रायपुर:देश में वन्यजीवों और उनके संरक्षण की नीति तैयार करने के लिए वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत साल 2003 में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड का गठन किया गया था. यह बोर्ड वन्यजीवों के संरक्षण हेतु नीति तैयार करने और केंद्र सरकार को संबंधित मामले में सलाह देने के लिए बनाया गया है. राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के गठन के बाद देश के सभी राज्यों में राज्य एक बोर्ड का गठन करता है. कई राज्यों में इसका गठन किया गया और वन्यजीवों के संरक्षण के लिए नियम कायदे भी बनाए गए. लेकिन छत्तीसगढ़ में पिछले 19 सालों से छत्तीसगढ़ वन्यजीव बोर्ड का गठन किया गया है. लेकिन बोर्ड का गठन करने के बाद आज तक कोई नियम नहीं बनाए गए हैं.
छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ बोर्ड की नियमित रूप से बैठक भी नहीं हो रही है जिसके कारण वन्य जीव और जंगल काटे जा रहे हैं. इसके साथ ही जंगल में वन माफियाओं का दबदबा भी लगातार बढ़ता जा रहा है. छत्तीसगढ़ में जंगली जानवरों के शिकार और उनके तस्करी के मामले भी सक्रिय हैं.
वाइल्ड लाइफ बोर्ड का नियम का मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा
छत्तीसगढ़ वाइल्डलाइफ बोर्ड के नियम बनाने की मांग को लेकर 2019 में वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे ने अधिवक्ता हर्षवर्धन के माध्यम से बिलासपुर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. आज से 5 महीने पहले इस मामले में हाईकोर्ट की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को जवाब देने के लिए 3 सप्ताह का समय दिया था. वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे कहते हैं कि, छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा स्टेट वाइल्डलाइफ बोर्ड के नियमों को नहीं बनाना एक गंभीर त्रुटि है. कानूनी तौर पर भी यह एक गंभीर लापरवाही है. इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के वन संपदा, वन्य प्राणियों का प्रबंधन यह सारे विषय नियमों की कमी की वजह सुचारू रूप से विकसित नहीं हो पा रहे हैं
2003 में नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड का गठन हुआ
अजय दुबे का कहना है कि, साल 2003 में जब नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड बना था, तब नियम बनाए गए. वाइल्ड लाइफ एक्ट के अमेंडमेंट के बाद जहां भी स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड हैं. उन्होंने अपने नियम बनाए हैं. जिनमें तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा राज्य ने भी नियम बनाया है. ऐसी स्थिति में इन नियमों का होना वाइल्ड लाइफ एक्ट के एग्जीक्यूशन के लिए जरूरी था. छत्तीसगढ़ में जो वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट है. वह खराब स्थिति में है. स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड जिसके मुखिया मुख्यमंत्री होते हैं. उनके अंदरूनी मामलों में इस तरह की यदि वन विभाग की अक्षमता दिख रही है, तो यह गंभीर है. हमने हाईकोर्ट से निवेदन किया है कि नियम बनाए जाएं. वाइल्ड लाइफ बोर्ड के अंतर्गत नियमों का होना बहुत जरूरी होता है. इसमें लेने वाले निर्णय, परमिशन इन सभी के प्रॉपर एग्जीक्यूशन के लिए नियमों का होना आवश्यक है. हम उम्मीद करते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार इसका सम्मान करेगी और नियमों को फ्रेम कर कोर्ट के सामने रखेगी
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