रायपुर: छत्तीसगढ़ तालाबों से समृध्द राज्य है. यहां शहरों और गांवों की पहचान यहां के तालाबों से है. आज हालात ऐसे है कि कभी राजधानी रायपुर की पहचान कहा जाने वाला 600 साल पुराना खो-खो तलाब अब अपना अस्तित्व भी खोता जा रहा है. खो-खो तालाब का इतिहास कल्चुरी काल से जुड़ा हुआ है, जो कभी अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता था. जो कभी कमल फूलों को समेटे हुए जीवंत था. ETV भारत सरोवर और उसके संकट पर विशेष पड़ताल कर रहा है कि कैसे प्रदूषण के साथ-साथ हमारी शहरी सभ्यता से तालाबों का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है.
कांक्रीटीकरण ने घेरा
इतिहासकार बताते हैं कि खो-खो तालाब के निर्माण के समय उसका क्षेत्रफल लगभग 50 एकड़ था, लेकिन वर्तमान में खो-खो तालाब कुछ एकड़ों में सिमटकर रह गया है. कांक्रीटीकरण ने तालाब के एक बड़े हिस्से को अपने दायरे में ले लिया और आज वहां कांक्रीट के ढांचे तने हुए हैं.
पेयजल का बड़ा स्रोत था तालाब
पहले खो-खो तालाब इस इलाके की निस्तारी के लिए ऐतिहासिक सरोवर हुआ करता था. पेयजल का यह बड़ा स्रोत माना जाता था, लेकिन वर्तमान में गंदगी के चलते यह पानी निस्तारी के काबिल भी नहीं बचा है. भूमाफिया तालाब में गंदगी डालकर उसे पाट रहे हैं और लगातार तालाब पर कब्जा बढ़ता जा रहा है.