रायपुर:कोरोना के विपरीत हालात के बावजूद कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने घर परिवार और खुद की चिंता किए बगैर लोगों की सेवा में दिन रात-जुटे हुए हैं. वरिष्ठ कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा के बेटे विशाल शर्मा भी लोगों की मदद में लगे हुए हैं. विशाल शर्मा पिछले डेढ़ महीने से घर भी नहीं जा पा रहे हैं. अपनी टीम के साथ 24 घंटे सेवा में जुटे हुए हैं. ETV भारत ने युवा समाजसेवी विशाल शर्मा से खास बातचीत की. आपको बता दें कि कोरोना काल में पूरा शर्मा परिवार जरूरतमंद लोगों की सेवा में जुटा हुआ है. विधायक सत्यनारायण शर्मा और उनके दोनों बेटे पंकज शर्मा और विशाल शर्मा लोगों की मदद कर रहे हैं. विधायक सत्यनारायण शर्मा वैक्सीनेशन के लिए अपनी विधायक निधि से 1 करोड़ की राशि दे चुके हैं.
कोरोना काल में दिन-रात लोगों की मदद में जुटे युवा समाजसेवी विशाल शर्मा सवाल: जब लोग अपनों से भी मिलने में डर रहे हैं, तब कोविड पीड़ितों की सहायता की शुरुआत आपने कैसे की. ?
विशाल शर्मा: देखिए ये बीमारी हम लोगों के लिए कोई नई नहीं थी. हमारी पिछले साल के एक्सपीरियंस के साथ तैयारी की थी.मेडिकल सेवा में हमारे परिवार का पुराना अनुभव है. मैं 1908 से हॉस्पिटल जा रहा है. मेरे पिता जी (सत्यनारायण शर्मा), भाई (पंकज शर्मा) लंबे समय से सेवा दे रहे हैं. नॉन मेडिकोज में कैसे-कैसे करना है. इसकी जानकारी थी. पिताजी और भइया की देखरेख में हमने हमने शुरुआत की.
सवाल: ग्रामीण इलाके में जहां स्वास्थ्य सुविधाएं कम है, जागरूकता की कमी है, ऐसे में वहां आपने टीम कैसे बनाई. ?
विशाल शर्मा:रायपुर ग्रामीण में शुरू से हमारा सतत संपर्क रहा है. लोगों में जागरूकता और टीम बनाने में दिक्कत नहीं हुई है. इस शहर में बचपन से रहे हैं. इसलिए बाउंड्रीज कोई मायने नहीं रखती. जहां से भी फोन आए. हम वहां पहुंचे. जब टीम का लीडर मैदान में उतरता है तो बाकी सारे सदस्यों का डर खत्म हो जाता है. जब पंकज भइया मैदान में उतरे तो और करके दिखाया. तो हम लोगों का डर निकल गया.
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सवाल: आप कोविड संक्रमितों की सेवा में जुटे हुए थे, इस दौरान घरवालों से आपने दूरी कैसे बनाई.?
विशाल शर्मा:लगातार कोविड पीड़ितों और उनके परिजनों से संपर्क में होने के चलते घर वाले थोड़ा परेशान थे. धीरे-धीरे घर वालों का सहयोग मिला और हम लोगों में डर कम हुआ. हम लोग इस पूरे अभियान के दौरान लगभग सवा महीने तक घर से बाहर रहे हैं. इस दरमियान हम घर से बाहर होते हुए भी आपस में पूरी टीम एक परिवार की तरह रही है. एक दूसरे का विश्वास बढ़ाते हुए हमने काम किया है. किस तरह से पेशेंट को हमने ट्रीट किया. उसका किस तरह से रिजल्ट आया. एक दूसरे से एक्सपीरियंस हम शेयर करते रहे.
सवाल: मरीज और परिजनों के सामने क्या रही सबसे बड़ी कमजोरी, आत्मविश्वास भी कम होना वजह थी क्या. ?
विशाल शर्मा:मुझे इस बात का बहुत गर्व है कि हमारा शहर जिंदो का शहर है. पहले 15 दिन अकेले रहे हैं. इन सब कामों में, लेकिन इसके बाद हमको काम करते देखकर बहुत से युवा सामने आने लगे. मैंने इस पूरे अभियान के दौरान एक चीज का एक्सपीरियंस किया है कि, इस बीमारी जो लोग पैनिक हुए. उनको काफी परेशानी हुई. मैं एक पेशेंट को लेकर हॉस्पिटल जा रहा था. उसको सांस लेने में बहुत दिक्कत हो रही थी. उनकी चेस्ट रिपोर्ट काफी खराब थी. लेकिन उनका आत्मविश्वास बहुत मजबूत था. मुझे लगा कि यह जरूर स्वस्थ होकर लौटेंगे. हुआ भी वही, वह पूरी तरह से कोरोना को हराकर वापस लौटे.
सवाल: कोविड के दौरान पेशेंट के सामने किस तरह की चीजों ने सबसे ज्यादा परेशान किया. ?
विशाल शर्मा:ज्यादातर पेशेंट की प्रॉब्लम यह रही कि उनके अपने उनसे दूरी बना कर रखे हुए थे. एक पेशेंट का ऑक्सीजन लेवल 65 था. उनका बेटा काफी डरा हुआ था. उनको सीटी चेस्ट स्कैन कराने के लिए ले जाना था. हमने उनके बेटे को यह समझाया कि अपने मां-बाप को अगर आप नहीं छुएंगे तो वह ठीक नहीं होंगे. हमने उनको छू कर दिखाया. हमने उनकी सेवा करके दिखाया. तो उनके बेटे का मोरल बढ़ा और फिर उसने भी अपने मां-बाप की सेवा शुरू की. इसका परिणाम यह हुआ कि वे बहुत जल्दी रिकवर भी हुए.
सवाल: कुछ ऐसे भी गंभीर मरीज रहे होंगे. जिनका इलाज करने से डॉक्टरों ने मना कर दिया था, लेकिन उन मरीजों की रिकवरी हो पाई.?
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विशाल शर्मा:कई ऐसे केस भी रहे. जब डॉक्टर ने भी मना कर दिया था. डॉक्टरों ने क्लियर कर कह दिया था कि मरीज कुछ ही घंटों के मेहमान हैं. एक पेशेंट का ऑक्सीजन लेवल 45 था. मैं एक अस्पताल में लेकर गया. सब लोग हिम्मत हार गए थे. डॉक्टर ने भी क्लियर कट मना कर दिया था. मैंने दबाव बनाकर उनको एडमिट करवाया. मैंने कहा कि मेहनत करेंगे तो वह जरूर रिकवर होंगे. आज भगवान की कृपा से वे अपने परिवार के के साथ हैं. ऐसे ही एक बहुत ही क्लोज फ्रेंड के पिता हैं. उनको भी डॉक्टर ने मना कर दिया था. यह एक डेढ़ घंटे से ज्यादा सरवाइव नहीं कर पाएंगे. वो एडमिट करने तक को तैयार नहीं थे. उनको एडमिट करने के लिए हमने दबाव बनाया. वे भी आज घर पर हैं.
सवाल: इस तरह की बीमारी के साथ रहने की आदत डालनी होगी, लेकिन इससे बचाव के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे?
विशाल शर्मा:इस बीमारी के साथ हमको रहने की आदत डालनी होगी. सबसे पहले तो कॉन्फिडेंस लेवल हाई होना चाहिए. हमको यह मानना होगा कि ईश्वर हमारे साथ ऐसा नहीं करेगा. हौसला बढ़ा कर रखना होगा. हमारा शहर जिंदो का शहर है. हमारे शहर के बहुत सारे लोग बाहर निकल कर एक दूसरे की मदद करते दिखे. आज भी सारे लोग मदद कर रहे हैं. सबसे पहले सरकार को सारी चीजों को मेंटेन करना होगा. वैक्सीनेशन को लेकर ह्यूमर को भी कंट्रोल करना होगा.