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नया घर बनाने जा रहे हैं तो पहले जान लें ये वास्तु टिप्स, नहीं तो होगी परेशानी

अगर आप भी नये घर का निर्माण करने जा रहे (Vastu tips for building house ) हैं, तो आपको भी जरूरी वास्तु टिप्स का ज्ञान होना चाहिए. निचे लिखे गए उपायों और बातों पर गौर कर घर बनाने से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होगा.

Vastu Tips Before Building a House
घर बनाने से पहले ये वास्तु टिप्स अपनाएं

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Published : Apr 28, 2022, 7:37 PM IST

रायपुर:वास्तु शास्त्र में दिशाओं का बहुत ही विशेष महत्व (Vastu tips for building house ) है. हर दिशा एक विशिष्ट कार्य के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है. दिशा दूसरे कार्यों के लिए नकारात्मक हो सकती है. वास्तु शास्त्र के माध्यम से हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि कौन-कौन सी दिशाएं किन-किन कार्यों के लिए मंगलकारी है.

वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा

ईशान कोण जल का स्रोत: ईशान कोण जिसे उत्तर पूर्वी कोना कहा जाता है. यह घर का एक महत्वपूर्ण स्थल होता है. यहां पर पूजा कक्ष, योग कक्ष, ध्यान कक्ष, अध्ययन कक्ष और चिंतन कक्ष का होना शुभ माना जाता है. ईशान कोण में ही जल के स्रोत हो तो घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है. इसी तरह दक्षिण पूर्वी कोना जिसे आग्नेय कोण के नाम से जाना जाता है. इसके स्वामी अग्नि होते हैं. शुक्र ग्रह इस दिशा का प्रतीक है. इस स्थान में किचन आदि का होना बहुत शुभ माना गया है. इसी तरह इस क्षेत्र में भारी जनरेटर, इलेक्ट्रिकल के सामान, इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर आदि सामान को रखना उचित माना गया है.

गृह स्वामी को दक्षिण-पश्चिम दिशा में शयन करना चाहिए:एसी, आदि की मशीनें इस दिशा में रखी जानी चाहिए, जिससे घर में सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है. इसी तरह घर के स्वामी का शयनकक्ष, जिसे मास्टर बैडरूम कहा जाता है, वो नैरेत्र कोण में होना चाहिए. गृह स्वामी का गुरुत्व बल भारी होता है. अतः गृह स्वामी को दक्षिण-पश्चिम दिशा में शयन करना चाहिए. इसी दिशा में उसका बैठना शुभ माना गया है. इस क्षेत्र में भारी भरकम सामान बड़े-बड़े गमले, विशालकाय अलमीरा आदि रखने का विधान है.

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कुंवारी कन्याओं के लिए ये कोना अधिक बेहतर:वायव्य कोण का उत्तर-पश्चिम कोना कुंवारी कन्याओं के लिए बहुत शुभ माना गया है. कन्याएं इस दिशा में रह सकती हैं. इस दिशा में शयन और रहने पर विवाह में तेजी आती है. इसी तरह घर का ब्रम्ह स्थल, जो कि मध्य स्थल कहलाता है. उस हिस्से में भी पूरी तरह से स्वच्छता-सफाई और ऊर्जा का ध्यान रखना चाहिए. ब्रम्ह स्थल यदि खाली है तो अच्छा माना गया है. इसी तरह पूजा कक्ष ईशान कोण या पूर्व दिशा में या उत्तर दिशा में रखा जा सकता है. ईशान कोण में स्थापित देवताओं का आशीर्वाद प्रत्यक्ष ही घर वालों को मिलता है. ईशान कोण में ही शिव का वास माना गया है.

किचन के लिए दक्षिण-पूर्वी कोना अधिक उपयोगी:इसी प्रकार चौबीसो घंटे जहां अन्न का निर्माण होता रहता है. वह दक्षिण-पूर्वी दिशा भारतवर्ष के नक्शे में जगन्नाथ पुरी मानी गई है. जगन्नाथ पुरी के मंदिर में 9 मटको में पूरे दिन भर भोजन पकता रहता है. वितरित होता रहता है. वह भी भारतवर्ष के अग्नि कोण में माना गया है. इसलिए रसोई का अग्नि कोण में होना बहुत शुभ माना गया है. इस क्षेत्र में सूर्य का प्रभाव सुबह 10:00 बजे के बाद पड़ जाता है. जहां पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती है. अतः रसोई में काम करने वाली महिला और माताओं को प्रत्यक्ष रूप से सूर्य देव का दर्शन होता है. सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा माताओं और बहनों को बल प्रदान करती हैं.

इन पाठों का करना चाहिए श्रवण: दक्षिण दिशा का भी विशेष महत्व है. सेना, पुलिस, आर्मी, अग्निशमन आदि क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगों को दक्षिण दिशा विकसित करनी चाहिए. दक्षिण दिशा में रहने पर साहस, उद्यम, जमीन-जायदाद, भवन-फैक्ट्री आदि की वृद्धि होती है. ऐसे लोगों को अपना बेडरूम या कार्यस्थल कुछ दक्षिण दिशा की ओर रखना चाहिए. श्री हनुमान चालीसा, बजरंग बाण और सुंदरकांड की तरंगे इस दिशा में गूंजती रहनी चाहिए. पूर्व दिशा में रहने वाले जातकों को गायत्री मंत्र, आदित्य हृदय स्त्रोत, सूर्य सहस्त्रनाम, सूर्य चालीसा का पाठ और श्रवण करना चाहिए.

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