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सरगुजा में नक्सल एम्बुश में फंसी टीम, 3 जवानों की हुई मौत, जानिए कैसे बाहर आई

नक्सल आतंक से कभी सरगुजा संभाग भी थर्राया करता था. आज भी बलरामपुर जिले के सीमावर्ती गांव में नक्सल घटनाएं होती रहती है. Team trapped in Naxal ambush जब नक्सली उत्तर छत्तीसगढ़ में प्रभावी थे, तब एसटीएफ, पुलिस और सीआरपीएफ की एक संयुक्त टीम पुंदाग क्षेत्र में नक्सलियों के एम्बुश में फंसी थी. surguja naxal attack घंटों मुठभेड़ चली और 3 जवान शहीद हो गये थे. इस ऑपरेशन में शामिल पुलिस के जवान इमरान गालिब से हमने बातचीत की है. Surguja news update

Story of team trapped in Naxal ambush
नक्सल एम्बुश में फंसी टीम की कहानी

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Published : Dec 22, 2022, 8:37 PM IST

नक्सल एम्बुश में फंसी टीम की कहानी

सरगुजा: इमरान बताते हैं कि " हमारे वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना मिली की नक्सली शहीदी सप्ताह मना रहे हैं. Team trapped in Naxal ambush पुंदाग में नक्सलियों की आमद की खबर मिली थी. हमारी एक संयुक्त टीम बनी. जिसकी लीडिंग कंपनी कमांडर बृजेश तिवारी कर रहे थे. एसटीएफ, जिला पुलिस और सीआरपीएफ की टीम पुंदाग के लिये रवाना हुई थी बन्दरचुआ होते हुये. surguja naxal attack 3 सितंबर 2008 को जब हम लोग 2-3 किलोमीटर आगे गये तो एक बड़ा आईईडी मिला उसको डिफ्यूज करके हम लोग कैम्प वापस आ गये." Surguja news update


3 जवान हुए थे शहीद:इमरान ने आगे बताया कि "दूसरे दिन 4 सितंबर 2008 को हमारी टीम दूसरे रास्ते से रवाना हुई. वहां पीपरढाब नाम की एक नदी है. जैसे ही नदी पार करके मैं बैठा ही था कि गोली चली. गोली चलते ही समझ गया कि हम लोग एंबुश में फंस गये हैं. नक्सलियों ने जबरदस्त तैयारी की थी. टिफिन बम बहुत सारे लगाए गये थे. वहीं पर हमारी फोर्स पोजिशन लिए हुई थी. टिफिन बम फूट रहे थे. लेकिन उनका टिफिन बम बहुत ज्यादा कारगर नहीं था. फायरिंग दोनों तरफ से जबरदस्त हो रही थी. उसमें 3 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए थे. 2 तो आन स्पॉट शहीद हो गये थे. एक मेरे बगल में लेटा हुआ था."


2 इंच मोर्टार से मिली सफलता:इमरान आगे कहते हैं कि"मुठभेड़ चल ही रही थी तभी बृजेश तिवारी सर का निर्देश मिला, सेट मेरे ही पास था. एलएमजी मैन हमारा घायल हो चुका था, 2 इंच मोर्टार एक सीआरपीएफ जवान के पास था. तो उसने मुझसे कहा गया कि 2 इंच मोर्टार दागा जाये. जब 2 इंच मोटर दागा गया तब नक्सलियों के पैर उखड़े. मैं क्योंकि नया नया ट्रेनिंग करके आया था. 2008 में मेरी पोस्टिंग कुसमी थाने में हुई थी. एक जोश भी था लड़ाई का पहला अनुभव था. हमारे साथ एक सीनियर हेड कांस्टेबल भी थे. मैंने उनको कहा सर आप कवरिंग दीजिये. मैं ऊपर जाकर फायरिंग करता हूं. उन्होंने मना किया कि नक्सली उपर बैठे हैं. ऊपर जाओगे तो सीधे गोली लगेगी तो हम लोग नीचे से ही फायरिंग किये."



2 की मौके पर एक की रास्ते में गई जान: "लगभग एक घंटे तक हम लोग गोलीबारी में फंसे रहे. जब 2 इंच मोटर और 10-12 दागे गये तब जाकर नक्सलियों की फायरिंग बंद हुई. उसके बाद हम लोग आगे बढ़े कुछ साथी जो पीछे छूट गये थे, मेरे को उनको लेने भेजा गया. एक साथी नदी के उस पार घायल हुआ था, वो हमारा एलएमजी मैन था. उसके बाजू में गोली लगी थी. बाजू पूरा उखड़ गया था. मेरे को लगता है थ्री नाट थ्री की गोली रही होगी. 2 डेड बॉडी वहीं थी. उसको वहां से लेकर चले. कुछ स्थानीय लोगों की मदद ली. रमजान का महीना था. कुछ साथियों ने रोजा रखा था. वहां से घायल साथियों के लिए वरिष्ठ अधिकारियों ने लगातार संपर्क किया, हेलीकॉप्टर की मांग की गई लेकिन उपलब्ध नहीं हो सका."


सीआरपीएफ जवान ने गोदक में तोड़ा दम:एक बड़ी दुखद बात ये थी कि, जो घायल हुये थे. जिनको हम लोग ला रहे थे. एक सीआरपीएफ के जवान ने हम लोगों की गोद में ही दम तोड़ दिया. ये बड़ी दर्दनाक घटना थी. उसको दर्द इतना ज्यादा था कि वो बोल रहे थे, साहब मेरे को गोली मार दो. उसकी नई नई शादी हुई थी. वो बता रहा था की मेरी वाइफ प्रेग्नेंट है, बचा लीजिये, लेकिन हम लोग कुछ नहीं कर पाये."

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नक्सली भी मारे गए:डर तो बिल्कुल भी नहीं था. क्योंकि एकदम यंग थे, नया खून था. नई उमंग थी. बस किसी तरह ये लगता था कि साथियों की केजुअल्टी कम हो. कैजुअल्टी हुई तो वो मंजर दर्दनाक था, हम लोगों के लिये. बाद में सूचना मिली, वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि कुछ नक्सली भी मारे गये थे. नक्सली जब मारे तभी उनका पैर उखड़ा वहां से. बाद में टीम घटनास्थल का मुआयना करने गई थी. जिस तरह से एम्बुश का प्रबंध किया था, उससे लग नहीं रहा था कि नक्सली यहां से हटेंगे. लेकिन नक्सली बुरी तरह से मारे गये. बहुत से नक्सली घायल हुये थे. बीरसाय का दस्ता था. अभी तो सरेंडर भी कर दिया है."

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