रायपुर:हाल ही में हुए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की घोषणा छत्तीसगढ़ के लिए भी खास रही, दरअसल ऐसा पहली बार हुआ कि छत्तीसगढ़ की किसी फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. मनोज वर्मा निर्देशित ये फिल्म प्रदेश के जाने-माने लेखक संजीव बख्शी के उपन्यास 'भूलन कांदा' पर आधारित है. 2012 में प्रकाशित हुई इस उपन्यास को देश भर के साहित्य प्रेमियों की सराहना पहले ही मिल चुकी है. ETV भारत ने मशहूर उपान्यास भूलन कांदा के लेखक संजीव बख्शी से खास बातचीत.
सवाल: आपके मन में इस विषय पर लिखने का विचार किस तरह से आया या कहें कि भूलन कांदा के माध्यम से अपनी बात कहने की यूनिक कॉन्सेप्ट किस तरह आया ?
संजीव बख्शी:जब मैं अपनी नौकरी के दौरान बस्तर और गरियाबंद जैसे इलाकों में पदस्थ था. तो कई लोगों से ये बात सुनी कि एक पौधा होता है जिसके स्पर्श से इंसान सब कुछ भूलने लगता है. तो उन्हें ये विषय बड़ा ही रोचक लगा, फिर मैंने इसे आज के सामाजिक, इंसानी, सरकारी व्यवस्था में आए भटकाव को इस 'भूलन कांदा' से कनेक्ट कर विषय पर लिखना शुरू किया इस दौरान तीन से चार साल का वक्त लग गया.
सवाल: क्या भूलन कांदा जैसा कोई पौधा वाकई में होता है या ये सिर्फ एक कल्पना ही है?
संजीव बख्शी:कुछ साल पहले केशकाल के पास कुछ लोगों ने इस तरह के पौधा होने की बात कही थी. उसका वैज्ञानिक नाम भी बताया था, लेकिन वो कभी इसे न देखे हैं और न ही जिस पौधे की बात हो रही है उसका कोई वैज्ञानिक पुष्टि हुई है. ऐसे में ये मिथ्या ही है.
'भूलन द मेज' बनी बेस्ट छत्तीसगढ़ी फिल्म
सवाल: इस पर फिल्म बनाने की प्रक्रिया किस तरह रही किन लोगों का सहयोग रहा. इसके अलावा पात्र और जगह का चुनाव किस तरह किया गया ?