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रामाराम मेले में केरलापाल और कोर्रा परगना के सैकड़ों देवी-देवता हुए शामिल - ramaraam mela

रामाराम मेले का आयोजन किया गया था. इस मेले में केरलापाल और कोर्रा परगना के सैकड़ों देवी देवता शामिल हुए. इस मंदिर से जुड़ी कई कहानी और आस्था है जिसके अवशेष आज भी पत्थर पर है.

रामाराम मेला
रामाराम मेला

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Published : Feb 11, 2020, 8:57 PM IST

Updated : Feb 12, 2020, 10:03 PM IST

सुकमा: दक्षिण बस्तर का सबसे बड़ा ऐतिहासिक रामाराम मेले का आयोजन किया गया. इस मेले में सुकमा जिले के केरलापाल और कोर्रा परगना के सैकड़ों देवी देवता शामिल हुए. सबसे पहले विधि विधान से माता रामारामिन सहित मेले में आमंत्रित देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना हुई. मेले में अंचल से आए मांझी-चालकी एक दूसरे को गले लगाकर नगाड़ों और अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर नाचते दिखे. रामाराम मेले के बाद अंचल में मेला-मड़ाई का दौर शुरू हो जाता है.

रामाराम मेले में केरलापाल और कोर्रा परगना के सैकड़ों देवी-देवता हुए शामिल

जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर रामाराम में माघ पूर्णिमा के दूसरे मंगलवार को हर साल की तरह इस साल भी बड़े धूमधाम से मेले का आयोजन किया गया. चार राज्यों से यहां लोग पहुंचते हैं. रामाराम मेला सुकमा जिले का एक महत्वपूर्ण मेला माना जाता है. जहां बड़ी संख्या में लोगों का हुजूम लगता है और लोग माता रामारामिन देवी के दर्शन के लिए जुटते हैं. यह न केवल स्थानीय ग्रामीणों की आस्था का केंद्र है, बल्कि आम लोगों से लेकर राजनीतिक तबकों तक देवी को लेकर एक बड़ा आस्था का केंद्र रहा है. रामारामिन मंदिर को सुकमा राजपरिवार का एक अहम हिस्सा भी माना जाता है, जहां हर साल राज परिवार की ओर से चढ़ावा चढ़ाया जाता है.

कभी माता चिटमटिन का मंदिर हुआ करता था
बताया जाता है कि मंदिर से लग कर ही एक पहाड़ी है. सदियों पहले इस पहाड़ी पर माता का मंदिर हुआ करता था. जिसके कुछ अवशेष आज भी नजर आते हैं. माता के प्रति गहरी आस्था रखने वाले केरलापाल परगना के मनीराम नायक ने बताया कि, प्राचीन काल में माता चिमटिन का मंदिर ऊपर पहाड़ी पर हुआ करता था. पूर्वजों के अनुसार पूजा करने के बाद पुजारी ने लूटा और थाल वहीं छोड़कर लौट आया था. कुछ समय बाद जब वह पूजा सामग्री लेने पहाड़ पर गया तो माता अपने सेवकों के लिए भोजन की व्यवस्था कर रही थी. पुजारी को देख देवी ने पूजा का लोटा और थाल फेंक दिया.

पत्थर पर उकेरी गई थाल ताल का प्रतीक
इस दौरान माता ने कहा कि, 'जहां यह लोटा रुकेगा वहां मंदिर स्थापित कर लेना. जहां लोटा गिरा उस स्थान पर वर्तमान में मंदिर का निर्माण किया गया है. जिसे देखने सैकड़ों लोग पहाड़ी पर पहुंचते हैं'.

22 पीढ़ियों से कर रहे हैं सेवा
मंदिर की देखरेख और सेवा कर रहे पुजारी दुर्गा प्रसाद ने बताया कि, '22 पीढ़ियों से इनका परिवार माता की सेवा कर रहा है. पिता दादा और परदादा के बाद मेले में पूजा-अर्चना करने की जिम्मेदारी अब इन्हें मिली है'. उन्होंने बताया कि, 'भगवान श्रीराम अपने वनवास काल के दौरान रामाराम में समय बिताया था. यहां उन्होंने भू देवी की आराधना की थी. जिसे आज माता चिटमटिन के नाम से जाना जाता है.

Last Updated : Feb 12, 2020, 10:03 PM IST

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