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SPECIAL: दिव्यांगता के आगे नहीं टेके घुटने, आत्मनिर्भरता की मिसाल बने रमेश

राजनांदगांव के छुरिया विकासखंड के रमेश लोगों के लिए एक मिसाल बने हुए हैं. दिव्यांग होने के बाद भी रमेश आत्मनिर्भर बनकर अपनी जीविका पूरे आत्मसम्मान के साथ चला रहे हैं.

example of self reliance
आत्मनिर्भर रमेश

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Published : Aug 6, 2020, 2:33 PM IST

राजनांदगांव: छुरिया विकासखंड के महरूम गांव के रहने वाले 39 साल के रमेश नेताम दिव्यांग होने के बाद भी अपने हौसले से लोगों के लिए प्रेरणा बन रहे हैं. पैरों से लाचार रमेश घर-घर चलकर नहीं जा सकते, लेकिन ट्राई साइकिल के जरिए वह लोगों के घरों तक पहुंचते हैं और उन्हें आवाज देकर उनके हाथों में अखबार सौंपकर आते हैं.

हौसले की मिसाल

रमेश नेताम हौसले की अद्भुत मिसाल हैं. बचपन में अपने पिता को खोया. पोलियो की बीमारी से दोनों पैर लाचार हुए, इसके बाद भी रमेश ने हार नहीं मानी. जिंदगी से जंग लड़ते हुए उन्होंने 12वीं तक की शिक्षा ली. इसके बाद गांव के ही स्कूल में बतौर अतिथि शिक्षक बच्चों को पढ़ाने लगे. इसके बाद 2 साल पहले उन्होंने अखबार बेचने का काम शुरू किया. अब वे इस काम को बेहतर तरीके से कर रहे हैं. दिव्यांग होने के बाद भी वे अखबार बांटने जैसा मुश्किल काम करते हैं. साल के 12 महीने रमेश अपनी ट्राईसाइकिल पर अखबार बांटने निकल जाते हैं. लोगों के घरों तक पहुंचते हैं और उन्हें उनके नाम से आवाज देते हैं. इसके बाद अखबार सौंपकर अगली मंजिल की ओर निकल पड़ते हैं.

रमेश नेताम

रोजाना 20 किलोमीटर का सफर

रमेश ने बताया कि वे आसपास के 4 गांवों में अखबार बांटने का काम करते हैं. महरूम से करमरी तक उनका सफर सुबह से ही शुरू हो जाता है. रमेश एक दिन में करीब 40-45 अखबार की प्रतियों का डिस्ट्रिब्यूशन करते हैं. साल के 12 महीने हर मौसम में इस काम को करना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण होता है. खासकर बारिश के दिनों में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. तमाम तकलीफों के बाद भी रमेश ने कभी हार नहीं मानी.

अखबार बांटते रमेश

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गांव के लिए बने मिसाल

गांव के लोगों का कहना है कि रमेश पूरे गांव के लिए मिसाल हैं. दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने हौसला नहीं खोया और आत्मनिर्भर बने. रमेश अपनी धुन के पक्के हैं और सुबह से ही अपने काम पर लग जाते हैं. आसपास के गांव के लोगों को उनके आने का इंतजार भी रहता है.

मिलकर उठाते हैं परिवार की जिम्मेदारी

रमेश ने बताया कि उनके परिवार में पत्नी और एक बच्ची है. अखबार बांटकर उन्हें जो आय होती है, उसी से उनकी आजीविका चलती है. पत्नी भी मजदूरी कर परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में कदम से कदम मिलाकर काम करती है. रमेश का कहना है कि इससे पहले भी गांव में अतिथि शिक्षक के रूप में वे काम करते थे, लेकिन योजना बंद होने के बाद वे बेरोजगार हो गए. इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और गांव के ही बच्चों को कोचिंग पढ़ाना शुरू किया, लेकिन यहां स्कूल खुलने के बाद से वह काम भी बंद हो गया.

सरकार को करनी चाहिए मदद

गांव के बुजुर्ग ठाकुर प्रकाश सिंह का कहना है कि रमेश जैसे लोग समाज के लिए एक उदाहरण हैं. ऐसे लोग विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ भी करने का दम रखते हैं. सरकार को ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए. पहले बैटरी से चलने वाली एक ट्राइसाइकिल रमेश को दी गई थी, लेकिन वह खराब हो चुकी है. शासन-प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए. रमेश जैसे लोग जो विपरीत परिस्थितियों में भी आत्मनिर्भर बने हुए हैं, उनकी मदद करनी चाहिए.

छुरिया विकासखंड के निवासी

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