रायपुर: देश में लगातार कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं. छत्तीसगढ़ में भी कोरोना संक्रमण की स्थिति भयावह होती जा रही है. संकट काल में भी नक्सली अपनी आदात से बाज नहीं आ रहे हैं. महामारी के इस दौर में भी नक्सली संगठन सुरक्षाबलों के ऑपरेशन में मारे गए नक्सलियों की याद में शहीदी सप्ताह मना रहे हैं. इस साल 28 जुलाई से 3 अगस्त तक नक्सलियों ने शहीदी सप्ताह का आयोजन किया है. नक्सली क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों ने अब नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
शहीदी सप्ताह में नक्सली मारे गए साथियों की याद में स्मारक बनाते हैं और सभाएं करते हैं. इन सभाओं के दौरान नक्सली मारे गए अपने साथियों का महिमामंडन करते हैं. शहीदी सप्ताह के दौरान नक्सलियों का यह भी मुख्य उद्देश्य होता है कि ज्यादातर ग्रामीणों को अपने संगठन से जोड़ा जा सके. शहीदी सप्ताह के पहले ही नक्सली बैनर-पोस्टर के माध्यम से जगह-जगह ग्रामीणों को इसे मनाने की जानकारी देते हैं.
जवानों का सर्चिंग ऑपरेशन तेज
वहीं नक्सलियों के शहीदी सप्ताह को देखते हुए छत्तीसगढ़ गृह विभाग ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अलर्ट जारी किया है. साथ ही सर्चिंग अभियान तेज कर दिया गया है. जिससे शहीदी सप्ताह के दौरान नक्सली अपने हिंसक मंसूबे में कामयाब न हो सके और दहशत का माहौल पैदा न कर सके. सुरक्षाबल के जवान नक्सलियों के बनाए गए स्मारकों को ध्वस्त करने का भी काम कर रहे हैं, जिससे नक्सली उन जगहों पर सभा न कर सके.
ग्रामीण कर रहे नक्सलियों के शहीदी सप्ताह का विरोध
नक्सलियों ने पहले भी शहीदी सप्ताह मनाया है और जवान उनके हुए स्मारकों को तोड़ते आए हैं, लेकिन इस बार शहीदी सप्ताह के दौरान नक्सल प्रभावित क्षेत्रों का नजारा कुछ अलग ही है. नक्सलियों के इस शहीदी सप्ताह का अब ग्रामीणों ने खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया है. छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की बात की जाए तो यहां पर नक्सलियों द्वारा शहीदी सप्ताह मनाए जाने के ऐलान के बाद ग्रामीण एकजुट हो गए हैं और नक्सलियों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. ग्रामीणों ने नक्सलियों के खिलाफ बैनर-पोस्टर जलाते हुए नारेबाजी कर विरोध प्रदर्शन किया है.
इस विरोध प्रदर्शन के बाद कई दूसरी जगहों पर भी नक्सलियों के खिलाफ ग्रामीणों का विरोध देखने को मिल रहा है. इन क्षेत्रों के ग्रामीण नक्सलियों के बनाए गए स्मारक की जानकारी जवानों को दे रहे हैं. ग्रामीणों की सूचना मिलने के बाद जवान इन जगहों पर जाकर नक्सली स्मारकों को ध्वस्त कर रहे हैं. इससे साफ जाहिर होता है कि अब ग्रामीण नक्सलियों के अंजाम दिए जा रहे हिंसक घटनाओं से परेशान हो चुके हैं और शांति पूर्ण वातावरण में जीवन यापन करना चाहते हैं.
2015 से लेकर 2020 फरवरी तक के आंकड़ें
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का आतंक कोई नई बात नहीं है. 2015 से लेकर फरवरी 2020 तक की बात करें, तो प्रदेशभर में नक्सली हिंसा में करीब एक हजार लोगों की जान जा चुकी है. इनमें करीब 314 आम लोग भी शामिल हैं. इनका नक्सल आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं था, लेकिन इस हिंसा की आग में इन्हें भी अपनी जान गंवानी पड़ी है. वहीं इन 5 सालों में 220 जवान शहीद हुए हैं. साथ ही 466 नक्सली भी मुठभेड़ में मारे गए हैं.
पिछले 5 सालों में हुई नक्सली घटनाओं की बात करें तो छत्तीसगढ़ में करीब 2496 नक्सली घटनाएं हुई हैं. लाल आतंक और सुरक्षाबलों के बीच प्रदेश में 904 मुठभेड़ पिछले 5 सालों में हुई हुई है, जहां 2015 से 2018 तक हर साल 500 से ज्यादा नक्सली घटनाएं हुई हैं. वहीं 2019 में यह आंकड़ा घटकर 327 पहुंच जाता है. इससे साफ होता है कि अपने एक साल के कार्यकाल में भूपेश सरकार नक्सलियों पर नकेल कसने में एक हद तक कामयाब रही है.
ग्रामीणों को संगठन में जोड़ने का काम करते हैं नक्सली
नक्सल इलाकों में ग्रामीण और जवानों की काउंसलिंग और अवेयरनेस के लिए काम करने वाली डॉक्टर वर्णिका शर्मा का कहना है कि नक्सली ग्रामीणों के मन में भय और आतंक का आवरण तैयार करते हैं, जहां शासकीय योजनाओं और बाहरी दुनिया की आवाजाही पूरी तरह से बंद होती है. इसके बाद यह नक्सली अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देते हैं.
वर्णिका ने बताया कि नक्सली ग्रामीणों के बीच जाने के लिए उनकी धार्मिक आस्था का मनोवैज्ञानिक तौर पर उपयोग करते हैं. क्योंकि ग्रामीण अपने पूर्वजों को देवी-देवता मानते हैं. उनमें उनकी अटूट आस्था होती है. नक्सली इसी बात का फायदा उठाते हुए पुलिस मुठभेड़ में मारे गए अपने साथियों को शहीद बताते हैं और उन साथियों की याद में अलग-अलग गांवों में स्मारक बनाते हैं. उसके बाद उस स्मारक की पूजा शुरू कर दी जाती है. यह कहकर कि आने वाले समय में वह ग्रामीणों की रक्षा करेंगे और उन्हें शक्ति प्रदान करेंगे.