रायपुर: लॉकडाउन के कारण सेनिटरी पैड की कमी हो गई, जिसके कारण महिलाओं-लड़कियों को एक बार फिर कपड़ा यूज़ करने के लिए बाध्य होना पड़ा. कई राज्यों और जिलों में सरकार स्कूलों में सेनिटरी पैड का वितरण करती है, लेकिन लॉकडाउन के कारण स्कूलों के बंद होने से कई लड़कियों को सेनेटरी पैड उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. लॉकडाउन के कारण सेनिटरी पैड के निर्माण पर भी असर पड़ा है, जिससे ग्रामीण स्तर के रिटेल पॉइंट्स पर पैड की उपलब्धता बेहद प्रभावित हुई है.
मजबूरी का नाम कपड़ा
लॉकडाउन ने महिलाओं को एक बार फिर सालों पहले धकेल दिया, जब सूती कपड़े को बार-बार यूज़ करके, बाद में उसे धोकर और सुखाकर दोबारा इस्तेमाल में लाया जाता था. जबकि कपड़े के पैड के कई नुकसान हैं. जैसे कि अगर कपड़ा बहुत पुराना हुआ, तो उससे भी इन्फेक्शन का खतरा होता है. कपड़ा ज्यादा देर तक ब्लड के फ्लो को नहीं रोक पाता, ऐसे में लीकेज की समस्या भी होती है.
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एक कपड़े को ज्यादा इस्तेमाल करने से भी इन्फेक्शन की समस्या होती है. जबकि सेनिटरी पैड इस्तेमाल करने में आसान होता हैं. उनमें ब्लड लॉकिंग सिस्टम होता है. उसे हर 5-6 घंटे में बदल देना चाहिए. ये डिस्पोजेबल होते हैं. पैड के इस्तेमाल से एलर्जी की संभावना बेहद कम होती है, हालांकि एक पैड यूज भी ज्यादा देर तक नहीं करना चाहिए.
लंबे समय से चल रहे लॉकडाउन ने सेनिटरी पैड की उपलब्धता को किया प्रभावित
गांव के लोग प्रखंड या जिला स्तर से सेनिटरी पैड की खरीदारी करते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण यातायात साधन उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं, जिससे प्रखंड या जिला स्तर पर पैड नहीं पहुंच पा रहा है. सेनेटरी पैड की आसान उपलब्धता में होलसेलर्स को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
लगातार दो महीने तक देशव्यापी लॉकडाउन के कारण सेनिटरी पैड का होलसेल वितरण काफी प्रभावित हुआ है. अभी सेनिटरी पैड के सीमित उत्पादन की संभावना बनी रहेगी, क्योंकि फैक्ट्री के अंदर मजदूरों को सामाजिक दूरी का ख्याल रखना होगा. साथ ही जिन फैक्ट्रियों में प्रवासी मजदूरों की संख्या अधिक थी, वहां मजदूरों की कमी की समस्या बढ़ सकती है.
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एमएचआई ने किया खुलासा
एमएचएआई ने महावारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद से जुड़े संस्थानों से इस साल के अप्रैल महीने में सर्वेक्षण किया. एमएचआई भारत में मासिक धर्म, स्वास्थ्य और स्वच्छता पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों, शोधकर्ताओं, निर्माताओं और चिकित्सकों का एक नेटवर्क है.
सर्वेक्षण में महामारी के दौरान सेनिटरी पैड का निर्माण, लोगों में वितरण, सप्लाई चेन की चुनौती, सेनिटरी पैड की समुदाय में पहुंच और जागरूकता संदेश जैसे विषयों पर राय ली गई. सर्वे में देश-विदेश के 67 संस्थानों ने हिस्सा लिया.
महामारी के बाद 67% संस्थानों का काम प्रभावित
कोविड-19 के पहले महावारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद से जुड़े 89% संस्थान सामुदायिक आधारित नेटवर्क और संस्थान के माध्यम से लोगों तक पहुंच रहे थे. 61% संस्थान स्कूलों के माध्यम से सेनिटरी पैड का वितरण कर रहे थे. 28 फीसदी संस्थान घर-घर जाकर पैड का वितरण कर रहे थे. 26 फीसदी संस्थान ऑनलाइन और 22 फीसदी संस्थान दवा दुकानों और अन्य रिटेल शॉप के माध्यम से सेनिटरी पैड का वितरण कर रहे थे, लेकिन महामारी के बाद 67% संस्थानों का काम प्रभावित हुआ.
कई छोटे और मध्य स्तरीय निर्माता सेनिटरी पैड निर्माण करने में असमर्थ हुए हैं, जिसमें 25% संस्थान ही निर्माण कार्य पूरी तरह जारी रखे हैं और 50% संस्थान आंशिक रूप से ही निर्माण कर पा रहे हैं.
पैड निर्माण के रॉ मटेरियल आयात में भी चुनौतियां
महावारी कप्स के आयात में भी काफी मुश्किलें आई हैं. भारत और अफ्रीका के कई मार्केटर्स यूरोप में बने हैं. वे कप्स को ही खरीदते हैं, ताकि आइएसओ की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके. अब इनके आयात में समस्या आ रही है. डिस्पोजेबल सेनिटरी पैड के लिए जरूरी रॉ मटेरियल वुड पल्प होता है, जिसकी उपलब्धता भी लॉकडाउन के कारण बेहद प्रभावित हुई है.
लॉकडाउन के कारण ऑनलाइन बिक्री और कूरियर सेवाएं चालू नहीं थीं. इससे नियमित मांग और राहत प्रयास दोनों को चुनौतियों का सामना करना पड़ा.
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भारत में हर साल लगभग 12 बिलियन मासिक धर्म अपशिष्ट
भारत में हर साल करीब 12 बिलियन मासिक धर्म अपशिष्ट होता है. भारत में लगभग 33 करोड़ से अधिक महिलाएं महावारी से गुजरती हैं, जिसमें से 36 प्रतिशत यानि लगभग 12 करोड़ से अधिक महिलाएं सेनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं. अगर प्रति महिला के हर महीने 8 पैड का प्रयोग करने का अनुमान लगाया जाए, तो लगभग हर माह 100 करोड़ से अधिक अपशिष्ट पैड जमा होते हैं. यहीं आंकड़ा बढ़कर साल में करीब 12 सौ करोड़ पर पहुंच जाता है.
सैनिटरी पैड गुणवत्ता के लिए मानक सैनिटरी पैड बनाने के लिए अब्सॉर्बेंट फिल्टर और कवरिंग का सबसे अधिक ख्याल रखना होता है. कवरिंग के लिए भी अच्छी क्वॉलिटी के कॉटन का इस्तेमाल होना चाहिए.
फिल्टर मैटेरियल सेल्युलोजपल्प, सेल्युलोज स्तर, टिशूज या कॉटन का होना चाहिए. इसमें गांठ, तेल के धब्बों, धूल और किसी भी चीज की मिलावट नहीं होनी चाहिए. यह आईएस 758 के अनुरूप होना चाहिए. नैपकिन में कम से कम 60 मिलीलीटर और नैपकिन के वजन से 10 गुना अधिक तरल पदार्थ सोखने की क्षमता होना जरूरी है. नैपकीन कवर (बाहरी परत) कपास, सिंथेटिक, जाली और बिना बुने हुए कपडे़ स्वच्छ होने चाहिए.
निर्माता के नाम या ट्रेडमार्क के साथ सैनिटरी नैपकिन की संख्या हर पैकेट पर चिह्नित होनी चाहिए. सैनिटरी नैपकिन विभिन्न आकृतियों और डिजाइन के हो सकते हैं. नियमित पैड्स 210 एमएम, लार्ज 211 से 240 एमएम, एक्ट्रालार्ज 241 से 280 एमएम और एक्स एक्स एल यानि 281 से अधिक होना चाहिए.