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pitru paksha 2021 : गुरुवार को तृतीया श्राद्ध, जानिए आखिर क्यों कुतप काल में ही किया जाता है श्राद्ध - mahabharni

पितृ पक्ष (pitru paksh)में जिस तिथि को जिस मृत जातक (mrit jatak)की मौत होती है, उसी तिथि में जातक का पितृपक्ष में श्राद्ध(sradh) पूजा की जाती है. इस दिन पितरों (pitar)के नाम का दान, पूजा के साथ ब्राह्मण भोज(brahman bhoj) का अलग महत्व(importance) होता है.

shradh done during kutap period
कुतप काल में ही किया जाता है श्राद्ध

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Published : Sep 22, 2021, 9:36 AM IST

रायपुरः पितृ पक्ष (pitru paksh)में जिस तिथि को जिस मृत जातक (mrit jatak)की मौत होती है, उसी तिथि में जातक का पितृपक्ष में श्राद्ध(sradh) पूजा की जाती है. इस दिन पितरों (pitar)के नाम का दान, पूजा के साथ ब्राह्मण भोज(brahman bhoj) का अलग महत्व(importance) होता है.

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तृतीया श्राद्ध को कहते हैं महाभरणी

जिस भी व्यक्ति की मृत्यु तृतीया तिथि के दिन होती है उनका तृतीया श्राद्ध (tritiya sradh)के किया जाता है. इसे महाभरणी (mahabharni)भी कहते हैं.

कुतप-काल में ही करें श्राद्ध कर्म

कहते हैं कि श्राद्ध पक्ष के सोलह दिनों में सदैव कुतप बेला में ही श्राद्ध संपन्न करना चाहिए. दिन का आठवां मुहूर्त कुतप काल (Kutap kaal) कहलाता है. दिन के 11:36 से 12:24 बजे तक का समय श्राद्ध कर्म (sradh karm)के विशेष शुभ होता है. इस समय को कुतप काल कहते हैं. इसी समय पितृगणों को तर्पण, दान व ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए.

यूं पहुंचता है पितरों को आहार

नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न-जल आदि पितरों को दिया जाता है. विश्वदेव एवं अग्निष्वात (दिव्य पितर) हव्य-कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं. यदि पितर देव योनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां दिया गया अन्न उन्हें 'अमृत' होकर प्राप्त होता है. यदि गंधर्व बन गए हैं, तो वह अन्न उन्हें भोगों के रूप में प्राप्त होता है. यदि पशु योनि में हैं, तो वह अन्न तृण के रूप में प्राप्त होता है. नाग योनि में वायु रूप से, यक्ष योनि में पान रूप से, राक्षस योनि में आमिष रूप में, दानव योनि में मांस रूप में, प्रेत योनि में रुधिर रूप में और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता है. जिस प्रकार बछड़ा झुंड में अपनी मां को ढूंढ ही लेता है, उसी प्रकार नाम, गोत्र, हृदय की भक्ति एवं देश-काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मंत्र पितरों के पास पहुंचा देते हैं. जीव चाहें सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो, तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है.

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