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SPECIAL: मित्र बनाकर पीढ़ियों तक निभाने की है छत्तीसगढ़ी परंपरा, महाप्रसाद और भोजली हैं इसके उदाहरण - फ्रेंडशिप डे की कहानी

भगवान कृष्ण और सुदामा के दोस्ती के किस्से तो आपने खूब सूने होंगे. लेकिन आज हम आपको छत्तीसगढ़ में दोस्ती के पर्व से जुड़ी बातें बताने जा रहे हैं. जो आज भी मित्र धर्म के लिए परंपरा है.

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फ्रेंडशिप डे

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Published : Aug 1, 2020, 11:07 PM IST

राजनांदगांव: यूं तो दोस्ती का न कोई नाम होता है और न ही कुछ खास दिन. दोस्तों के साथ बिताया हर पाल खास ही होता है, लेकिन फ्रेंडशिप डे का अलग ही क्रेज देखने को मिलता है. आज हमारी फ्रेंडलिस्ट सोशल साइट पर बहुत लंबी भले हो लेकिन रियल लाइफ में स्कूल, कॉलेज और काम के दौरान बनाए दोस्त ही काम आते हैं. किस्से तो हमने भगवान कृष्ण और सुदामा के भी खूब सुने हैं. फेसबुक, इंस्टाग्राम की दोस्ती छोड़िए आज ETV भारत आपको छत्तीसगढ़ में वर्षों पुरानी दोस्ती की परंपरा के बारे में बताएगा. छत्तीसगढ़ में दोस्ती की शुरुआत महाप्रसाद से होती है.

मित्र बनाकर पीढ़ियों तक निभाने की है छत्तीसगढ़ी परंपरा

महाप्रसाद एक ऐसी परंपरा है जो मित्रता की सबसे बड़ी मिसाल मानी जाती है. एक बार अगर मित्र महाप्रसाद बन गया तो कई पीढ़ियों तक इसे निभाया जाता है. छत्तीसगढ़ की ये अनोखी परंपरा आज भी ग्रामीण इलाकों में सबसे ज्यादा प्रचलित हैं.

ऐसे बनते हैं महाप्रसाद
छत्तीसगढ़ में बेस्ट फ्रेंड या यूं कहें जिगरी दोस्त को महाप्रसाद कहा जाता है. ग्रामीण इलाकों में महाप्रसाद बनाने की परंपरा है. महाप्रसाद को एक सम्मान की तरह माना जाता है. छत्तीसगढ़ के अलग अलग इलाकों में इसे अलग अलग नाम से जाना जाता है. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि जगन्नाथ पुरी के प्रसाद को लाकर पूरे विधि विधान के साथ अपने मित्र को दिया जाता है और फिर यहीं से उनके महाप्रसाद बनने की प्रक्रिया शुरू होती है. जब जगन्नाथपुरी के प्रसाद को एक मित्र दूसरे मित्र को ला कर देता है और उसे वचन देता है कि वह पूरे जीवन भर उसकी मित्रता को निभाएगा और उस दिन से ही वे एक दूसरे के लिए महाप्रसाद बन जाते हैं और आजीवन कभी भी एक दूसरे का नाम अपने मुंह से नहीं लेते हैं. हमेशा एक दूसरे को महाप्रसाद कहकर ही संबोधित करते हैं.

नई पीढ़ी में कम हुआ चलन
महाप्रसाद परंपरा को लेकर जब ग्रामीणों से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि एक बार गांव में महाप्रसाद बनने के बाद गांव के कई परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इस परंपरा को निभाते हैं. हालांकि नई पीढ़ी में इस परंपरा को लेकर के जागरूकता कम है और अब इस परंपरा का चलन भी कम होता जा रहा है फिर भी कई ऐसे लोग हैं जो आज भी आधुनिक दौर में महाप्रसाद बनाने की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. ग्रामीण इलाकों में खासकर ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है जो महाप्रसाद जैसी मित्रता बनाए रखते हैं.

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हर संबंध से ऊंचा होता है महाप्रसाद का दर्जा
ग्राम पंचायत लिटिया के भूपेंद्र कुमार पटेल बताते हैं कि महाप्रसाद से काफी घनिष्ठता है और परिवारिक संबंध होता है. महाप्रसाद बनने के बाद उनका दर्जा परिवार में सबसे ऊंचा होता है. भाई और अन्य संबंधों से भी ज्यादा विश्वास और सम्मान उन्हें दिया जाता है. भूपेंद्र बताते है कि महाप्रसाद सुख-दुख में काम आते हैं. वे बताते हैं कि गांव के एक व्यक्ति को उन्होंने भीमहाप्रसाद बनाया है और वो इस दोस्ती को अब तक निभाते आ रहे हैं. परिवार के सुख-दुख के पलों में वे हमेशा साथ रहते हैं.

मित्रता की मिसाल है महाप्रसाद
गांव के बुजुर्ग अग्नू राम यादव बताते हैं कि माता-पिता के मार्गदर्शन में उन्होंने 70 साल पहले महाप्रसाद बनाया था जिसे वे आज भी निभा रहे हैं. शुरुआत में पूरे विधि विधान से उन्होंने महाप्रसाद बनाया और आज भी हर सुख-दुख और त्योहार में वे साथ रहते हैं. गांव के आचार्य सरोज द्विवेदी बताते है कि सुख-दुख से लेकर के हर विपत्ति के समय में महाप्रसाद की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. इसके साथ ही लोग पीढ़ियों तक इस संबंध को निभाते हैं. एक बार महाप्रसाद बनने के बाद दोनों परिवारों के बच्चे भी एक-दूसरे को फूल दादा के नाम से जानते हैं और कई पीढ़ियों तक उन्हें वैसा ही सम्मान दिया जाता है.

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आधुनिकता नई पीढ़ी को भारत की परंपरा से दूर कर रहा है. आज हमारी फ्रेंडलिस्ट सोशल साइट पर बहुत लंबी भले हो लेकिन रियल लाइफ में हमारे कुछ ही दोस्त हैं. फ्रेंडशिप डे के मौके पर उन सभी दोस्तों का दिल से शुक्रिया जो हमारी जिंदगी में आए और न जाने कितनी ही खुशी हमारे नाम कर गए.

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