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नक्सलियों की दहशत से छोड़ दी 50 एकड़ की खेती, सुरक्षा और रोजगार के लिए भटक रहा दर-दर

मोहला ब्लॉक के कतुलझोरा का निवासी रामदास 9 साल से रोजगार के लिए दर-दर भटक रहा है. रामदास नक्सलियों की दहशत के चलते अपना 50 एकड़ की खेती छोड़कर दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहा है.

Ramdas is craving for two-time chapatti
दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहा है रामदास

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Published : Jan 24, 2020, 9:46 PM IST

राजनांदगांव: छत्तीसगढ़ पुलिस ग्रामीणों को नक्सलियों से बचाने के लिए और सुरक्षा देने की लाख दावे कर लें, लेकिन इसका सच काफी दर्दनाक है. ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जहां नक्सली दहशत के चलते रामदास अपनी 50 एकड़ की खेती को छोड़कर जिला मुख्यालय के सरकारी दफ्तरों में काम की तलाश कर रहा है, लेकिन रामदास के हाथ अभी-भी खाली हैं. 9 साल से रामदास की यही स्थिति है. वह प्रशासन के सामने अपनी आर्थिक तंगी का हवाला देकर रोजगार मांग रहा है.

दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहा है रामदास

जिला मुख्यालय से तकरीबन 60 किलोमीटर दूर मोहला ब्लॉक के कतुलझोरा पोस्ट कंदाड़ी के निवासी हैं रामदास ध्रुव. इनका गांव में 50 एकड़ का खेत है, जिस पर धान की फसल लेते थे. बावजूद इसके आज वे दो वक्त की रोटी के लिए काम की तलाश में है. आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखने वाले रामदास अपने लिए शहर के सरकारी दफ्तरों में काम की तलाश कर रहे हैं, लेकिन अब तक प्रशासन ने उसकी नहीं सुनी है. इसके चलते उनके सामने रोजी रोटी का संकट है.

इसलिए छोड़ा घर
रामदास को सन 2010 में नक्सलियों ने पुलिस का मुखबिर होने के शक पर घर से उठा लिया था. इसके बाद वे उसे अपने साथ बंधक बनाकर जंगल-जंगल घूमाते रहे. इस बीच मौका मिलते ही रामदास अपने आप को उनके चंगुल से छुड़ाकर भाग निकला और फिर कभी अपने गांव नहीं लौटा. रामदास का कहना है कि नक्सलियों ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी है. अगर वह गांव लौटता है और अपनी खेती किसानी करता है, तो हमेशा उसको जान का खतरा बना रहेगा. इसके चलते वह प्रशासन से दो वक्त की रोटी के लिए काम मांग रहा है.

घूमकर कमाता है रोजी-रोटी
रामदास घूम-घूमकर अब तक नक्सलियों से पीछा छुड़ाता फिर रहा है. जान का खतरा होने के कारण वह अलग-अलग जगहों पर कामकाज कर कुछ दिन ठहरता है और फिर नई जगह रोजी-रोटी की तलाश में निकल जाता है. राजनांदगांव में लंबे समय से काम की तलाश में रामदास लगा हुआ है. इसके लिए उसने कई बार जिला प्रशासन को आवेदन दिया, लेकिन उसे काम नहीं मिल पाया. इसके चलते आज भी वह दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर है.

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