रायपुर: यह प्रेम कहानी राजधानी रायपुर से लगे आरंग इलाके की है. प्रचलित कथा के अनुसार राजा महर की पुत्री चंदा और अहीर यानी यादव जाति के लोरिक के बीच गहरा प्रेम प्रसंग था. इनकी प्रेम कहानी पर फिल्म के साथ ही कई गीत भी लिखे गए हैं. लोरिक और चंदा की प्रेम कहानी को जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम लोरिक के गांव रीवा पहुंची, जहां हमारी टीम ने लोरिक चंदा के नाम से किताब लिखने वाले रीवा गांव के संतोष कुमार साहू से खास बातचीत की. आइये जानें, क्या है लोरिक चंदा की अमर प्रेम कहानी.
क्या है लोरिक चंदा की प्रेम कहानी:रीवा गांव के संतोष कुमार साहू कहते हैं कि "लोरिक चंदा एक प्रणय गाथा है. यह गढ़ गौरा और ग्राम रीवा से संबंधित है. चूंकि राजा मोरध्वज की नगरी के रूप में आरंग को जानते हैं, जो पूर्व में गढ़ गौरा के नाम से भी प्रचलित था. उस दौरान वह राज्य राजा महर का था. राजा महर की पुत्री का नाम चंदा था. चंदा को रीवा गांव के लोरिक से प्रेम हो गया था. लोरिक के पिता अपने दो बच्चों के साथ जब दूसरे राज्य से आए, तो उन्होंने राजा महर को एक भैंस का बच्चा भेंट किया था. वह भैंस बहुत ही अद्भुत था. जिससे राजा महर प्रसन्न हुए और लोरिक के पिता को रीवां में राज्य करने का आदेश दे दिया.
चंदा का रिश्ता लोरिक के बावन से हुआ था तय:संतोष साहू बताते हैं कि "राजा महर ने अपने बेटी चंदा का रिश्ता लोरिक के बड़े भाई बावन से तय किया था. लेकिन लोरिक का बड़ा भाई कुछ कारणवश मोह माया को त्याग कर तपस्या करने जंगल की ओर निकल गए. उनके पिताजी को बड़ा दुख हुआ कि मैं राजा से कैसे ये बात करूं, कैसे मैं उनको बताऊं. चूंकि रिश्ता तय हो चुका था, उस समय लोरिक 18 साल का युवा था. वह दिखने में भी बहुत अच्छा था.
पहली मुलाकात में ही एक दूसरे को दिल दे बैठे लोरिक और चंदा: संतोष साहू बताते हैं कि "लोरिक भी अपने पिता के साथ राजा मेहर के महल गए थे, जहां लोरिक और चंदा की मुलाकात हुई. चंदा उसे देख कर बहुत प्रभावित हुई, जिसके बाद दोनों का प्रेम गाथा शुरू हुआ. कहते हैं हमारे छत्तीसगढ़ में जो लोकगाथा गाया जाता है और उस गाथा में यह बात सामने आती है कि '12 पाली गढ़ गौरा, 16 रीवा के खोर, पलना में बइठे कुंवर चंदा, लेवत हे लोरिक के शोर...' ये बातें लोरिक चंदा की गाथा में खुलकर सामने आती हैं. इसी आधार पर इनका कथा और प्रणयलीला शुरू होता है."