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चुनावी साल के दौरान छत्तीसगढ़ में क्यों बढ़ जाते हैं नक्सली हमले, जानिए एक्सर्पट की राय - चुनावी साल में छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. 26 अप्रैल को दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में 10 जवान शहीद हो गए. वहीं एक वाहन चालक की भी मौत हो गई. इस नक्सल हिंसा के बाद छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरु हो गया है. इस बीच एक बात सामने आई है कि नक्सली चुनावी साल में बड़े हमले करते आए हैं. हमने नक्सल एक्सपर्ट से यह जानने की कोशिश की कि, नक्सली चुनावी साल में हिंसक वारदात को क्यों ज्यादा अंजाम देते हैं. major Naxalites incidents

Naxalites incidents in election year
चुनावी साल में नक्सल हमले

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Published : May 1, 2023, 8:01 PM IST

चुनावी साल में क्यों होते हैं नक्सली हमले ?

रायपुर: दंतेवाड़ा में 26 अप्रैल को हुए नक्सली हमले के बाद नक्सलवाद को लेकर एक बार फिर से छत्तीसगढ़ में सियासत गरम हो गई है. भाजपा ने इस वारदात के लिए भूपेश सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. वहीं कांग्रेस ने पलटवार करते हुए भाजपा पर ही नक्सली वारदात पर स्तरहीन बयानबाजी कर बलिदानियों का अपमान करने का आरोप लगा दिया. हालांकि ये भी एक बड़ा सवाल है कि आखिर नक्सली, चुनावी सालों में सबसे ज्यादा उत्पात क्यों मचाते हैं. इसके पीछे क्या वजह है, क्या इन घटनाओं का राजनीतिक दलों से कोई संबंध होता है, या फिर, यह नक्सलियों की रणनीति का एक हिस्सा है.


नक्सलियों को लोकतंत्र पर विश्वास नहीं:चुनावी साल में नक्सली वारदात बढ़ने के मामले को लेकर नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा का कहना है कि "चुनावी साल में शासन-प्रशासन की गतिविधियां तेज हो जाती है. जनप्रतिनिधि भी अपने क्षेत्रों में दौरा तेज कर देते हैं लोगों से मेल मिलाप बढ़ जाता है. जनता भी खुलकर सामने आती है. चुनाव में ये लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं. नक्सली इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि, यदि उस क्षेत्र में नेतृत्व पनप गया तो इससे उन्हें हानि होगी."

चुनावी साल में नक्सल घटनाएं बढ़ने की वजह:नक्सल एक्सपर्टवर्णिका शर्मा ने कहा कि "नक्सली चुनावी सालों में किसी बड़ी वारदात को अंजाम देते हैं. ताकि सुरक्षाबलों की गतिविधियां सीमित हो जाए. इन नक्सली हमलों से एक तरफ जहां जनता का मनोबल टूटेगा और उनपर दहशत बढ़ता है. तो, वहीं दूसरी ओर बड़ी वारदातों को अंजाम देकर उन क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं. तीसरी बात सुरक्षाबलों के हत्यारों को लूट कर ले जाते हैं और अपने को हथियारों से लैस करते हैं."

नक्सल एक्सपर्टवर्णिका शर्मा ने कहा कि "नक्सली इस तरह की हिंसक घटनाओं से जवानों का मनोबल तोड़ने की कोशिश करते हैं. नक्सलियों की सामान्य तौर पर अक्टूबर से दिसंबर के बीच भर्ती की जाती है. फिर उन्हें पहली बार लड़ाई के लिए भेज दिया जाता है, जो उनके मनोबल को बढ़ाने का काम करते हैं. इस प्रकार नक्सली पूरी रणनीति के तहत चुनावी साल में हिंसक वारदातों को अंजाम देते हैं."


जनवरी में ही नक्सलियों ने शुरू किया टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन:नक्सल एक्सपर्टवर्णिका शर्मा ने बताया कि "पहले नक्सली 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बाद अपना टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन (टीसीओसी) शुरु करते थे. लेकिन इस साल नक्सलियों ने जनवरी से टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन (टीसीओसी) शुरू कर दिया. नक्सली बताने की कोशिश कर रहे हैं कि वे सभी तरह से संपन्न हैं और इस टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन (टीसीओसी) को शुरू कर रहे हैं."



"हमलों को लेकर होती है राजनीति":नक्सल एक्सपर्टवर्णिका शर्मा ने बताया कि "इसमें कुछ राजनीतिक पार्टियां जो चुनाव में सक्रिय होती हैं, वह एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाती है. सत्ता पक्ष, विपक्ष पर और विपक्ष, सत्ता पक्ष पर आरोप लगाते हैं. लेकिन नक्सली अपनी रणनीति यानी कि एक ही लाइन पर चलते हैं. कई बार कुछ चीजें या कुछ परिस्थितियां उनका उत्साह जरूर बढ़ाते है.

राज्य और केंद्र सरकार मिलकर करे काम:नक्सल एक्सपर्टवर्णिका शर्मा ने बताया कि "शासन प्रशासन को सतर्क होकर सुनियोजित रणनीति के साथ सामूहिक रूप से काम करने की जरूरत है. चाहे वह फिर राज्य सरकार हो और केंद्र सरकार, एक साथ मिलकर इस मोर्चे पर काम करना होगा."

यह भी पढ़ें: Narayanpur :ओरछा में आईईडी ब्लास्ट करने वाला नक्सली गिरफ्तार


चुनावी साल में हुए नक्सल वारदातों पर एक नजर

  1. दंतेवाड़ा नक्सली हमले से पहले बीजापुर के गंगालूर में विधायक विक्रम मंडावी के काफिले को नक्सलियों ने निशाना बनाया था. इसमें किसी प्रकार की हानि नहीं हुई. बीजापुर विधायक के काफिले में पीछे आ रही नेलसनार जिला पंचायत सदस्य पार्वती कश्यप की गाड़ी के पहिए पर गोली लगी थी.
  2. इसी साल फरवरी के महीने में नक्सलियों ने सिलसिलेवार तरीके से तीन भाजपा नेताओं की हत्या की थी. पांच फरवरी को बीजापुर भाजपा मंडल अध्यक्ष नीलकंठ कक्केम, 10 फरवरी को नारायणपुर बीजेपी उपाध्यक्ष सागर साहू और 11 फरवरी को इंद्रावती नदी के पार दंतेवाड़ा-नारायणपुर जिले की सरहद पर बीजेपी नेता रामधर अलामी की हत्या की गई थी.
  3. 2019 में लोकसभा के चुनाव हो रहा था. 10 अप्रैल 2019 को दंतेवाड़ा विधायक भीमा मंडावी के काफिले को निशाना बनाया गया था. यहां नक्सलियों ने एंबुश लगाकर आईईडी ब्लास्ट किया था. हमले में विधायक भीमा मंडावी समेत 5 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी.
  4. 25 मई 2013 में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा, झीरम घाटी से गुजर रही थी. तभी नक्सलियों ने जोरदार हमला किया था. इस हमले में कांग्रेस के विद्याचरण शुक्ल, नंदकुमार पटेल, उदय मुदलियार, महेंद्र कर्मा जैसे कद्दावर नेताओं समेत 31 लोगों की मौत हुई थी.
  5. 20 अप्रैल 2012 को बीजापुर के भाजपा विधायक महेश गागड़ा ग्राम सुराज अभियान से लौट रहे थे. तभी नक्सलियों ने उन्हें निशाना बनाने की कोशिश की. हालांकि उनकी जान बच गई थी. इसमें करीब 6 लोगों की मौत हुई थी.
  6. 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के तत्कालीन वन मंत्री विक्रम उसेंडी पर हमला किया था. इस हमले में उसेंडी तो बच गए थे, लेकिन सुरक्षा में लगे दो जवानों को जान गंवानी पड़ी थी.
  7. 2008 के विधानसभा चुनाव में दंतेवाड़ा में चुनाव प्रचार चल रहा था. इस दौरान भाजपा नेता रमेश राठौर और सूर्यप्रताप सिंह को नक्सलियों ने निशाना बनाया था. इसी साल, दंतेवाड़ा में कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष त्रिनाथ सिंह ठाकुर की गदापाल गांव के पास हत्या कर दी गई थी.

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