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Story of Devdash banjare छत्तीसगढ़ी कला को विदेश में चमकाने वाला कलाकार - panthi dancer Devdash banjare

छत्‍तीसगढ़ की लोक कला अत्‍यंत समृद्ध है . यहां की कला अपनी मौलिकता और विविधता के लिए प्रसिद्ध है . पंथी नृत्‍य उनमें से ही एक है. पंथी नृत्‍य के शीर्षस्‍थ कलाकार का नाम है Devdash banjare . ऐसा लगता है कि मानो उनके थिरकते पांवों नें पूरी पृथ्‍वी की लंबाई को नाप लिया है. ये वो कलाकार थे जिन्होंने छत्‍तीसगढ़ की माटी को चंदन सा सुगंधित कर story of Devdash banjare दिया. देवदास ने तभी संतोष की सांस ली, जब उन्होंने छत्तीसगढ़ की इस माटी और यहां की कला को पूरे विश्व में सुंगध के तौर पर फैलाया.ऐसे ही सपूतों को जन्‍म देकर छत्‍तीसगढ़ महतारी की कोख धन्य हो चुकी है. भाषा, साहित्‍य, इतिहास और कला ना जाने ऐसे कितने ही क्षेत्र के धुरंधरों ने इस माटी में जन्म लिया है.देवदास बंजारे उन्हीं में से एक थे.Devdash banjare jayanti

Devdash banjare jayanti
देवदास बंजारे की कहानी

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Published : Dec 28, 2022, 10:30 PM IST

रायपुर:छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा के लिए छत्तीसगढ़ में कई ऐसे महान हस्तियां पैदा हुईं. जिन्होंने अपने कर्म से पूरे संसार को आलोकित किया. देवदास बंजारे उन्हीं में से एक थे.Devdash banjare jayanti देवदास बंजारे का 1 जनवरी 1947 को तत्‍कालीन रायपुर जिले के धमतरी तहसील के अंतर्गत एक छोटे से साधन विहीन गांव सांकरा में हुआ. दुर्ग जिले के उमदा गांव में पला बढ़ा. स्‍टील सिटी भिलाई के पास के गांव धनोरा ने देवदास को ठिकाना दिया. देवदास स्‍कूल के समय का धावक थे. छत्‍तीसगढ़ का प्रिय खेल कबड्डी में देवदास राज्‍यस्‍तरीय चैम्पियन थे. अत्‍यंत तंगहाली के दिनों से उसने अपना जीवन शुरु किया. देवदास जी के बचपन का नाम जेठू था. बड़ी माता के प्रकोप से उसके शरीर का एक परत का मांस उतर गया. जेठू को राख बिछा कर सुलाया जाता था, उनकी मां देवता से उसके जीवन की मनौती मनाई थी. धीरे धीरे जेठू ठीक हो गया देवताओं से मनौती के फलस्‍वरूप नया जीवन को प्राप्‍त जेठू को देवदास नाम दिया story of Devdash banjare गया.

कैसे पंथी में महारथ की हासिल :छत्‍तीसगढ़ के सतनामी समाज में प्रस्‍तुत किये जाने वाला यह panthi dance अदभुत करतब युक्‍त घुघरू, झांझ और मांदर के संगीत से युक्‍त गीतमय भांगड़ा से भी तेज तीव्रतम नृत्‍यों में से एक है. पंथी गुरू बाबा घासीदास के संदेशों की मंचीय प्रस्‍तुति को कहा जाता है. धनोरा गांव के अपने मोहल्‍ले के लड़कों को इकट्ठा कर पांवों में घुघरू, गले में कंठी पहने हुए, जनेउ धारी, संतों का वेश बनाकर नृत्य का प्रदर्शन देवदास ने ही शुरु किया था.इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

1972 में बाबा के जन्‍म स्‍थान Giroudpuri जहां छत्‍तीसगढ़ का बहुत बड़ा मेला लगता है. वहां के प्रर्दशन ने देवदास को सफलता की सीढ़ियों में चढ़ना सिखाया. उस अवसर पर अविभजित मध्‍य प्रदेश के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री पंडित श्‍यामाचरण शुक्‍ल ने उनके दल को स्‍वर्ण पदक से panthi dancer Devdash banjare नवाजा.

राष्ट्रपति के हाथों मिला सम्मान : छत्‍तीसगढ़ के समाचार पत्रों नें भी देवदास के पंथी दल की भूरि भूरि प्रसंशा की. धीरे धीरे देवदास का दल प्रसिद्धि पाने लगा. इस दौरान देवदास अपने कला में पारंगत होते गए. 26 जनवरी 1975 को छत्‍तीसगढ एवं इस्‍पात मंत्रालय का प्रतिनिधित्‍व करते हुए गणतंत्र दिवस पर दिल्‍ली में देवदास को नाचते हुए लाखों लोगों ने देखा.21 मई 1975 को तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति महामहिम फकरूद्दीन अली अहमद ने गणतंत्र दिवस के परेड की प्रस्‍तुति से प्रसन्‍न होकर राष्‍ट्रपति भवन में प्रस्‍तुति हेतु आमंत्रित किया और अपने हाथों से स्‍वर्ण पदक से सम्‍मानित किया.

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विदेशी मंच में बनाया कीर्तिमान :देवदास बंजारे छत्‍तीसगढ़ के पहले मंचीय कलाकार हैं. जिन्‍हे विदेशी मंचों पर प्रदर्शन का भरपूर अवसर मिला.इन अवसरों का उन्‍होंने लाभ उठाया और वे विदेशी मंचों पर प्रदर्शन करने के मामले में अव्वल रहे. यह एक उल्‍लेखनीय कीर्तिमान है. छत्‍तीसगढ़ के अमर संत गुरू बाबा धासीदास के संदेशों को लेकर विदेश जाने वाले देवदास पहले कलाकार थे. देवदास पंथी नृत्‍य का बेताज बादशाह बन गए थे. नियति ने 26 अगस्‍त 2005 को एक सड़क दुर्घटना में देवदास को छत्‍तीसगढ़ से छीन लिया.

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