रायपुर:राजधानी रायपुर के इतिहासकार और पुरातत्वविद हेमू यदु ने कोरोना काल के दौरान 1 साल के समय में एक उपन्यास लिखा है. जिसका नाम उन्होंने यशोदा की रामायण का नाम दिया है. इस उपन्यास की सबसे खास बात यह है कि इस उपन्यास में त्रेता और द्वापर युग का अलौकिक वर्णन किया गया है. इस उपन्यास को लिखने वाले लेखक हेमू यदु ने यशोदा के रामायण में कृष्ण कथा और रामकथा के साथ छत्तीसगढ़ के राम वन पथ गमन का भी इस उपन्यास में जिक्र किया है. भागवत सुनने के दौरान उन्हें प्रेरणा मिली. जिसके बाद उन्होंने इस उपन्यास का लेखन कार्य शुरू किया. इस उपन्यास का नाम यशोदा की रामायण रखा गया. यशोदा की रामायण को लेकर भी लोगों ने कई तरह के सवाल खड़े किए.
आखिर क्यों लिखी गई 'यशोदा की रामायण'
इतिहासकार और पुरातत्वविद हेमू यदु ने कोरोना काल के दौरान 1 साल के समय में एक उपन्यास लिखा है. जिसका नाम उन्होंने यशोदा की रामायण का नाम दिया है. यह किताब त्रेता और द्वापर युग पर आधारित है.
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भागवत सुनने से उपन्यास लिखने की प्रेरणा मिली: यशोदा की रामायण के लेखक हेमू यदु ने बताया कि भागवत सुनने के दौरान उन्हें प्रेरणा मिली थी और इसी से प्रभावित होकर उन्होंने यशोदा की रामायण को लिखना प्रारंभ किया. इस पूरे उपन्यास को लिखने में उन्हें लगभग 1 साल का समय लगा. इस उपन्यास के पब्लिश होने के बाद लोगों ने इस उपन्यास को लेकर भी कई तरह के सवाल खड़े किए.
त्रेता और द्वापर युग के इतिहास परक साहित्यिक वर्णन: पुरातत्वविद इतिहासकार साहित्यकार डॉ. हेमू यदु के नए उपन्यास यशोदा की रामायण का नाम सुनकर आप शायद चौक जायेंगे. लेकिन यह उपन्यास अद्भुत और अलौकिक है. इसमें त्रेतायुग और द्वापर युग का प्रामाणिक इतिहासपरक साहित्यिक वर्णन इस उपन्यास को रोचक और ज्ञानवर्धक बनाता है. पौराणिक महाकाव्य रामायण और महाभारत की घटनाओं से वैसे तो अनेक विद्वानों चिंतकों ने विभिन्न प्रमाणित ग्रंथ लिखे हैं जो एक दूसरे से भिन्नता लिए हुए हैं. उन सबका मूल और सार तत्व धर्म परायणता और भारतवर्ष की खुशहाली ही है. इनका मूल उद्देश्य मानव जीवन को सत्य मार्ग की ओर प्रशस्त करना भी है. लेखक का यह नवीन और नितांत प्रयोग धर्मी उपन्यास है जो नवीन भाषा शैली और नवीन काल्पनिक घटनाओं को वास्तविक रूप दिया है. माननीय कल्पनाओं का यथार्थ रूप में वर्णन किया गया है.
राम कथा, कृष्ण कथा की घटनाओं और लीलाओं का वर्णन:लेखक ने राम कथा और कृष्ण कथा की घटनाओं और लीलाओं को समानांतर रूप से लेखन कर उसे आपस में संदर्भित और संबंधित कर नवीनता के साथ प्रस्तुत किया है. इस लेखन का प्रयोग धर्म अद्भुत अलौकिक और अद्वितीय है. इस उपन्यास के माध्यम से यह दर्शाया गया है कि राम कथा और कृष्ण कथा नाम के इस अद्भुत पौराणिक उपन्यास की मूल में माता यशोदा द्वारा नन्हे कान्हा को रात में सुलाने के लिए लोरी सुनाने का प्रयास किया गया. माता यशोदा के द्वारा कई तरह की लोरी कान्हा को सुनाई गई, लेकिन कान्हा संतुष्ट नहीं हुए. जिसके बाद कान्हा ने अन्य कहानी सुनाने का आग्रह माता यशोदा से किया. तब माता यशोदा ने विश्व की सर्वाधिक रोचक और यथार्थ परक धार्मिक महाकाव्य रामायण के अत्यंत रोचक उदाहरण के साथ श्री राम की कथा सुनाती है.
माता यशोदा कान्हा को उन्हीं की कथा सुनाकर इसे रहस्य रखती है: माता यशोदा इस बात को भलीभांति जानती थी कि विष्णु देव के अवतार भगवान श्री राम त्रेता युग में और कृष्ण यानी कान्हा द्वापर युग में अवतरित हुए थे. इस वृतांत को सुनाते समय माता यशोदा ने नन्हे कान्हा को यह नहीं बताती कि श्री राम कौन है. लेखक ने इस रहस्य को बड़े ही रोचक ढंग से कौतूहल को बनाए रखते हुए यशोदा नंदन के रूप में प्रकट किया. इस उपन्यास में कान्हा की माता यशोदा रात्रि में रामायण की महत्वपूर्ण कथाओं का बहुत ही रोचक तरीके से वाचन करती है. दूसरी तरफ नन्हे कान्हा प्रातः उठकर कृष्ण लीला में व्यस्त हो जाते हैं. इस तरह राम जी की कथा और भगवान कृष्ण जी की बाल लीलाओं का वर्णन इस उपन्यास को अत्यंत ही सुगम और काल के अनुसार मर्मस्पर्शी बनाते हैं.
रामपथ वन गमन के प्रामाणिक तथ्यों का उल्लेख किया गया है:श्री राम कथा और देवकीनंदन कृष्ण की बाल लीला का विस्तारपूर्वक वर्णन इस उपन्यास में दिलचस्प एवं पठनीय है. इस उपन्यास में पात्रता घटनाएं तो काल्पनिक है लेकिन पाठक को उपन्यास को पढ़ते-पढ़ते मौलिकता और वास्तविकता से कम प्रतीत नहीं होता. इस उपन्यास के लेखक इतिहासकार और पुरातत्वविद भी हैं. उन्होंने राम पथ वन गमन के प्रामाणिक तथ्यों के साथ महानदी के उद्गम और राम वन गमन के स्थानों जैसे मां कौशल्या का जन्म स्थान कौशल दंडकारण्य क्षेत्र महानदी का उद्गम नगरी सिहावा और चंद्रपुरी जो वर्तमान समय में चंदखुरी के नाम से जाना जाता है. आरंग के पुरातन राम वन गमन की घटनाओं से जोड़कर प्रामाणिक तौर पर इस उपन्यास में दिलचस्प तरीके से लिपिबद्ध किया गया.
उपन्यास के अंत में माता यशोदा कान्हा को बताती है त्रेता युग में तुम भगवान राम थे:इस पौराणिक उपन्यास में भगवान महादेव द्वारा कान्हा के दर्शन का वर्णन और अगस्त्य ऋषि की प्रसन्नता के साथ ही दंडकारण्य क्षेत्र में प्रभु राम द्वारा राक्षसों का भीषण नरसंहार का भी वर्णन किया गया है. इस उपन्यास के अंत में यह भी बताया गया है कि रावण युद्ध भूमि में पहुंचकर भगवान रामचंद्र जी को ललकारते हुए कहते हैं कि अपनी मृत्यु के लिए तैयार हो जाओ. इस कथा के इस वाक्य को माता यशोदा से सुनते हुए सोए हुए कान्हा उत्तेजित होकर उठकर अचानक जोश पूर्वक अपनी मां से रहता है. मां मेरा धनुष बाण कहां है. अत्याचारी रावण मुझे ललकार रहा है. यह घटना इस उपन्यास का सार तत्व है. तब माता यशोदा रहस्य उजागर करते हुए कान्हा को समझाती है. बेटा त्रेता युग में तुम एक अवतार भगवान श्री राम थे और मैं तुम्हारी ही कथा सुना रही थी. यह सुनकर कान्हा भाव विभोर होकर अपनी मां यशोदा को गले से लगा लिया.