रायपुर: राजधानी के सप्रे स्कूल मैदान के सौंदर्यीकरण को लेकर विवाद जारी है. ETV भारत ने ऐतिहासिक मैदान के इतिहास को लेकर इतिहासकार रमेंद्रनाथ मिश्र से बातचीत की. उन्होंने बताया सप्रे स्कूल अंग्रेजों के जमाने में लारी स्कूल के नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित माधव राव सप्रे के नाम से उस स्कूल का नाम रखा गया, जो स्कूल का एक बड़ा मैदान हुआ करता था. रमेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि इस स्कूल से बहुत से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पढ़कर निकल चुके हैं. सप्रे मैदान में बड़ी-बड़ी सभाएं हुई हैं. महात्मा गांधी का उद्बोधन भी इसी मैदान पर हुआ. 1936 में पंडित जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय आंदोलन के संबंध में उनका उद्बोधन हुआ था.
दरअसल बूढ़ा तालाब के सौंदर्यीकरण की तर्ज पर सप्रे स्कूल मैदान का भी सौंदर्यीकरण किया जा रहा है. लेकिन इस पर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. बीजेपी सप्रे स्कूल मैदान को छोटा करने को लेकर नगर निगम पर हमलावर है. लेकिन नगर निगम ने विवादों के बीच ही सप्रे मैदान को छोटा कर दिया है. स्थानीय और जनप्रतिनिधियों ने इसका विरोध किया, लेकिन नगर निगम ने मैदान को छोटा कर रातों-रात वहां रेलिंग लगा दी है. इतिहासकार रमेंद्रनाथ मिश्र कहते हैं कि इस मैदान को सहेजने की जरूरत है.
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मैदान को सुरक्षित रखने की जरूरत
रमेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि पूर्व में सप्रे मैदान का कुछ भाग सड़क चौड़ीकरण के कारण छोटा किया गया था और कुछ भाग पर राज्य बनने के बाद मेडिकल इंस्टिट्यूट और बिजली ऑफिस बनाया गया. वे कहते हैं कि देखते-देखते सप्रे मैदान सिमटता जा रहा है. उस ऐतिहासिक मैदान को सुरक्षित और संवर्धित करके रखना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी उस मैदान को देखकर गौरवान्वित महसूस कर सके.
सप्रे स्कूल का मैदान ऐतिहासिक बना रहे
उन्होंने कहा कि सप्रे मैदान में जिस तरीके से आजादी के आंदोलन और बड़े-बड़े नेताओं की सभाएं हुई हैं. खेल के दृष्टिकोण से भी यह मैदान ऐतिहासिक है. इस गौरवशाली मैदान का कण-कण महत्वपूर्ण है. उस पर सभी लोगों को मिलकर चिंतन कर कोई सकारात्मक काम किया जाए, जिससे एक ओर बूढ़ा तालाब ऐतिहासिक है, तो वहीं दूसरी तरफ सप्रे स्कूल का मैदान भी ऐतिहासिक बना रहे.