रायपुरः शारदीय नवरात्र (Shardiya navratra 2022) के दसवें दिन दशमी को विजया दशमी मनाया जाता है. दरअसल इस दिन भगवान श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त किया था. इस दिन को अन्याय पर न्याय की, अधर्म पर धर्म की और अहंकार पर स्वाभिमान की विजय हासिल का दिन माना जाता है. इसी दिन रावण का वध भगवान श्री राम ने किया था. यही कारण है कि आज भी लोग दशहरे के दिन रावण दहन करते हैं.
वहीं, इस दिन शस्त्र पूजा का एक अलग ही महत्व है. दशहरे में शासकीय शस्त्रागारों के साथ आमजन भी आत्मरक्षार्थ के लिए रखे जाने वाले शस्त्रों का पूजन सर्वत्र विजय की कामना के साथ करते हैं. कहा जाता है कि रावण के पुतले का दहन कर अपने आंतरिक अहंकाररूपी रावण को जलाकर मन में बसे स्वाभिमानी राम के विजय की जय-जयकार करने का ये दिन है.
ये है शस्त्र पूजा का इतिहास:कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने दशहरे के दिन देवी हरसिद्धि की आराधना की थी. छत्रपति शिवाजी ने भी इसी दिन मां दुर्गा को प्रसन्न करके भवानी तलवार प्राप्त की थी. कहा जाता है कि 9 दिनों की शक्ति उपासना के बाद 10वें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना के साथ चंद्रिका का स्मरण करते हुए शस्त्रों का पूजन करना चाहिए. विजयादशमी के शुभ अवसर पर शक्तिरूपा दुर्गा, काली की आराधना के साथ-साथ शस्त्र पूजा की परंपरा है. कहते हैं कि इसी दिन लोग नया कार्य प्रारंभ करते हैं और शस्त्रों की पूजा आत्मरक्षा के लिए की जाती है. दशहरा पर्व के कारण हथियारों के पूजन का विशेष महत्व है. इस दिन हथियारधारी अपने-अपने हथियारों का पूजन करते हैं.