रायपुर: बसंत ऋतु आते ही लोग काफी खुश और ताजा महसूस करते हैं. ठीक इसके विपरीत सर्दियों के दौरान लोगों में आलस बढ़ जाता है. लोगों के काम करने की क्षमता कम होने लगती है. ऐसा इसलिए क्योंकि सर्दियों के मौसम में लोग मौसम के अनुसार भावात्मक विकार से पीड़ित हो जाते हैं. जिससे आम दिनचर्या में भी काफी बदलाव देखने को मिलता है. साइकोलॉजी के अनुसार, इस बीमारी को एसएडी कहते हैं.
क्यों होता है मूड स्विंग्स: डॉ भीमराव अंबेडकर स्मृति चिकित्सालय के मनोरोग विभाग की एचओडी डॉ सुरभि दुबे का कहना है कि "ठंड के मौसम में व्यक्ति ज्यादा आलसी होता है. क्योंकि धूप कम आती है. ठंड की वजह से लोगों को बहुत ज्यादा बाहर निकलने का मन नहीं करता. चहल कदमी भी नहीं होती. इस वजह से शरीर को धूप नहीं मिल पाती. जिस वजह से व्यक्ति के शरीर में विटामिन डी और मेलाटोनिन की कमी हो जाती है. जिससे कमजोरी महसूस होने लगती है. मेलाटोनिन हमारे शरीर और दिमाग का स्लीप साइकिल को मॉनिटर करता है. नींद में गड़बड़ी होना, भूख कम लगना या बाथरूम जाने के टाइमिंग में गड़बड़ी होना. इस तरह के डिस्टरबेंस इस मौसम में हमें होने लगते हैं. ज्यादातर लोग घरों में दुबके रहते हैं. ऐसी आदतें ठंड में अक्सर देखने को मिलती है. जिसका असर मूड स्विंग के रूप में दिखाई देती है."
सर्दियों में होने वाले मूड स्विंग्स के लक्षण:
- हताश और बेचैनी महसूस करना,
- शरीर दर्द, सिर दर्द, ऐंठन या पाचन संबंधी समस्या होना,
- कभी एकदम खुश, तो उसी पल मन का उदास हो जाना,
- अचानक गुस्सा आना और फिर शांत हो जाना,
- नींद और भूख लगने के समय में बदलाव आना,
- वजन का अचानक बढ़ जाना या कम हो जाना,
- याददाश्त कमजोर होना,
- सामाजिक अलगाव या फिर अकेलापन महसूस करना,
- स्वभाव में गुस्सा और आक्रामकता का बढ़ना.