रायपुर : विधानसभा चुनाव 2018 के दौरान छत्तीसगढ़ की जेलों में बंद आदिवासियों का मुद्दा गर्माया हुआ था. यहां तक कि इस मामले को लेकर उस समय विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने तो इसे चुनावी घोषणा पत्र में शामिल कर लिया था. साथ-साथ प्रदेश की विभिन्न जेलों में बंद आदिवासियों को छोड़ने का वादा तक कर दिया. इस वादे के साथ कांग्रेस बंपर बहुमत के साथ छत्तीसगढ़ की सत्ता पर काबिज हुई. आज करीब सवा 3 साल से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन जेलों में बंद उन आदिवासियों की रिहाई के लिए अब तक पहल नहीं की गई.
हालांकि सरकार बनने के बाद इस मामले में एक कमेटी गठित की गई और उसकी अनुशंसा पर कुछ आदिवासियों को रिहा भी किया गया. बावजूद इसके आज भी हजारों आदिवासी प्रदेश की जेलों में बंद अपनी रिहाई के इंतजार में हैं. यह आरोप खुद (Tribal leader Arvind Netam alleges Congress government ) आदिवासी नेता लगा रहे हैं. इसको लेकर आदिवासी समाज में काफी नाराजगी है. समाज से जुड़े नेताओं का मानना है कि सरकार ने इस मामले में अगर गंभीरता नहीं दिखाई तो इसका दुष्परिणाम कहीं न कहीं आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है.
साल 2019 में बनाई गई थी पटनायक कमेटी
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस एके पटनायक की अध्यक्षता में साल 2019 में एक कमेटी, पटनायक कमेटी बनाई गई. यह कमेटी छत्तीसगढ़ की जेलों में बंद निर्दोष आदिवासियों की रिहाई के लिए बनाई गई. कमेटी तीन बिंदुओं के आधार पर मामलों की समीक्षा कर रही है. इनमें छोटे अपराध, बड़े अपराध और नक्सल से जुड़े अपराध शामिल हैं. छोटे अपराधों में चोरी और लिमिट से ज्यादा शराब रखने जैसे मामले शामिल हैं. वहीं बड़े अपराध में हत्या, दुष्कर्म और मारपीट जैसे मामले हैं. नक्सल से जुड़े मामले को भी दो वर्गों में बांटा गया है. पहला खुद हथियार उठाने का मामला और दूसरा जो भीड़ में शामिल रहे.
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साल 2019 में मामलों की समीक्षा शुरू, उस वक्त थे कुल 23 हजार मामले
राज्य सरकार ने अप्रैल 2019 में मामलों की समीक्षा शुरू की. तब करीब 23 हजार मामले थे. इनमें से 6,743 विचाराधीन मामले में 1,039 के खिलाफ नक्सल मामले दर्ज थे. साथ ही राज्य की विभिन्न जेलों में बंद 16,475 आदिवासियों में से 5,239 नक्सली मामलों में आरोपित थे. जानकारी के अनुसार इनमें ऐसे आदिवासी भी शामिल थे, जो गरीबी या कानूनी मदद नहीं मिलने से गिरफ्तारी के खिलाफ अपील तक नहीं कर पाए. कुल मामलों में से करीब चार हजार मामलों को विचार के लिए कमेटी के सामने रखा गया. इनमें कई मामले बेहद सामान्य किस्म के थे. इसके बावजूद संबंधित आदिवासी 17 वर्ष से अधिक समय से जेलों में बंद थे. कमेटी ने चार हजार में से भी 1,141 को विचार करने के लिए रखा.
जून 2021 में लिये गए फैसले से 726 लोगों को मिला सीधा लाभ
जून 2021 में मिली जानकारी न्यायालय के माध्यम से आदिवासियों के विरुद्ध दर्ज प्रकरणों की वापसी के लिए जस्टिस एके पटनायक कमेटी के समक्ष रखे गए. इनमें से समिति ने 627 केस वापस लेने की सिफारिश की. पटनायक कमेटी की सिफारिश पर प्रदेश सरकार ने 594 मामलों को वापस लिया. इस फैसले से 726 लोगों को सीधा लाभ मिला. वहीं अभी भी 33 मामले अदालत में वापस लेने के लिए लंबित हैं.
718 मामले वापस लेने का सरकार कर रही दावा
इसी तरह पुलिस विभाग द्वारा 365 नक्सल मामलों को न्यायालय में स्पीड ट्रायल के लिए भेजा गया. इनमें से न्यायालय द्वारा 124 मामलों को दोष मुक्त करते हुए 218 आरोपियों को लाभान्वित किया गया. इस तरह प्रदेश सरकार 31 मई 2021 तक 944 निर्दोष आदिवासियों के खिलाफ दर्ज 718 मामले वापस लेने का दावा कर रही है. लेकिन अब भी ऐसे ही मामलों में जेलों में बंद करीब हजारों आदिवासी रिहाई के इंतजार में हैं. इसको लेकर आदिवासी समाज का एक वर्ग सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहा है.
चुनाव के समय किये वादे के अनुसार नहीं हो रहा काम : नेताम
वरिष्ठ आदिवासी नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री सह कांग्रेस नेता और सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक अरविंद नेताम ने कहा कि "मेरा मानना है कि इस मामले में जिस ढंग से चुनाव के समय वादा किया गया था, उस ढंग से काम नहीं हो रहा है. अब इसमें क्या अड़चन है, यह कहना मेरे लिए मुश्किल है. यह सही है कि हर मामले में आरोपित को नहीं छोड़ सकते, लेकिन दुखी होकर कहता हूं कि बहुत से ऐसे मामले हैं जिसमें आज तक ट्रायल ही शुरू नहीं हो पाई है. प्रजातंत्र में यह स्थिति ठीक नहीं है."