राजनांदगांवःआधुनिकता की ओर बढ़ते समाज से पारंपरिकता दूर होती जा रही है. पोला पर भी कुछ ऐसा ही नजारा रहा. पोला के त्यौहार में पहले बच्चे मिट्टी के खिलौनों से खेलते हुए दिखाई देते थे. लेकिन इस आधुनिक समय में टीवी और मोबाइल ने बच्चों को मिट्टी के खिलौनों से दूर कर दिया है.
पिछले 10 साल के मुकाबले अब मिट्टी के खिलौनों की बिक्री में गिरावट देखी जा रही है. लगभग 70 प्रतिशत तक मिट्टी के खिलौनों की बिक्री में कमी आई है. इस कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों ने खिलौनों का निर्माण करना भी कम कर दिया है. इसके चलते अब पोला पर्व पर मिट्टी के खिलौने से खेलने की परंपरा भी खत्म होती नजर आ रही है.
बच्चों के पास वक्त नहीं
मिट्टी के खिलौने बेचने वाले व्यापारी ने ETV भारत को बताया कि लगभग 10 साल पहले 1000 से ज्यादा मिट्टी के बैल पोला पर्व पर बिकते थे. लेकिन अब महज 200 से 300 की संख्या में बनाए जाने बाद उन्हें बेचना मुश्किल हो गया है. खिलौना व्यापारी ने इसका कारण बताते हुए कहा कि आज तकनीक के दौर में बच्चों के पास टी.वी, मोबाइल और वीडियो गेम्स हैं इस कारण उनकी खिलौनों में रुचि लगातार कम हो रही है.
हिन्दी पंचाग के मुताबित भाद्र महीने के अमावस्या को मनाया जाने वाला पोला पर्व, छत्तीसगढ़ के स्थानीय त्योहारों में एक विशेष स्थान रखता है. हरेली त्योहार के बाद प्रदेशवासियों को पोला पर्व के लिए बेसब्री से इंतजार रहता है. पोला पर्व महिलाओं, पुरुषों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है. इस पर्व में किसान कृषि में सहायक बैलों को सजाकर पूजा करते है और बच्चे मिट्टी के बने बैलों और खिलौनों का आनंद लेते हैं. त्योहार के अवसर पर घरों में कई प्रकार के पकवान भी बनाए जाते हैं. गांव में इस दिन बैल दौड़ भी आयोजित किया जाता है और जीतने वाले बैल जोड़ी के मालिक को इनाम दिया जाता है.