रायपुर: हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. आदिवासी दिवस के मौके पर छत्तीसगढ़ के तमाम जिलों में रंगारंग आयोजन किया जाता है. इसके लिए सरकार की तरफ से कई प्रावधान किए जाते हैं. आदिवासी दिवस पर आयोजन को लेकर अब सवाल भी उठने लगे हैं. आदिवासियों के नेता का कहना है कि 'हर साल सिर्फ एक दिन आदिवासियों के लिए त्योहार मनाकर उन्हें राजनीतिक रूप से साधने की कोशिश की जाती है, लेकिन आदिवासियों की वर्तमान हालात पर कोई चर्चा नहीं होती है'.
'आदिवासियों के त्यौहार का सरकारीकरण कर दिया गया है' आदिवासी नेताओं का कहना है कि 'आदिवासियों के उत्थान के लिए जमीनी स्तर पर किसी तरह के कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं'. आदिवासियों के तमाम मुद्दों और मसलों पर ETV भारत ने सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष और सेवानिवृत्त अधिकारी बीपीएस नेताम से खास चर्चा की. ETV भारत से चर्चा के दौरान बीपीएस नेताम ने आदिवासी दिवस मनाये जाने के पीछे के उद्देश्य और वर्तमान में समाज की व्यावहारिक दिक्कतों पर अपनी बात रखी.
त्योहार का सरकारीकरण
बीपीएस नेताम ने बताया कि 'द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सभी राष्ट्रों का सम्मेलन बुलाकर यह प्रस्ताव पारित किया गया था कि दुनिया भर के मूल निवासियों के संरक्षण के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाए. 1994 में यूनेस्को ने 193 देशों का सम्मेलन आयोजित किया था और इसके बाद इंटरनेशनल मूल निवासियों का दिवस आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा'. बीपीएस नेताम ने बताया कि 'इस सम्मेलन में अनुच्छेद 46 का प्रस्ताव पारित किया गया है, जो हमारे संविधान की तरह है. आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन को कैसे संरक्षित किया जाए, इसका उल्लेख हमारे भारतीय संविधान में भी है. छत्तीसगढ़ में भी सर्व आदिवासी समाज ने पिछले कई सालों से आदिवासी दिवस को भव्य तरीके से मनाते आ रही है, लेकिन अब इस त्योहार का सरकारीकरण कर दिया गया है.
आदिवासियों को जंगलों से खदेड़ा जा रहा
उन्होंने कहा कि 'जिन घनघोर जंगलों में आदिवासी निवास करते हैं, उनको क्या पता कि उस जंगलों के गर्भ में अमूल्य खनिजों का भंडार है'. नेताम ने कहा, 'इन खनिजों को निकालने के लिए लगातार प्रयास होते रहे हैं, छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो सालों से आदिवासी अपने जंगलों को सहेज कर रखे हैं. अब प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए उन्हें जंगलों से खदेड़ा जा रहा है. स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता है. जमीन अधिग्रहित कर जंगलों से खदेड़ दिया जाता है'. उन्होंने कहा कि, 'हम चाहते हैं जिनकी जमीन उस क्षेत्र में हो उनको किसी भी सरकारी उपक्रम में लीज होल्डर बनाया जाए, ताकि मूल आदिवासियों को उनका हिस्सा मिल सके'.