रायपुर: पहचाना मुझे मैं हूं नन्हीं गौरैया…पहले मैं आपके घर में बेधड़क आती जाती थी आंगन या बाड़ी पर लगे नीम के पेड़ पर फुदकती थी…मैं इंसानों से इतना ज्यादा घुल मिल गई थी कई बार मैं आपके खाने की थाली से भी दाना चुग लेती थी…. जब कोई बच्चा खाना खाने से मना करता था तो मां उसे मनुहार करते हुए कहती थी कि ये गौरैया का निवाला है… और छोटे बच्चे उस निवाला को मेरे नाम से खा लिया करते थे… गर्मी के दिनों में लगभग सभी घरों में मेरी प्यास बुझाने के लिए सकोरे रखे जाते थे… चावल साफ करती मां मेरे लिए भी दाना बिखेर देती थी…. कई लोगों के लिए चिड़िया मतलब मैं ही यानी गौरैया ही थी.
मैं लगभग पूरी दुनिया में जहां भी इंसानों ने अपनी आबादी बसाई है.. वहां मैं भी पहुंच गई … दुनियाभर में मेरी कई प्रजाति पाई जाती थी… लेकिन अब मैं बेहद खतरनाक दौर से गुजर रही हूं… मेरी कई प्रजाति विलुप्त होने की कागार पर पहुंच गई है….मेरी संख्या भी अब बेहद कम हो गई है… धीरे धीरे खत्म होने की कगार पर पहुंच रहीं हूं मैं… अब मेरे बच्चे अपनी आंख खोलने से पहले मौत की आगोश में सो जाते हैं… मेरे प्यारे दोस्तों बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि मेरी बर्बादी के पीछे कहीं न कहीं आप भी जिम्मेदार हैं… आपने अपनी खेतों में कीटनाशक के नाम पर इतना जहर घोला कि मेरा भोजन जहरीला हो गया है… आपके मोबाइल टॉवर्स से निकलने वाली खतरनाक विकिरण मुझे मौत की मुंह में धकेल रही हैं….जिस तरह से पेड़ों को काटे जा रहे हैं… मेरे लिए अपना घोसला बनाना कठीन हो रहा है… आज ऊंची ऊंची इमारतें बनाई जा रही हैं… इनके मुंडेर तक पहुंचना ही मेरे लिए कठीन है आगर किसी तरह पहुंच भी जाउं तो अब मेरे घोसलों को सफाई के नाम पर आप उसे तोड़ देते हो.