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छत्तीसगढ़ का वो सांसद जो राजनेता नहीं सच्चा जननेता था

छात्र जीवन में ही महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन से प्रभावित होकर आजादी की लड़ाई में कूदने वाले और करीब 9 साल जेल में काटने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी केयूर भूषण की कहानी

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Published : Apr 22, 2019, 11:17 PM IST

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी केयूर भूषण

रायपुर: ये पंक्तियां छत्तीसगढ़ के उस सांसद की याद में सही ही लिखी गई हैं, जो राजनेता तो बन गए लेकिन स्वभाव और व्यक्तित्व हमेशा आम लोगों की तरह ही बना रहा. वो सांसद जिन्हें राजनेता से पहले लोग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के तौर पर याद करते हैं. हम बात कर रहे हैं छात्र जीवन में ही महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन से प्रभावित होकर आजादी की लड़ाई में कूदने वाले और करीब 9 साल जेल में काटने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी केयूर भूषण की.

राजनेता नहीं सच्चा जननेता थे केयूर भूषण

साइकिल से शहर घूमते थे भूषण
देश की आजादी के बाद भी वे एक गांधीवादी के तौर पर लगातार समाज सुधार के लिए कार्य करते रहे. अपने बेहद सहज और सरल स्वभाव के चलते उनकी लोकप्रियता हमेशा बनी रही. 1980 से लेकर 1990 तक करीब 10 साल रायपुर के सांसद रहे और यहां के पिछड़े और गरीब तबके की आवाज संसद में बुलंद करते रहे. केयूर भूषण अक्सर साइकिल की सवारी करते हुए शहर में नजर आ जाते थे और सहज भाव से ही आम लोगों से मिलते और उनके सुख-दुख साझा करते थे.

सियासत के तामझाम से दूर भूषण आम लोगों से हमेशा जुड़े रहे ऊंच-नीच का भाव खत्म करने के लिए उन्होंने अपना जातिसूचक सरनेम ही नाम से हटा लिया था.

केयूर भूषण की पहचान एक छत्तीसगढ़ी साहित्यकार के तौर पर भी होती है. उन्होंने कई किताबें छत्तीसगढ़ी में लिखी है, अपने संसदीय जीवन में भी साहित्यकारों और कलाकारों को भरपूर मान और सम्मान दिया. उनके प्रयासों से ही रायगढ़ में चक्रधर समारोह का प्रारंभ हुआ था. केयूर भूषण ने छत्तीसगढ़ी बोली को राजभाषा बनाने के लिए भी निरंतर संघर्ष किया था.


भारत छोड़ो आंदोलन में थे शामिल
उनके बारे में बताया जाता है कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफत करने को लेकर उन्हें गोली मारने का आदेश दे दिया गया था. लेकिन इस आदेश को तत्कालीन रायपुर कलेक्टर ने मानने से इनकार कर दिया था. हालांकि केयूर भूषण को अपने जीवन के कई साल जेल में ही बिताने पड़े थे. देशभक्ति का यही जज्बा लिए केयूर भूषण लगातार समाज के पिछड़े और कमजोर तबके की वकालत करते रहे. यहां तक अपने पैतृक जमीन को भी उन्होंने कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए दान कर दिया है. भले ही कांग्रेस में उनको उस तरह याद नहीं किया जाता जिसके लिए वे हकदार थे. लेकिन छत्तीसगढ़ से देश की संसद पहुंचे नायाब हीरो में से केवल भूषण का नाम हमेशा अग्रिम पंक्तियों में लिखा जाएगा. इस माटी पुत्र के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता.

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