रायपुर :कहते हैं शौक और जुनून से बड़ी कोई चीज नहीं होती. पढ़ने-लिखने का शौक इस तरह सिर चढ़ जाए कि पढ़ने वाला फिल्मों के लिए लिखने लगे तो फिर क्या कहने. ऐसा ही वाकया (Chhattisgarhi film writer Dilip Kaushik ) छत्तीसगढ़ के शिक्षक दिलीप कौशिक के साथ भी हुआ है. स्कूल के समय में कविता लिखने और पढ़ने के शौक के कारण आज वे छत्तीसगढ़ी और भोजपुरी फिल्मों के लिए पटकथा और संवाद लिखने का काम कर रहे हैं. दिलीप शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला लिमतरा (मस्तूरी) में गणित के शिक्षक हैं. साथ-साथ वे स्कूल का प्रभार भी देख रहे हैं. ईटीवी भारत ने दिलीप कौशिक से खास बातचीत की. आइये जानते हैं उन्होंने क्या कहा, अपने इस सुहाने सफर के बारे में.
सवाल-आप गणित के शिक्षक हैं और फिल्मों के लिए लिख रहे हैं. शुरुआत आपकी कब से हुई?
जवाब -लिखने का शौक स्कूल के दिनों से था. कक्षा नवमी के दौरान कविता लिखा करता था. उस समय मुझे उपन्यास पढ़ने का बहुत शौक था. पढ़ते-पढ़ते मेरा लिखने का शौक बढ़ने लगा.
सवाल-आपने फिल्मों में लेखन के लिए कैसे अप्रोच की?
जवाब-फिल्म के लिए लेखन करना भी इत्तेफाक से ही हुआ. एक व्यक्ति ने कहा था कि वे फिल्में बनाना चाहते हैं. लेकिन मेरे मित्र ने कहा कि आप गाना लिखते हो तो फिल्मों के लिए भी लिखना शुरू करो. फिल्म में किस तरह का लेखन किया जाता है, मुझे यह पता नहीं था. बाद में मैं दो पन्नों पर संक्षेपण लिखकर प्रॉड्यूसर के पास पहुंचा. उन्हें वह बहुत पसंद आया. बाद में मैंने स्क्रिप्ट तैयार की. मैंने शुरुआत छत्तीसगढ़ी फिल्म "ससुराल" के लिए स्क्रिप्ट लिखने के काम से किया. सामान्य रूप से 55 से 60 सीन में एक फिल्म तैयार हो जाती है. लेकिन जब मैंने पहली बार लेखन किया, उसमें 130 सीन लिख दिए. क्योंकि मुझे जानकारी नहीं थी. बाद में फिल्म के सीन कम किए गए और फिल्म बनी.