रायपुर :राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए भले ही आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई हो, लेकिन कहीं न कहीं महिलाएं अपने पतियों से अलग अपनी मजबूत छवि बनाने से पीछे हटती नजर आती हैं. ये हम नहीं बल्कि राजधानी के चौक-चौराहों पर लगे नगरीय निकाय चुनाव में महिला प्रत्याशियों के प्रचार के लिए लगाए गए पोस्टर कह रहे हैं.
महिला प्रत्याशी या डमी कैंडिडेट ! दरअसल, इस बार राजधानी रायपुर से नगरीय निकाय चुनाव के लिए कुल 137 महिला प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं, जो राजनीति में अपना भाग्य आजमा रही हैं, लेकिन राजनीति में महिलाओं की सहभागिता और सशक्तिकरण जैसे नारों के बीच एक जो तस्वीर उभरकर सामने आ रही है वो है इन महिला प्रत्याशियों के पतियों की, जो बैनर-पोस्टर से लेकर चुनाव प्रचार के लिए मैदान में दिख रहे हैं.
महिला प्रत्याशियों से जुड़े फैक्ट
- चुनावी मैदान में हैं कुल 137 महिला प्रत्याशी.
- रायपुर नगर निगम के 70 वार्डों में से 23 वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित.
- बैनर-पोस्टर्स में महिला प्रत्याशियों के पतियों के नाम और फोटो का हो रहा इस्तेमाल
महिलाओं के लिए आरक्षित सीट से चुनाव लड़ रही ये महिलाएं भविष्य में जनता की आवाज बनने के साथ-साथ विकास करने में कितनी कारगर साबित होंगी या डमी कैंडिडेट बनकर रह जाएंगी इस पर ETV भारत ने महिला प्रत्याशियों से बात की, जिसमें उन्होंने इस पर कई अलग-अलग तर्क दिए.
ETV भारत ने वार्ड 44 की प्रत्याशी रेखा तिवारी से इस विषय पर बात की तो उनका कहना था कि, 'महिलाओं के साथ शुरू से उनके पिता का नाम जुड़ता आ रहा है वहीं शादी के बाद उनके पति का नाम जुड़ जाता है'.
'महिलाओं को सिर्फ कार्यकर्ता तक ही सीमित'
वहीं कुछ महिला प्रत्याशी ऐसी भी हैं जो अपने दम पर चुनाव मैदान में हैं. जोगी कांग्रेस से महिला प्रत्याशी नीना यूसुफ ने कहा कि, 'राजनीति में महिलाओं को सिर्फ कार्यकर्ता तक ही सीमित कर दिया जाता है और उन्हें ऊपर नहीं उठने दिया जाता'. उन्होंने कहा कि, 'मैंने कहीं भी अपने पति के नाम का इस्तेमाल नहीं किया है. मैं अपने दम पर चुनाव लड़ रही हूं'.
'महिला प्रत्याशी डमी कैंडिडेट की तरह'
वहीं प्रोफेसर कविता शर्मा ने डमी कैंडिडेट पर कहा कि, 'जब कुछ वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाते हैं, जहां पहले पुरुष पार्षद का दबदबा हो ऐसी स्थिति में उन पार्षदों की पत्नी को मैदान में उतार दिया जाता है जो सिर्फ डमी की तरह मैदान में होती हैं. सारा काम उनके पति की ओर से किया जाता है. ऐसी महिलाएं कभी भी आगे नहीं बढ़ पाती है'.
'महिलाएं खुद सक्षम है'
वरिष्ठ पत्रकार श्याम वेताल ने कहा कि, 'अब वो समय नहीं रहा कि महिलाओं को पति परिवार के किसी व्यक्ति के नाम की जरूरत हो. अब महिलाएं खुद सक्षम है और आने वाले समय में महिलाओं को किसी सहारे की जरूरत नहीं होगी'.
अब ये तो निकाय चुनाव के बाद ही साफ होगा कि महिला प्रत्याशी मैदान में खुद उतरकर काम कर रही हैं या फिर डमी कैंडिडेट बनकर रह जाती हैं.