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संतान की दीर्घायु के लिए माताओं ने की प्रार्थना, डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद खोली व्रत

संतान की लंबी उम्र के लिए रविवार को माताओं ने कमर छठ का व्रत रखा. कमर छठ की तैयारी करने के लिए सुबह से ही बाजार में लोगों की भीड़ रही. इस मौके पर कमर छठ की कहानी सुनकर शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद महिलाओं ने व्रत खोली.

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Published : Aug 9, 2020, 6:17 PM IST

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कमर छठ

राजनांदगांव: छत्तीसगढ़ की परंपरा से जुड़े कमर छठ पर्व को माताओं ने पूरे विधि विधान के साथ मनाया. अपनी संतान की दीर्घायु की कामना करते हुए माताओं ने पोता देकर अपनी संतान को हर कष्टों से दूर रखने की कामना की. इसके साथ ही उन्हें आशीर्वाद भी दिया.

संतान की दीर्घायु के लिए कमर छठ पर्व

संतान की लंबी उम्र के लिए रविवार को माताओं ने कमर छठ का व्रत रखा. कमर छठ की तैयारी करने सुबह से ही बाजार में खासी भीड़ रही. 6 तरह की भजियां, पसहर चावल, काशी के फूल, महुआ के पत्ते, धान की लाई सहित पूजा की कई छोटी-बड़ी पूजन की सामाग्री भगवान शिव को अर्पित कर संतान के दीर्घायु की कामना की.

पढ़ें :SPECIAL: संतान की दीर्घायु का पर्व कमरछठ, इस दिन महिलाएं सगरी कुंड बनाकर करती हैं पूजा अर्चना

निर्जला रहकर शिव-पार्वती की पूजा
छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहारों में से एक कमर छठ को हलछठ या हलषष्ठी भी कहा जाता है. बिहार में छठ की तर्ज पर इस व्रत को करने वाली माताएं निर्जला रहकर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं. सगरी बनाकर सारी रस्में निभाई जाती है. इस मौके पर कमर छठ की कहानी सुनकर शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोला जाता है.

खेत में उगाए अन्न का महिलाएं नहीं करती सेवन

महिलाएं एक जगह पर एकजुट होकर सगरी का निर्माण कर भूमि का पूजन करती हैं. इस दिन खेत में उगाए हुए या जोते हुए अनाज और सब्जियों को नहीं खाया जाता है. आज के दिन भैंस का दूध, दही, घी या उससे बने किसी भी वस्तु को खाने की पंरपरा है. इसलिए महिलाएं इस दिन तालाब में उगे पसही/तिन्नी का चावल/पसहर के चावल खाकर व्रत रखती हैं. इस दिन गाय का दूध दही, घी का प्रयोग वर्जित है. महिलाएं मिट्टी की चुकिया बनाकर पूजा करती हैं. आज पूजा में लाई और चना कांसी के पौधे, पलाश के पत्ते उपयोग में लाए जाते हैं.

संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं रखती हैं ये व्रत
मान्यता है की आज के दिन ही शेष नाग अवतार भगवान बलराम का जन्म हुआ था. मान्यता अनुसार माता देवकी के छह पुत्रों को जब कंस ने मार दिया तब पुत्र की रक्षा की कामना के लिए उन्होंने भादो कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को षष्ठी देवी की आराधना करते हुए यह व्रत रखा था.

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