिछले 70 सालों में उन्होंने बरसात के मौसम में इतना बदलाव नहीं देखा जो उनकी जिंदगी पर असर डाले. ऐसी बारिश के कारण हम हफ्तों तक घर में रहने को मजबूर होते ही हैं लेकिन इससे हमारे पुल टूटते हैं, देशभर में कई जगह भूस्खलन से भी नुकसान होता है. हम खुशनसीब रहे कि हमारे खेत और गांव सुरक्षित थे लेकिन कई दूसरे गांव के लोगों ने अपने घर और खेत खो दिए, कईयों ने तो अपनी जिंदगी भी खोई. मौसम के इस बदलाव ने किसानों की फसल बर्बाद कर दी."

"जंगलों की कटाई से लोगों को नुकसान हो रहा है. जनजातियों ने अपनी जमीन और घर खो दिए हैं. तंदुए, मोर, हाथी और दूसरे जंगली जानवरों ने अपने आवास खो दिए है. जिसके कारण वो खाने की तलाश में हमारे गांवों तक पहुंचते हैं. हम उन्हें दोष नहीं दे सकते. उनके पास पर्याप्त खाना नहीं है क्योंकि जंगल खत्म हो रहे हैं"

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