रायपुर:छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा के लिए छत्तीसगढ़ में कई ऐसे महान हस्तियां पैदा हुईं. जिन्होंने अपने कर्म से पूरे संसार को आलोकित किया. देवदास बंजारे उन्हीं में से एक थे.Devdash banjare jayanti देवदास बंजारे का 1 जनवरी 1947 को तत्कालीन रायपुर जिले के धमतरी तहसील के अंतर्गत एक छोटे से साधन विहीन गांव सांकरा में हुआ. दुर्ग जिले के उमदा गांव में पला बढ़ा. स्टील सिटी भिलाई के पास के गांव धनोरा ने देवदास को ठिकाना दिया. देवदास स्कूल के समय का धावक थे. छत्तीसगढ़ का प्रिय खेल कबड्डी में देवदास राज्यस्तरीय चैम्पियन थे. अत्यंत तंगहाली के दिनों से उसने अपना जीवन शुरु किया. देवदास जी के बचपन का नाम जेठू था. बड़ी माता के प्रकोप से उसके शरीर का एक परत का मांस उतर गया. जेठू को राख बिछा कर सुलाया जाता था, उनकी मां देवता से उसके जीवन की मनौती मनाई थी. धीरे धीरे जेठू ठीक हो गया देवताओं से मनौती के फलस्वरूप नया जीवन को प्राप्त जेठू को देवदास नाम दिया story of Devdash banjare गया.
कैसे पंथी में महारथ की हासिल :छत्तीसगढ़ के सतनामी समाज में प्रस्तुत किये जाने वाला यह panthi dance अदभुत करतब युक्त घुघरू, झांझ और मांदर के संगीत से युक्त गीतमय भांगड़ा से भी तेज तीव्रतम नृत्यों में से एक है. पंथी गुरू बाबा घासीदास के संदेशों की मंचीय प्रस्तुति को कहा जाता है. धनोरा गांव के अपने मोहल्ले के लड़कों को इकट्ठा कर पांवों में घुघरू, गले में कंठी पहने हुए, जनेउ धारी, संतों का वेश बनाकर नृत्य का प्रदर्शन देवदास ने ही शुरु किया था.इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
1972 में बाबा के जन्म स्थान Giroudpuri जहां छत्तीसगढ़ का बहुत बड़ा मेला लगता है. वहां के प्रर्दशन ने देवदास को सफलता की सीढ़ियों में चढ़ना सिखाया. उस अवसर पर अविभजित मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित श्यामाचरण शुक्ल ने उनके दल को स्वर्ण पदक से panthi dancer Devdash banjare नवाजा.