भोपाल। मध्यप्रदेश की दस वर्ष की देवयानी और शिवरंजनी ने इस छोटी उम्र में किताब लिख डाली है, कमाल सिर्फ इस उम्र में किताब लिख देना भर नहीं है. कमाल इनकी किताब का विषय भी है. भारत की सबसे कम उम्र की लेखिकाओं में शुमार देवयानी और शिवरंजनी ने भारत की सबसे कम उम्र की जासूस सरस्वती राजामणि को अपनी किताब के विषय के तौर पर चुना. 'सरस्वती राजामणि- एक भूली बिसरी जासूस', इस नाम से आई इनकी किताब में आजाद हिंद फौज की सबसे छोटी सिपाही, एक गुमनाम स्वाधानीता सेनानी की कहानी है. ये किताब आजादी का 75 वर्ष मना रहे देश को इन जुड़वा बहनों की सौगात भी है. अब इस नेक काम के बाद सीएम शिवराज ने किताब का विमोचन किया है. Azadi Ka Amrit Mahotsav, Indian independence day
मालूम रहे आजादी की कीमत:भारत की आजादी में बच्चों का क्या योगदान था? देवयानी और शिवरंजनी इस सवाल के पीछे भागते हुए आजाद हिंद फौज की सबसे छोटी उम्र की सिपाही सरस्वती राजामणि तक पहुंच गईं. इंटरनेट की मदद से पहले उनके विषय में जानकारी जुटाई. और फिर दोनों ने तय किया किताब तो उस बहादुर लड़की पर ही लिखी जाएगी, जिसने आजाद हिंद फौज के लिए अपने सारे गहने दान कर दिए थे. गर्मी की छुट्टियों ने भरपूर वक्त देने के बाद देवयानी और शिवरंजनी ने करीब एक साल में ये किताब पूरी कर ली. चूंकि ये किताब इन दोनों बहनों की साझा कोशिश है. लिहाजा कहानी कैसे पेश की जाए. इस विचार से लेकर उसके साथ बनाए जाने वाले चित्रों तक पहले दोनों चर्चा करती थीं, फिर एक राय होकर काम में आगे बढ़ाती थीं. Book on Revolutionary
शहीद के त्याग और समर्पण का करें सम्मान: दस वर्ष की शिवरंजनी कहतीं हैं कि, "यह किताब इसलिए लिखी जानी जरुरी थी जिससे हमारी पीढ़ी उन देशभक्तों को भूल ना जाए, जिनकी बदौलत हमें आजादी मिली." देवयानी कहती हैं, "यही वजह थी कि हमने सर्च किया और सरस्वती राजामणी के साथ एक ऐसी गुमनाम स्वाधीनता सेनानी की कहानी चुनी, जिनके बारे में लोग ज्यादा जानते नहीं हैं. उन्होंने अपने पूरे जेवर आजाद हिंद फौज को दान दे दिए थे. 16 वर्ष की छोटी उम्र में वो आजाद हिंद फौज का हिस्सा बन गई, देश की सबसे छोटी उम्र की जासूस बनीं. हमारे जैसे बच्चों को ही नहीं, बड़ों को भी उनके बारे में जानना चाहिए. शिवरंजनी ने कहा कि, "ऐसे कितने गुमनाम शहीद होंगे, जिनकी वजह से हमको आजादी मिली है. हमारी ड्यूटी है कि हम उनके त्याग और समर्पण का सम्मान करें."
36 पन्नों में दर्ज देशभक्त लड़की का संघर्ष:कुल 36 पन्नों की किताब में एक देशभक्त सेनानी की कहानी को सिलसिलेवार शब्दों में उतारना इन नन्हीं लेखिकों के लिए इतना मुश्किल नहीं था. चुनौती थी उस दौर की कहानी को तस्वीरों में बयां करना. इस किताब की खासियत है कि हर पन्ने पर कहानी के एक हिस्से के साथ उससे जुड़े चित्र भी मौजूद हैं, जो देवयानी और शिवरंजनी ने ही बनाए हैं. चित्रों में गुलामी के दौर के भारत और बर्मा को उतार पाना आसान नहीं था. इसके लिए भी उन्होने काफी रिसर्च किया है. देवयानी बताती हैं, "सरस्वती राजामणि का जन्म म्यांमार में हुआ था, वो भारत की पहली महिला जासूस थी. आजाद हिंद फौज में रहकर उन्होने अंग्रेजों की जासूसी की और कई अहम जानकारियां जुटाई थी. हमें अपने चित्रों में उस वक्त का भारत दिखाना था, उस दौर का म्यामार दिखाना था, तो इसके लिए हमें काफी रिसर्च करना पड़ा."