सूरजपुर: भैयाथान ब्लॉक के छोटे से गांव रूनियांडीह के शासकीय पूर्व माध्यमिक स्कुल में पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राएं घर से अपने साथ किताबें लेकर नहीं आते हैं. अगर उनके हाथ में कुछ होता है, तो केवल एक रफ नोटबुक और पेन. ये आइडिया जनरेट करने वाले हेडमास्टर साहब सीमांचल त्रिपाठी को 'टीचर ग्लोबल अवार्ड' मिला है.
बस्ते के बोझ से मिली आजादी, पढ़ाई के नए तरीके से 'क्रांति' ला दी साथ में किताबें नहीं लाते छात्र-छात्राएं
अब आप सोच रहे होंगे कि भला बिना किताबों से पढ़ाई कैसे होती है, हम आपको बता दें कि स्कूल में एडमिशन लेने के साथ ही छात्र-छात्राओं को किताबों के दो सेट दिए जाते हैं, जिसमें से एक सेट छात्र अपने साथ घर ले जाते हैं और दूसरे सेट को स्कूल में ही रख दिया जाता है.
क्यों कम नहीं हो सकता बस्तों का बोझ
स्कूल के हेडमास्टर ने बताया कि, अमेरिका जैसे अमीर देश एक किताब को दो से तीन बार उपयोग में लाते हैं, तो फिर भारत बच्चों के कंधों से किताबों का बोझ कम करने के लिए नए प्रयोग कैसे नहीं कर सकता.
प्रभारी शिक्षा अधिकारी ने की तारीफ
स्कूल के हेडमास्टर का कहना है कि इस व्यवस्था को एक्सपेरीमेंट के तौर पर शुरू किया गया है और सफल होने पर इसे दूसरे स्कूलों में भी इम्लीमेंट किया जाएगा. रुनियाडीह स्कूल की इस पहल को गांव के लोग ही नहीं प्रभारी शिक्षा अधिकारी से भी खूब तारीफ मिली है.
काबिल-ए-तारीफ है स्कूल का प्रयोग
हम भी बस यही दुआ करेंगे हेडमास्टर साहब का ये प्रयोग सफलता की बुलंदिया हासिल करे और वो दिन जल्द आए जब इस स्कूल की तरह भारत का हर स्कूल बैग लेस हो और नौनिहालों को बस्ते से बोझ से आजादी मिले.