रायपुर:हमेशा से ही सनातन धर्म की परम्परा रही है कि, पुरुष ही पितृ का पिंडदान करते हैं. महिलाओं का पिंडदान करना वर्जित होता है. हालांकि कई बार ऐसा देखा गया है कि महिलाएं भी पितरों का पिंडदान करती हैं. पंडितों की मानें तो महिलाओं द्वारा किए गए पिंडदान के नियम कुछ अलग होते हैं.
आइए आपको हम बताते हैं कि, शास्त्रों में महिलाओं के द्वारा पितरों के पिंडदान करने की मनाही क्यों होती है. इसके अलावा कई जगहों पर महिलाओं द्वारा नारियल फोड़ने की भी मनाही है. ईटीवी भारत ने इस विषय में अधिक जानकारी के लिए ज्योतिष शैलेंद्र पचौरी से बातचीत की.
नारियल न फोड़ने का कारण:ज्योतिष शैलेंद्र पचौरी का कहना है कि "नारियल बलि का प्रतीक होता है. इसलिए उसे केवल पुरुष ही तोड़ सकते हैं. नारियल में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का स्थान होता है. धार्मिक आयोजनों में नारियल चढ़ाना बेहद शुभ माना गया है. माताओं और बहनों के अंदर मातृत्व भावना होती है. यही कारण है कि महिलाओं को नारियल फोड़ने की मनाही होती है."
माता सीता ने किया था दशरथ का श्राद्ध :श्राद्ध का काम वैसे तो घर के बड़े बेटे या छोटे बेटे के हाथों किया जाना उचित माना जाता है. मान्यता है कि इससे पितरों को मोक्ष मिलती है. हालांकि दशरथ जी का श्राद्ध माता सीता ने किया था. इसलिए किसी के घर में यदि पुत्र ना हो तो लड़कियां भी श्राद्ध और पिंडदान का काम कर सकती है.
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इसलिए वर्जित है नारियल तोड़ना: पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु धरती पर आए थे, तो वे अपने साथ माता लक्ष्मी, कामधेनु गाय और श्री फल यानी कि नारियल लाए थे. नारियल को श्रीफल कहा जाता है. नारियल एक बीज का फल है, जिसका उपयोग प्रजनन के लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए नारियल को प्रजनन क्षमता से जोड़ा गया है. महिलाएं बीज को अपने गर्भ में स्थान देकर शिशु को जन्म देती है. एक माता रूपी महिला का इसी बीज को फोड़ना उचित नहीं है. यही वजह है कि महिलाओं का नारियल फोड़ना वर्जित है.
बहू कर सकती है पिंडदान:पुराने जमाने में केवल पुरुष ही पितरों का पिंडदान करते थे. लेकिन गरुड़ पुराण में कन्या के हाथों पितरों का श्राद्ध करने की बात कही गई है. ऐसे में कन्या श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों का श्राद्ध कर सकती है. पितृ भी अपनी कन्या के हाथों किए श्राद्ध को स्वीकार करते हैं. इसके अलावा बहू के हाथों किया गया पिंडदान भी पितर स्वीकार करते हैं.