राजनांदगांव: नवरात्र की शुरुआत होते ही डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी का दरबार फिर से सजने लगेगा. छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थलों में से एक डोंगरगढ़ का मां बम्लेश्वरी मंदिर भी है. यहां पर सालभर दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है. यही कारण है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने भी यहां पर दर्शनार्थियों के लिए काफी सुविधाएं मुहैया कराई हैं, लेकिन डोंगरगांव स्थित मां बम्लेश्वरी का मूल स्थान आज भी उपेक्षित है. माता का मूल स्थान डोंगरगांव है, जहां न तो कोई सुविधा है और न ही आज तक इसका विकास हो पाया है. कई लोग मां बमलेश्वरी का धाम केवल डोंगरगढ़ को मानते हैं, जबकि डोंगरगांव में माता प्रकट हुई थीं.
यहां प्रकट हुई थीं मां बम्लेश्वरी जर्जर हालत में मां बम्लेश्वरी का मूल मंदिर
मां बम्लेश्वरी मंदिर के मूल स्थान माने जाने वाले डोंगरगांव के बगलामुखी मां बम्लेश्वरी मंदिर की ओर शासन का ध्यान आज तक नहीं गया है, जबकि डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी मंदिर में राज्य सरकार की ओर से ढेरों सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं. मां बम्लेश्वरी के प्रकट होने के मूल स्थान को लेकर शासन-प्रशासन की उपेक्षा के चलते मां का ये मूल मंदिर आज भी जर्जर हालत में है.
मां बम्लेश्वरी मंदिर डोंगरगढ़ पढ़ें:मां दंतेश्वरी मंदिर में जलेंगे 11 ज्योत, आम श्रद्धालु नहीं जला सकेंगे मनोकामना के दीप
ऐसी है यहां की मान्यता
डोंगरगांव स्थित मां बम्लेश्वरी मंदिर का जिम्मा संभालने वाले पुजारी गोपी नंदेश्वर का कहना है कि उनकी दूसरी पीढ़ी माता जी के सेवा संस्कार में लगी हुई है. पौराणिक कथाओं के अनुसार डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी सबसे पहले डोंगरगांव में प्रकट हुई थीं, लेकिन उस समय माता का सेवा-सत्कार सही नहीं होने के चलते वे यहां से चली गईं. पुजारी गोपी नंदेश्वर का कहना है कि कई पीढ़ियों से गांव के कई बुजुर्ग डोंगरगांव स्थित बगलामुखी मां बम्लेश्वरी मंदिर में माता की सेवा कर रहे हैं. चैत्र और कार्तिक दोनों ही नवरात्रि में यहां पर आस्था के ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए जाते हैं. मंदिर परिसर को गांव के लोगों से सहयोग राशि लेकर व्यवस्थित किया जा रहा है. अब तक शासन-प्रशासन का ध्यान यहां के जीर्णोद्धार या इस जगह को विकसित करने को लेकर नहीं गया है.
मां बम्लेश्वरी मंदिर डोंगरगढ़ लोगों को नहीं है मूल मंदिर की जानकारी
शहर के अधिवक्ता सतीश पांडे का कहना है कि छत्तीसगढ़ और आसपास के राज्यों से मां बम्लेश्वरी के दर्शन के लिए लोग डोंगरगढ़ आते हैं, लेकिन उनके सबसे पहले प्रकट होने वाले मूल स्थान की जानकारी नहीं होने के कारण यहां तक पहुंच नहीं पाते हैं. राज्य शासन ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया है. इस कारण लोगों को भी इस बात की जानकारी नहीं मिल पाई है. उनका कहना है कि राज्य शासन को डोंगरगांव स्थित मां बम्लेश्वरी मंदिर का भी प्रचार-प्रसार करना चाहिए, ताकि लोग यहां आकर माता का दर्शन लाभ ले सकें और इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोकर रखा जा सके.
जर्जर हालत में मां बम्लेश्वरी का मंदिर पढ़ें:SPECIAL: पुरातत्व विभाग की लापरवाही, लाल ईंटों से बने लक्ष्मण मंदिर में उगे पौधे
खस्ताहाल है मंदिर
वर्तमान में मंदिर परिसर की हालात काफी खराब है. छत जर्जर हो चुकी है, वहीं आसपास मंदिर परिसर में मरम्मत की दरकार भी है. इसके अलावा इस ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के स्थल को सुरक्षित करने के लिए बाउंड्री वॉल सहित अन्य निर्माण कार्यों की भी जरूरत है. आसपास के रहवासी बताते हैं कि जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते आज तक बगलामुखी मां बम्लेश्वरी मंदिर परिसर डोंगरगांव का विकास नहीं हो पाया है. लोगों का कहना है कि शासन-प्रशासन को इसके ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की जानकारी देते, तो निश्चित तौर पर यह स्थान छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल हो सकता है.
मां बम्लेश्वरी के मूल स्थान की दुर्दशा राजनांदगांव : यहां पड़े थे मां बम्लेश्वरी के कदम, ये है मान्यता
डोंगरगांव के लोगों का मानना है कि बगलामुखी मां बम्लेश्वरी राजाओं के जमाने में डोंगरगांव से बरगांव की ओर जाने वाली बीटीआई के पास की जमीन पर मां के चरण पड़े थे.
- सबसे पहले मां बम्लेश्वरी यहां पधारी थीं, लेकिन इस स्थान पर उनकी सेवा-सत्कार सही तरीके से न होने की वजह से माता रानी नाराज होकर यहां से डोंगरगढ़ स्थित पहाड़ी पर विराजमान हो गईं.
- लोगों का कहना है कि राजाओं के जमाने में स्वप्न में आकर मां बम्लेश्वरी यहां पधारी थीं. यहां उनके सेवा-सत्कार की व्यवस्था को लेकर राजा के सपने में आकर माता ने सब कुछ बताया था.
- रजवाड़ों ने सपने पर कोई ध्यान नहीं दिया, जिसके चलते मां बम्लेश्वरी यहां से नाराज होकर डोंगरगढ़ स्थित पहाड़ी पर विराजमान हो गईं.
बगलामुखी बम्लेश्वरी मंदिर डोंगरगांव