सुकमा:छत्तीसगढ़ में कई सरकारें आईं और चली गई, लेकिन नक्सल प्रभावित इलाका सुकमा के माथे पर लगा पिछड़ेपन का कलंक ज्यों का त्यों बना हुआ है. वर्तमान सरकार भी विकास के तमाम दावे और वादे का ढोल पीट रही है, लेकिन सुकमा जिले में शायद ही कोई आंगनवाड़ी केंद्र हो जो जिसकी बिल्डिंग सही हो जिसमें बच्चे बैठ कर पढ़ सकें.
2 साल से अधूरा है आंगनबाड़ी भवन, जर्जर मकानों में संवर रहा नौनिहालों का भविष्य बदहाली का आलम यह है कि नया आंगनबाड़ी केंद्र बनने के बाद भी नौनिहालों को जर्जर भवन में ही बैठाया जा रहा है और इसकी वजह से हर वक्त एक अनहोनी का डर सताते रहता है. मामला ग्राम पंचायत जिरमपाल का है, ग्राम पंचायत के जिम्मेदारों ने यहां आंगनबाड़ी तो बनवाया, लेकिन उसे पूरा किए बिना ही बीच में छोड़ दिया गया, जिसकी वजह से जर्जर भवन में आंगनबाड़ी संचालित किया जा रहा है.
2017 में मिली थी भवन को स्वीकृति
जिरमपाल के आश्रित गांव मुतोड़ी में वर्ष 2017 में आंगनबाड़ी भवन की स्वीकृति मिली थी और इसके लिए शासन की ओर से बकायदा चार लाख की राशि स्वीकृत की गई थी, जिसके बाद पंचायत के प्रतिनिधियों ने जगह का चुनाव कर इसका निर्माण तो शुरू किया, लेकिन इन जिम्मेदारों ने भवन का ढांचा खड़ा कर इसे अधूरा ही छोड़ दिया.
अधूरा पड़ा है भवन
भवन अधूरा होने की वजह से जर्जर भवन में आंगनबाड़ी संचालित किया जा रहा है. मुतोड़ी केंद्र में कुल 18 बच्चे हैं, भवन जर्जर होने की वजह से पालक उन्हें केंद्र नहीं भेज रहे हैं. शुक्रवार को केंद्र में मात्र 4 बच्चे ही थे. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हुंगी ने बताया कि, '2 साल से आंगनवाड़ी भवन निर्माणाधीन है. बारिश से पूर्व भवन पूर्ण किया जाना था, लेकिन बारिश भी बीत गया और भवन अधूरा पड़ा है.
क्लास में पकाया जा रहा खाना
जिरमपाल के ही आश्रित गांव डब्बारास में भी ऐसा ही नजारा देखने को मिला है. यहां भी आंगनबाड़ी भवन अधूरा है. भवन में विद्युतीकरण के साथ ही दूसरे जरूरी काम अधूरे पड़े हैं, जिसकी वजह से केंद्र को पुराने स्कूल में संचालित किया जा रहा है. यहां शून्य से 6 साल के 20 बच्चे दर्ज हैं. भवन के अधूरे होने कारण बच्चों को जर्जर मकानों में बैठाया जा रहा है. एक ही भवन में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है, तो वहीं उनके लिए वहीं खाना भी पकाया जा रहा है.
मवेशियों का रहता है डेरा
दोनों केंद्र अस्थाई रूप से संचालित किए जा रहे हैं. यहां आवारा मवेशियों और दूसरे जानवरों का भी डेरा रहता है. केंद्र लगने से पहले कार्यकर्ता और सहायिका कमरों की साफ सफाई करते हैं. इसके बाद ही आंगनबाड़ी केंद्र लगाया जाता है.
पोषक आहार रखने की नहीं है व्यवस्था
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अनिता कश्यप बताती हैं कि, 'उनकी ओर से कई बार पंचायत प्रतिनिधियों से केंद्र में होने वाली समस्याओं से अवगत कराया गया है. लेकिन नए भवन का काम पूरा नहीं होने की बात कही जाती है. रेडी टू ईट और दूसरे पोषक आहार रखने के लिए भी भवन में समुचित व्यवस्था नहीं है'.
मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने कही ये बातें
इस मामले में जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी विनोद कुमार ओगरे का कहना है कि 'उनकी पदस्थापना से पहले ही आंगनबाड़ी भवन अधूरे पड़े हैं. उनके अथक प्रयासों से ही आज भवन की छत डाली गई है'. वे बताते हैं कि 'सुकमा में वे करीब 3 साल से सेवा दे रहे हैं. उनका स्थानांतरण हो गया है और इस माह के 24 तारीख को वे रिलीव भी हो जाएंगे. साहब आंगनवाड़ी भवनों को पूरा करना अपनी उपलब्धि बताते हैं, लेकिन सवाल उठता है कि 3 साल के लंबे कार्यकाल में साहब महज दो आंगनबाड़ी भवनों को पूर्ण कराने में असफल रहे हैं तो अन्य जनहित की योजनाओं का क्रियान्वयन कैसे किया होगा इसे सहज ही समझ सकते हैं.
कैसे होगा योजनाओं का क्रियान्वयन
अब सवाल उठता है कि 3 साल के लंबे कार्यकाल में साहब महज दो आंगनबाड़ी भवनों को पूरा कराने में असफल रहे हैं, तो इन्होंने जनहित की दूसरी योजनाओं का क्रियान्वयन कैसे किया होगा.