हरीश कुमार झा से सुनिए 'मेघदूत के लहुटती'
'हमर भाखा के मया' मा आज के हमर खास मेहमान हे छत्तीसगढ़ी भाखा के जाने माने लेखक अउ कवि हरीश कुमार झा. हरीश कुमार झा महाकवि कालीदास के महान रचना मेघदूत ले प्रेरित हो के पर्यावरण अउ प्रेमी के विरह ला अपन रचना 'मेघदूत के लहुटती' काव्य म उतारे हे. ऐकर रचना के बारे में हरीश कुमार झा हा बता थे 'पेपर म एक दिन के गंगोतरी ह पाछू घुंच गे. काबर घुंच गे? परियावरन के सत्यानास के सेती. अगास म ओजोन के चद्दर म छेदरा हो गे अउ सूरुज के अलटरा वायलट किरन ह धरती म सिद्दा सिद्धा पहुंच के हिमालय के गलेसियर ल टेघला डारिस. कोनो कोनो एला एलनीनो परभाव, कोन गिरनी हाउस के परभाव घलो बता थें. टिहरी बांध ल खोलिन त मोर जीव घक्क ले हो गे. टिहरी कसबा समेत कतको गांव, अपन घर बार , खेत बियारा अउ दइहान समेत बांध के पेट म अमा गे. हाथ का आइस थोरकिन बिजली अउ दिल्ली के पीए बर थोरकिन पानी. अउ खतरा कतका बड़ बिसायेन. ये देस के जम्मो के जम्मो नदिया मन परदूसित हो गे हवंय. नदिया के पानी चाही वो दिल्ली म जमुना के होय चाहे कानपुर म गंगा के उज्जइन म छिपरा के होय, के चम्बल, नरमदा, या महानदी सब्बो नाली असन बजबजावत हें, ये दुरदसा ल देख के परियावरण उपर लिखे के बिचार जागिस त ये रचना करे हंव' त आप मन आनंद लौ 'मेघदूत के लहुटती' के...