डोंगरगांव/राजनांदगांव: छत्तीसगढ़ अपनी अनूठी परंपरा, ऐतिहासिक धार्मिक स्थल और कई मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है. अपनी समृद्ध संस्कृति से परिपूर्ण न्यायधानी राजनांदगांव के डोंगरगांव ब्लॉक में भी एक ऐसा अनजाना आश्चर्य बसा हुआ है. जिसे जानकार आप हैरान हो जाएंगे. ETV भारत आपको चरमुखा देवता के बारे में बताने जा रहा है. यहां पहाड़ियों में बसे देवी-देवता आपस में जंजीरों यानि संकल से जुड़े हुए हैं. आस-पास के ग्रामीण सहित अंचल के लोगों के लिए पहाड़ पर बसे तीन मंदिर आस्था का केंद्र हैं.
चरमुखा देवता एक अशोक पेड़ के नीचे विराजित हैं. ग्रामीणों की माने तो मंदिर निर्माण का कई बार प्रयास किया गया, लेकिन किसी ना किसी कारण से मंदिर नहीं बनाया जा सका. ऐसी मान्यता है कि चरमुखा देव से ही मंदिर निर्माण की अनुमति नहीं मिली है.
छुरिया ब्लॉक के ग्राम केरेगांव में स्थित है चरमुखा देवता
डोंगरगांव ब्लॉक मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित छुरिया ब्लॉक के ग्राम केरेगांव में स्थापित चरमुखा देवता की प्राचीन मूर्ति आज भी विराजमान है और उनके साथ एक देवी प्रतिमा भी है. यहां पहुंचने के लिए डोंगरगांव से छुरिया रोड में पड़ने वाले ग्राम सोमाझिटिया होते हुए चिरचारी खुर्द के रास्ते केरेगांव तक पहुंचा जा सकता है.
संकल का है विशेष महत्व
चरमुखा देवता जैसा नाम से ही स्पष्ट है कि गांव के आराध्य देव के चार मुख हैं, जो एक संकल (जंजीर) से बंधे हुए हैं. यह संकल चरमुखा देव की कमर से बंधा हुआ है. गांव के बुजुर्ग इस संबंध में बताते हैं कि बच्चे जब इस संकल से खेलते या इसे खींचते थे, तो यह संकल अपने आप बड़ी हो जाती थी और छोड़ते तो वापस पूर्व की स्थिति में आ जाती थी. मूर्तियां कितनी पुरानी हैं इस संबंध में भी ज्यादा जानकारी नहीं है. चरमुखा देवता के साथ पास में ही एक देवी प्रतिमा है. जिनका एक हाथ कटा हुआ और दूसरे हाथ से बच्चे को पकड़े हुए दिखाई दे रही हैं. ग्रामीण बताते हैं कि उनका हाथ किसी लड़ाई के दौरान कट गया था.
संकल से जुड़े हैं तीनों देवी-देवता
केरेगांव में स्थित चरमुखा देवता का रिस्ता बाघद्वार स्थित बाघेश्वरी देवी मंदिर से जुड़ता है. बाघेश्वरी देवी मंदिर जहां एक बाघ-प्रतिमा जो संकल से बंधा हुआ है और वह स्पष्ट दिखाई देता है. ऐसा प्रतीत होता है मानों उस बाघ को बांधकर रखा गया हो. इसी के नाम से ही गांव का नाम प्रचलन में आया है. गांव के मुखिया बताते हैं कि आमगांव की पहाड़ी में विराजित मां दुलारादाई से भी चरमुखा देव जुड़े हुए हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि आमगांव की देवी दुलारा चरमुखा देव की बहन हैं और इन तीनों का रिश्ता इस संकल से जुड़ा हुआ है. इस बात की जानकारी नहीं है कि यह संकल तीनों देवी-देवताओं के अलावा कहां और किससे संबंधित हैं.
रियासत कालीन हैं मूर्तियां
ग्रामीण उमेर सिंह पूजेरी और कीर्तन चंद्रवंशी ने बताया कि केरेगांव के मालगुजार केसवराव रत्नाकर यहां पूजापाठ करते थे. आज भी उस परिवार के सदस्य यहां पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं. उनके परिवार के सदस्य संदीप रत्नाकर ने बताया कि हमने इस परिपाटी को बनाए रखा है. चरमुखा महराज पर हमारे पूरे परिवार सहित पूरे गांव और अंचल के लोगों की गहरी आस्था है. यहां शीतला मां और हनुमान जी की भी प्रचीन मूर्तियां स्थापित है. राजनांदगांव रियासत के राजा सर्वेस्वरदास पहले यहां पूजा-अर्चना करते थे, जिसके बाद ही राजनांदगांव के दशहरे का कार्यक्रम संपन्न होता था.
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ग्रामीण तो मूर्तियों को सन् 1850 के आस-पास का बतातें हैं, लेकिन यह मूर्तियां उससे भी पुरानी लगती हैं. ग्रामीण बताते हैं कि चरमुखा देव के समक्ष जो भी दर्शन करने आते हैं, उनकी मनोकामनाएं अवश्य ही पूरी होती हैं. जिसका प्रमाण ग्रामीण और अंचल के लोग देते हैं.
खुदाई से मिले प्राचीन सिक्के
ग्रामीण लक्ष्मणलाल कदम और मनोज लेंझारे ने बताया कि मंदिर प्रांगण से रियासतकालीन सिक्के भी मिले हैं. जिनमें कुछ बड़े और कुछ छोटे सिक्के हैं, जो पीतल से बने हुए प्रतीत होते हैं. साथ ही बताया कि जब चरमुखा देवता की स्थापना के लिए चबूतरा निर्माण कराने खुदाई की गई थी, तब ये सिक्के मिले थे. एक छोटे सिक्के के एक ओर में तीन शेर, ईस्ट इंडिया कंपनी की पहचान चिह्न और शेर के हाथों में ध्वज प्रदर्शित हो रहा है. सिक्के में सन् 1835 अंकित है. सिक्के के दूसरी ओर ईस्ट इंडिया कंपनी और वन क्वाटर आना(एक पैसा) अंकित है.
मंदिर स्थल में स्थापित है भगवान विष्णु और हनुमान जी की मूर्ति
ग्रामीण सदेलाल ने बताया कि यहां एक दक्षिणमुखी हनुमान जी मूर्ति है. पूर्वजों का कहना है कि उस मूर्ति को एक व्यक्ति सागर नामक जगह से लेकर आए थे. पुजारी चंदरसिंह मंडावी ने बताया कि कार्य के दौरान माला पहने हुए भगवान विष्णु की छोटी सी मूर्ति मिली है. जिसे चोरी भी किया गया था, लेकिन बाद में उस मूर्ति को चुपचाप एक पखवाड़े के बाद रख दिया गया था. कहा जाता है कि दशहरे में देव की विशेष पूजा होती है. नवरात्र में बाघद्वार और आमगांव की पहाड़ियों में विराजमान दोनों देवियों की पूजा की जाती है, जिनकी आराधना विशेष फलदायी होती है.