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चुनावी किस्से : क्रास वोटिंग से बदला था कांग्रेस का समीकरण, फिर चर्चा में है '1994'

1994 में हुए जिला पंचायत चुनाव की एक घटना का जिक्र एक बार फिर तेज हो गया है. राजनीतिक जोड़-तोड़ के समीकरण को लेकर अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बने बीजेपी सदस्य की कहानी फिर याद की जा रही है.

फिर चर्चा में है '1994'
फिर चर्चा में है '1994'

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Published : Jan 20, 2020, 1:31 PM IST

Updated : Jan 20, 2020, 1:45 PM IST

राजनांदगांव: छत्तीसगढ़ में विधानसभा, लोकसभा के बाद नगरीय निकाय चुनाव संपन्न हो चुके हैं. इसमें विधानसभा और नगर-निगम चुनाव में कांग्रेस को एकतरफा जीत हुई मिली है. वहीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. तीन चुनावों के बाद प्रदेश में एक बार फिर त्रि-स्तरीय चुनाव होने हैं, इसके लेकर तमाम पार्टियां अपनी रणनीति बनाने में जुट गई है. इन सबके बीच 1994 के जिला पंचायत चुनाव की एक घटना का जिक्र तेज हो गया है.

फिर चर्चा में है '1994'

बताते हैं 1994 में यहां पंचायत चुनाव हुए थे, जिसमें कांग्रेस बहुमत में थी, लेकिन यहां जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था. लोगों का कहना है कि बहुमत के बावजूद कांग्रेस के हाथ से अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी चली गई थी. इस घटना का जिक्र 25 साल बाद एक बार फिर सुर्खियों में है.

क्रॉस वोटिंग ने बदला था समीकरण
1994 में जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस जीत के बाद अपने 14 सदस्यों के साथ सदन में पहुंचे थे, लेकिन जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनने की बारी आई तो कांग्रेस के चुने दुए प्रतिनिधियों ने क्रास वोटिंग कर दिया. जिससे अल्पमत में होते हुए भी बीजेपी यहां सरकार बनाने में कामयाब रही और अध्यक्ष के साथ उपाध्यक्ष की कुर्सी भी बीजेपी के खाते में चली गई.

कई जनप्रतिनिधि को किया गया ता नजरबंद
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव से पहले ग्रामीण कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष कृष्ण खंडेलवाल के निवास पर कांग्रेस के जीते हुए सभी 14 जनप्रतिनिधि को कैद करके रखा गया था. जहां से उन्हें सीधे जिला पंचायत कार्यालय ले जाया गया था, लेकिन बीजेपी ने अपनी रणनीति से सदन में बाजी पलट दिया और अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद पर कब्जा जमा लिया.

'बेहतर रणनीति से कामयाब हुई थी बीजेपी'
वरिष्ठ पत्रकार दीपांकर खोबरागड़े बताते हैं कि, 'भाजपा तगड़ी रणनीति के साथ जिला पंचायत चुनाव मैदान में उतरी थी और अध्यक्ष की कुर्सी हथियाने में कामयाब भी रही'. वहीं उन्होंने कांग्रेस का जिक्र करते हुए बताया कि कांग्रेस की कमजोरी खुलकर सामने आई थी, जहां बहुमत होने के बाद भी वे सत्ता से बाहर हो गई.

एक नजर आकड़ों पर

  • भाजपा के 10 सदस्य और कांग्रेस के 14 सदस्य थे मैदान में.
  • 1994 के चुनाव में कांग्रेस के पास 14 सीटें थी.
  • भाजपा के पास महज 10 सीटें थी.
  • कांग्रेस की ओर से दिलेश्वर साहू अध्यक्ष के लिए मैदान में थे.
  • बीजेपी की ओर से प्रदीप गांधी अध्यक्ष पद के लिए मैदान में थे.
  • क्रास वोटिंग से प्रदीप गांधी को बहुमत मिल गया था.
Last Updated : Jan 20, 2020, 1:45 PM IST

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