डोंगरगांव/राजनांदगांव: फुटबॉल के क्षेत्र में डोंगरगांव की एक विशेष पहचान रही है. एक समय था जब पूरे भारत में डोंगरगांव को फुटबॉल की नर्सरी के रूप में जाना जाता था. इस ख्याति का श्रेय आजादी के पहले गठित जेन्टस क्लब और उनके संस्थापक सदस्यों और पदाधिकारियों को जाता है. कुछ सालों पहले तक फुटबॉल खेलना क्षेत्र के बच्चों की दिनचर्या में शामिल था. नगर में शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां फुटबॉल के खिलाड़ी या प्रशंसक ना हो. स्थिति यह होती थी कि छोटे-बड़े हर उम्र के बच्चों की टोली नगर के अलग-अलग मैदानों में फुटबॉल के साथ दौड़ लगाते और हुनर दिखाते नजर आते थे. लेकिन नगर के मैदानों के सिमटते आकार और बढ़ते अतिक्रमण के चलते नगर अपनी पहचान खो रहा है.
बच्चों में मैदान के बिगड़ते स्वरूप के बाद भी फुटबॉल का जूनून बरकरार है. नगर के जेन्ट्स क्लब मैदान में देश की ख्याति प्राप्त फुटबॉल टीमें अपने प्रदर्शन का जौहर दिखा चुकी हैं. इनमें मोहन बगान की बी टीम से लेकर जम्मू और कश्मीर, एयर फोर्स, रेल्वे, मुंबई, कोलकाता, आसनसोल, मद्रास(चेन्नई) सहित अनेक शहरों की नामी गिरामी टीमें यहां स्पर्धा में शामिल होती थी. लेकिन आज इस मैदान की हालत बद से बदतर हो चुकी है.
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जेन्ट्स क्लब में फीफा के अधीन संचालित होने वाली राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में विदेशी खिलाड़ियों ने भी अपना जौहर दिखाया. लेकिन आज जेन्ट्स क्लब का मैदान अपनी बदहाल स्थिति पर पहुंच चुका है. यहां स्थानीय प्रशासन ने वैकल्पिक व्यवस्था के लिए थोक सब्जी बाजार को शिफ्ट किया है. पूरे मैदान में बेतरतीब गढ़े बांस-बल्ली और पाल लगे हुए है. लेकिन तंबूओं के बीच भी बच्चे फुटबॉल खेलना जारी रखे हुए हैं.
खेलते वक्त बना रहता है हादसे का डर
इस संबंध में पूर्व फुटबॉलरों ने बताया कि बच्चों के लिए बांस बल्लियों के बीच फुटबॉल खेलना दुर्घटना का कारण बन सकता है. फुटबॉल में स्पीड और डॉच दो महत्वपूर्ण चीजें हैं और बाधारहित मैदान खिलाड़ियों के लिए उपयुक्त होता है.