राजनांदगांव: दिवाली में इस साल ईको फ्रेंडली दीयों की डिमांड बढ़ गई है. सभी के घर, आंगन और दफ्तरों को रोशन करने के लिए लिटिया गांव की महिलाएं गोबर के दीयों का निर्माण कर रही हैं. जिले के लिटिया गांव में महिलाएं रंग-बिरंगे दीये बनाकर सशक्तिकरण की तरफ अपने कदम बढ़ा रही हैं. महिलाएं गोबर और मिट्टी की मदद से दीये तैयार कर रोजाना 150 से 200 रुपये कमा रही हैं. गोबर के बने इन दीयों की देश ही नहीं विदेशों में भी बहुत डिमांड है. लिटिया में बनने वाले ये दीप अपने राज्य के साथ ही पड़ोस के 10 राज्यों को भी रोशन करने का काम कर रहे हैं. गोबर के दीये बनाकर जहां एक ओर महिलाएं लाभ कमा रही हैं, तो वहीं गोवंश बचाने के लिए उनकी ये पहल समाज के लिए मिसाल बन गई है.
महिलाएं बना रही गोबर के दीयें पढ़ें-यह दिवाली ईको फ्रेंडली दीये वाली, सीएम हाउस में भी बिखेरेंगे रोशनी
राजनांदगांव के ग्राम पंचायत लिटिया की महिलाओं ने मिट्टी और गोबर की मदद से दीये तैयार करने का काम शुरू किया है. गांव के युवक आर्य प्रमोद की पहल पर महिलाओं ने दीये तैयार करने का काम शुरू किया है. इस काम में उन्हें अच्छी-खासी आवक भी हो रही है.
गांव की महिलाओं को मिला रोजगार गांव के युवा आर्य प्रमोद ने महिलाओं को एकजुट कर गोधन बचाने की दिशा में काम करने का प्रस्ताव रखा. इस बात को लेकर महिलाएं सहमत भी हुईं. आर्य प्रमोद ने उन्हें गोबर का बेहतर तरीके से उपयोग करने के लिए प्रेरित किया. इस ओर महिलाओं को दीये बनाने की ट्रेनिंग दी गई. इसके बाद से ही महिलाएं रोज 800 से 900 दीये बना रही है.
दूसरे राज्यों से आ रही डिमांड
आर्य प्रमोद ने ETV भारत को बताया कि गोबर के दीये बनाने के लिए उन्होंने सबसे पहले गांव की महिलाओं को एकजुट किया. फिर उन्हें दीये बनाने की ट्रेनिंग दी. महिलाएं बेहतर तरीके से काम कर रही हैं और ट्रेनिंग के बाद दीए बनाकर उनकी पैकिंग भी कर रही हैं. पैकिंग किए हुए दीयों को ऑनलाइन साइट्स पर बेचने की जवाबदारी उनकी है. अलग-अलग राज्यों से संपर्क कर उन्हें लगातार ऑर्डर भी मिल रहे हैं. तकरीबन 10 राज्यों से अब तक उन्हें गोबर के दीए बनाने के ऑर्डर मिल चुके हैं. उनकी लगातार सप्लाई की जा रही है. दिवाली से पहले उन्हें ऑर्डर मिल चुका है, जिसे पूरा करने की तैयारी में लोग जुट गए हैं.
गौवंश बचाने के लिए प्रभावी कदम
गांव में गौवंश को बचाने के लिए गोबर से दीए बनाने का काम शुरू किया गया. शुरुआत में उन्हें काफी दिक्कतें आईं, लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ बेहतर होता गया. देश के अलग-अलग राज्यों से दीयों की अच्छी डिमांड आ रही है. उन्होंने बताया कि उनके पास अब तक एक लाख दीए बनाने के ऑर्डर आ चुके हैं. दिवाली के करीब आते की ऑर्डर बढ़ने लगते हैं. गाय से मिलने वाले गोबर और गोमूत्र का उपयोग करने पर गौवंश को बचाने की दिशा में बड़ी पहल होगी. जैसे-जैसे गाय से मिलने वाले उत्पादों की उपयोगिता बढ़ेगी, गांव में गौवंश का महत्व और भी अधिक बढ़ जाएगा. इसके साथ ही लोग गाय पालने की दिशा में भी प्रेरित होंगे.
गोबर के दीये से हो रहा लाभ
- गांव की महिलाओं को मिल रहा रोजगार
- 1 दिन में महिलाएं तकरीबन 900 दीए बना लेती हैं और इनके एवज में उन्हें 150 रुपये तक का भुगतान किया जाता है.
- दीये बनाने के लिए गोबर की खरीदी भी की जाती है, जिससे गोबर लाने वाले लोगों को 1 दिन में तकरीबन 70 से 100 रुपये का फायदा मिल रहा है.
- गोबर के दीये बनाने के बाद इन्हें पैकिंग कर अलग-अलग डिजाइन के आधार पर अलग-अलग मूल्य पर खुले बाजार में बेचा जा रहा है.
- गोबर से बने दीयों की कीमत 20 से लेकर तकरीबन 200 रुपये तक तय की गई है.
- 10 राज्यों से गोबर से बने दीयों के करीब एक लाख क्वांटिटी के ऑर्डर मिल चुके हैं.
- गांव की एक दर्जन महिलाओं को इस काम से मुनाफा हो रहा है.
हिंदू धर्म में गोबर का बड़ा महत्व
ज्योतिषाचार्य सरोज द्विवेदी का कहना है कि हिंदू धर्म में गाय के गोबर का काफी महत्व है. खासकर दिवाली जैसे पर्व में गोबर से ही घर आंगन को लीपा जाता है. भगवान गौरी और गणेश के निर्माण के लिए भी गोबर का ही उपयोग किया जाता है. गोवर्धन पूजा के अवसर पर गाय के गोबर का विशेष महत्व है इसके साथ ही अगर ग्रामीण परिवेश के लोग गोबर का उपयोग कर दीये बना रहे हैं और उसका उपयोग कर रहे हैं तो गौवंश को बचाने के लिए इससे बड़ी पहल नहीं हो सकती.