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VARLAXMI VRAT 2022 : क्यों शुभ मुहूर्त में ही की जाती है वरलक्ष्मी की पूजा ?

वरलक्ष्मी व्रत भारत में काफी धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इस व्रत का एक खास महत्व है. वरलक्ष्मी पूजा को सही समय पर करना भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता (varalaxmi vrat significance) है.

VARLAXMI VRAT 2022
क्यों शुभ मुहूर्त में ही की जाती है वरलक्ष्मी की पूजा

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Published : Aug 4, 2022, 6:29 PM IST

रायपुर : वरलक्ष्मी व्रत (varalakshmi ) पूजा का महत्व विवाह के बाद बढ़ जाता (varalakshmi pooja 2022 ) है. विवाहित महिलाएं इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा के साथ रखती है. इस दिन इस बात का भी ख्याल रखा जाता है कि पूरे विधि विधान से यह व्रत किया जाए. विवाहित महिलायें इस व्रत को अपने पति और बच्चों की दीर्घायु के लिये करती (varalakshmi vratam 2022 ) हैं. हिंदू शास्त्रों के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि इस शुभ दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने से विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. मान्यताओं के अनुसार इस व्रत की तुलना अष्टलक्ष्मी देवी जो कि प्यार, धन, बल, शांति, प्रसिद्धि,सुख, पृथ्वी और विद्या की आठ देवी हैं,की उपासना करने के बराबर माना जाता (Varalakshmi is worshiped only in the auspicious time) है.

कब मनाते है वरलक्ष्मी व्रत : इसे श्रावण मास की पूर्णिमा से ठीक पहले या दूसरे शुक्रवार को मनाया जाता (varalaxmi vrat significance) है. यदि अंग्रेजी कैलेंडर की बात करें तो यह जुलाई या अगस्त महीने में मनाया जाता है. वरलक्ष्मी व्रत को बड़ी धूमधाम के साथ इन विशेष भारतीय राज्यों में मनाया जाता है.जैसे आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर तमिलनाडु और तेलंगाना. इस विशेष दिन पर भक्तों का उत्साह और विश्वास देखते ही बनता (varalakshmi vratam mahatav) है. यही नहीं बल्कि यह समारोह महाराष्ट्र राज्य में भी बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस दिन राज्यों में एक वैकल्पिक अवकाश भी रखा जाता है. ताकि लोग इसे पूरी श्रद्धा के साथ मना सके.

वरलक्ष्मी व्रत की तैयारी कैसे करे: पूजा मे प्रयोग होने वाली सभी आवश्यक सामग्री एक दिन पहले ही एकत्रित कर ली जाती है. वरलक्ष्मी व्रत के दिन भक्त सुबह जल्दी उठ जाते हैं और स्नानादि करने के बाद साफ वस्त्र ग्रहण करते है. पूजा करने के लिये भक्त सूर्योदय से ठीक पहले उठ जाते है. उसके बाद घर के आस-पास की सफाई की जाती है. पूजा स्थल को विशेष तौर पर साफ किया जाता है. रंगोली भी बनाई जाती है.इसके बाद कलश को सजाया जाता है. इसके लिये चांदी या कांसे को कलश लिया जाता है. इसे चंदन से सुस्ज्जित किया जाता है. इस पर खासतौह पर स्वास्तिक का प्रतीक लगाया जाता है. कलश के अदंर पानी या कच्चा चावल के साथ चूना,सिक्के, सुपारी और पांच अलग-अलग तरह के पत्ते भरे जाते हैं.उसके बाद इसे आम की पत्तियों से ढंक दिया जाता है और उसके ऊपर नारियल रख दिया जाता है.

कैसे की जाती है पूजा : नारियल पर, हल्दी पाउडर के साथ देवी लक्ष्मी की एक तस्वीर भी लगाई जाती है और इसके उपरात इस कलश की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा की जाती है.कलश को चावलों के एक ढेर के ऊपर रखा जाता है. पूजा की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा के साथ की जाती है. उसके बाद देवी लक्ष्मी की स्तुति के मंत्रोच्चारण करते हुऐ पूजा आगे बढ़ाई जाती है.महिलाएं प्रसाद को घर पर ही तैयार करती है. पूरी तरह से स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए. पूजा के दौरान कलावा बांधने भी अति आवश्यक माना गया है.

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पूजा के अगले दिन का अनुष्ठान :पूजा के एक दिन बाद श्रद्धालु स्नान करते हैं और उसके उपरांत पूजा में इस्तेमाल किया गए कलश को हटाया जाता है. कलश के अंदर रखे चावलों को घर में रखे चावल के साथ मिश्रित किया जाता है ताकि सुख स्मृदधि का वास हो. वहीं पूजा में इस्तेमाल किया गए जल को पूरे घर में और चावल पर छिड़का जाता है ताकि नाकारात्मकता का नाश हो.

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